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येरवदा में देख सकते हैं वे बैरक जहां कैद थे महात्मा गांधी और पं. नेहरू

आजादी की 75वीं सालगिरह: ऐतिहासिक जेल में पर्यटकों का स्वागतकोरोना संकट में भी पहुंचे सैकड़ों छात्र, रिसर्च स्कॉलर

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि पर दी गयी विनम्र श्रद्धांजलि

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि पर दी गयी विनम्र श्रद्धांजलि

ओमसिंह राजपुरोहित/पुणे. ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली। ये दिन हमें स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, तपस्या और क्रांतिकारियों के बलिदान की याद दिलाता है। अंग्रेज शासकों ने आजादी के सिपाहियों को कारागार में डाल तरह-तरह की यातनाएं दीं। ऐतिहासिक येरवदा जेल भी इसका साक्षी बना, जहां आजादी के सिपाही अलग-अलग बैरकों में रखे गए। जेल प्रशासन ने इन बैरकों को सहेज रखा है, जिसे आम लोग देख-समझ सकते हैं। लोगों की मदद के लिए प्रशासन ने गाइड भी तैनात किए हैं, हर तरह की जानकारी सैलानियों को देते हैं। स्कूल छात्र, रिसर्च स्कॉलर और एनजीओ मामूली फीस चुका कर इन बैरकों को देख सकते हैं। खास यह कि कोरोना संकट के बावजूद बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं। स्कूली छात्रों के लिए पांच रुपए, कॉलेज छात्रों के लिए 10 रुपए और आम पर्यटकों के लिए 50 रुपए एंट्री शुल्क है। साल 1871 में बनी येरवदा जेल परिसर 512 एकड़ में फैला है। दक्षिण एशिया में यह सबसे बड़ा कारागार है। इसमें एक साथ पांच हजार कैदी रखे जा सकते हैं।

आजादी की लड़ाई का मूर्त गवाह
यह जेल देश की आजादी की लड़ाई का मूर्त गवाह है। महात्मा गांधी, पं. मोतीलाल नेहरू, पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाषचंद्र बोस, सरोजिनी नायडू, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जोआचिम अल्वा, वीर सावरकर सहित आजादी के कई नायक इस जेल में कैद किए गए थे। रामसे मैकडोनाल्ड के सांप्रदायिक फैसले के खिलाफ महात्मा गांधी इसी जेल में आमरण किया था।

पेड़ के नीचे पूना पैक्ट
डॉ. भीमराव अंाबेडकर और गांधी जी के बीच पूना पैक्ट भी इसी जेल में हुआ था। यह समझौता जेल परिसर के एक पेड़ तले हुआ था। वह पेड़ आज भी है, जिसकी देखभाल जेल प्रशासन करता है। गांधी जी सबसे ज्यादा तक यहां रहे। उनसे जुड़ी चीजें यहां सहेज कर रखी गई हैं।

इमर्जेंसी की याद
इमर्जेंसी (आपातकाल) के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमिला दंडवते, बालासाहेब देवरस, वसंत नरगोलकर आदि इसी जेल में कैद किए गए थे। जेल की कोठरियां स्मारक रूप में सुरक्षित रखी गई हैं। अभिनेता संजय दत्त, कार्यकर्ता अन्ना हजारे, फर्जी स्टांप पेपर घोटाले के आरोपी अब्दुल करीम तेलगी और डॉन से नेता बने अरुण गवली भी यहां बंदी रह चुके हैं।

1899 में पहली फांसी
आजादी से पहले 1899 में चापेकर बंधुओं को यहीं फांसी दी गई। जनरल वैद्य की हत्या के दोषी कुख्यात जिंदा सूखा को भी यहां फंदे पर लटकाया गया। आजादी के बाद यहां पहली फांसी 15 दिसंबर 1952 को दी गई थी। मुंबई पर 26/11 हमले के लिए दोषी ठहराए गए पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को भी 21 दिसंबर, 2012 को यहीं फांसी दी गई।
कम आए लोग
सूचना और जनसंपर्क अधिकारी शाहू बिभीषण दराडे ने बताया कि अब तक 1019 छात्र और करीब 82 शिक्षक यहां भ्रमण कर चुके हैं। लोगों में जेल टूरिज्म को लेकर खासा उत्साह है। कोविड-19 के चलते चाह कर भी लोग यहां नहीं आ रहे। उन्होंने कहा कि महामारी से निजात के बाद यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी।