scriptOMG : विकास का कड़वा सच, यहां पीने को पानी तक उनके नसीब में नहीं ! | Really pathetic life is living of mukundwadi people in maharastra | Patrika News

OMG : विकास का कड़वा सच, यहां पीने को पानी तक उनके नसीब में नहीं !

locationमुंबईPublished: Sep 26, 2019 01:05:34 am

Submitted by:

Rajesh Kumar Kasera

Mumbai News : (OMG) ये कैसी मजबूरी ?
रोजाना 30 मिनट ट्रेन (Train) में सफर (Travel) करके पानी (Water) लाते हैं मुकुंदवाड़ी के लोग
महाराष्ट्र (Maharastra) के औरंगाबाद (Aurangabad) के कई इलाकों में इस पर मानसून (Monsoon) भी रुठा रहा
सरकार (Government) और उनका अमला चुनाव (Election) की तैयारियों में जुटा, जनता की नहीं बदली नियति

OMG : विकास का कड़वा सच, पीने को पानी तक नसीब नहीं !

OMG : विकास का कड़वा सच, पीने को पानी तक नसीब नहीं !

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

मुंबई.औरंगाबाद. इसे विकास (Development) की बदरंग तस्वीर (Picture) कहे या फूटी किस्मत (Luck) का रोना। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के कई गांवों में लोगों को पीने का पानी (Drinking Water) तक नहीं मिल रहा है। सूखे हलक को तर करने के लिए उनको रोजाना जिन्दगी (Life) से जंग (Struggle) लड़नी पड़ती है।
महाराष्ट्र के इस इलाके से इस बार मानसून (Monsoon) भी इस कदर रुठ गया कि बादल उमड़े तो सही, पर बिन बरसे चले गए। पानी की कमी इतनी बढ़ गई कि मासूम बच्चों को आधा घंटे तक ट्रेन (Train) का सफर करना पड़ रहा है । शहर के समीप वे घर से बर्तनों को लेकर जाते हैं और पानी भरकर लाते हैं । कई बार तो ट्रेन में इतनी भीड़ होती है कि पानी के बर्तनों को दरवाजे के पास रखना तक मुश्किल होता है । यात्रियों की कड़ी नाराजगी और फटकार झेलनी पड़ती है, वह अलग ।
मुकुंदवाड़ी गांव के स्कूली बच्चे नौ वर्षीय साक्षी गरुड़, दस वर्षीय सिद्धार्थ धागे और इनकी उम्र के कई बच्चे पिछले कई दिनों से रोजाना 14 किलोमीटर का सफर तय करके पानी लाते हैं। गांव लंबे समय से सूखे के कलंक को झेल रहा है । इसके चलते परिवार जिन्दगी से जूझते रहते हैं और गरीबी साल भर परीक्षा लेती रहती है । हाल यह है कि मुकुंदवाड़ी क्षेत्र में इस वर्ष भी मानसून में 14 फीसदी बरसात कम हुई, इसके कारण गांव के कुएं, बावड़ी और सभी जलस्रत्रोत सूख गए । गांव के करीब 100 परिवार इस पीड़ा को झेल रहे हैं ।

क्या करें साहब मजबूरी है, किससे करें गुहार

सिद्धार्थ ने बताया, क्या करें साहब मुझे भी इस तरह से पानी लाना अच्छा नहीं लगता, पर क्या करें कोई दूसरा विकल्प नहीं है । स्टेशन के नजदीक ही घर होने से ट्रेन छूटे नहीं, इसलिए बड़ी चिंता पानी के लाने की होती है । इसके चलते हम खेल नहीं पाते । हालांकि की यह सिर्फ मुकुंदवाड़ी के लोगों का दर्द नहीं है, देश की 12 फीसदी आबादी और करीब 163 मिलियन लोग इसी तरह से पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं । ऐसे लोगों को घर के पास पीने के लिए साफ पानी तक नहीं मिलता । क्योंकि पानी की लाइन या कनेक्शन इनको उपलब्ध नहीं हैं ।

निजी स्तर पर बिकते हैं पानी के टैंकर

ग्रामीणों ने बताया कि इलाके में पानी माफियाओं का राज कदर हावी है कि वे खुलेआम टैंकरों के जरिए बेचने का काम करते हैं । लोगों की मजबूरी के हिसाब से 3 हजार रुपए से लेकर 5 हजार रुपए तक वसूल लेते हैं । ऐसे में तंगहाली में जी रहे गरीब परिवार कैसे इस राशि का प्रबंध करे और अपनी आवश्यकता को पूरा कर सके । घर का जरुरी सामान खरीदने तक के कई बार पैसे नहीं होते ।
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