
रोजा अल्लाह तक पहुंचने और नर्क से निजात पाने का है एकमात्र रास्ता
भिवंडी. रविवार का बीसवां रोजा ोक्ष के कालखंड की आखिरी कड़ी था। सोमवार के इक्कीसवें रोजे से तीसवें रोजे तक का दस दिन रमजान माह का अंतिम कालखंड होगा। कालखंड में लैलतुल कद्र/शबे-कद्र वह सम्माननीय रात का विशिष्ट काल है जिसमें अल्लाह का स्मरण तमाम रात जागकर किया जाता है तथा जिस रात को पुण्य की असीमित रात माना जाता है। क्योंकि शबे-कद्र से ही ईश्वरीय ग्रंथ और ईश्वरीय वाणी यानी पवित्र कुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। इसे दोजख से निजात का कालखंड भी कहा जाता है। इस्लामी धार्मिक आचार संहिता के अनुरूप से रखा गया 'रोजा' नर्क से निजात दिलाता है। कुरआन के सातवें पारे (अध्याय-7) की सूरह उनाम की चौंसठवीं आयत में पैगम्बरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्ल. को इरशाद फरमाया- 'आप कह दीजिए कि अल्लाह ही तुमको उनसे निजात देता है।' जानना जरूरी होगा कि 'आप' से मुराद हजरत मोहम्मद से है और 'तुमको' से यानी दीगर लोगों से है। मतलब यह हुआ कि लोगों को अल्लाह ही हर रंजो-गम और दोजख से निजात देता है।
Published on:
28 May 2019 07:21 pm
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