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Maharashtra Politics: बीजेपी ने मौका मिलने के बावजूद एकनाथ शिंदे को क्यों बनाया सीएम? फडणवीस को सत्ता से दूर रखने की वजह कहीं ये तो नहीं!

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली एमवीए सरकार अब जा चुकी है और बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदेमहाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। ऐसे में अब सबके मन में यह सवाल उठ रहा है कि बीजेपी मौका मिलने व सीटों के लिहाज से राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद देवेंद्र फडणवीस को सीएम न बनाकर एकनाथ शिंदे को क्यों मौका दे रही है?

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Jun 30, 2022

Eknath Shinde Devendra Fadnavis

Maharashtra Political Crisis News: महाराष्ट्र की राजनीति में तब बड़ा उलटफेर देखने को मिला जब शिवसेना के बागी समूह के नेता एकनाथ शिंदे का नाम राज्य के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर तय हुआ। दरअसल शिवसेना का बागी खेमा अब बीजेपी के समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार बनाने जा रही है। बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आज शिंदे के साथ राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात करने के बाद खुद यह चौंकाने वाली घोषणा की।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता फडणवीस ने एकनाथ शिंदे के साथ एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा “मैं सरकार से बाहर रहूंगा, लेकिन मैं नई सरकार को सभी मोर्चो पर सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा, और पिछले ढाई वर्षों में रुकी हुई विकास गतिविधियों को फिर से शुरू करूंगा।“

उन्होंने उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा कि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना के नेताओं ने निर्णय किया कि बालासाहेब ठाकरे जी ने जिन विचारों का जीवन भर विरोध किया ऐसे लोगों के साथ उन्हें गठबंधन करना है। उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ढाई साल थी, जिसमें न कोई तत्व, न कोई विचार और न गति थी। वो भ्रष्टाचार में लिप्त थे।

हालांकि, एमवीए सरकार अब जा चुकी है और एकनाथ शिंदे ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे, ऐसे में अब सबके मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि बीजेपी मौका मिलने व सीटों के लिहाज से राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी देवेंद्र फडणवीस को सीएम न बनाकर एकनाथ शिंदे को क्यों मौका दे रही है? यह भी पढ़ें-Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे होंगे महाराष्ट्र के अगले सीएम, देवेंद्र फडणवीस ने किया ऐलान

किसी शिवसैनिक को सीएम बनाना

महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में सीएम पद के लिए चेहरे का चुनाव करना बीजेपी के लिए आसान नहीं था। क्योकि शिंदे खेमे पर अपने आप ही बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव को सीएम की गद्दी से उतारने का दाग लग चुका है। वो भी तब जब पहली बार ठाकरे परिवार का कोई सदस्य मुख्यमंत्री बना हो। ऐसे में शिवसैनिकों का गुस्सा शांत करने के लिए किसी शिवसैनिक को ही इस पद पर पहुंचाना सबसे सही विकल्प था।

सरकार गिराने के दाग से बचना

आपको याद होगा कि ढाई साल पहले हुए अजित पवार प्रकरण में बीजेपी को काफी बदनामी झेलनी पड़ी थी, इसलिए इस बार भगवा पार्टी जल्दबाजी में कोई गलती नहीं करना चाहती थी। बीजेपी शुरुआत से ही शिवसेना बनाम शिंदे सेना के बीच में जारी लड़ाई पर पैनी नजर बनाये हुए थी और सही मौका आते ही अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए शिंदे को सीएम उम्मीदवार बना दिया। साथ ही स्पष्ट कह दिया कि वह शिंदे की अगुवाई वाली सरकार का पूरा समर्थन करेगी और राज्य की जनता को समय से पहले चुनाव में नहीं धकेलेगी। बीजेपी अपने पास सीएम पद न रखकर राज्य के आगामी चुनाव में खुद की साफ-सुधरी छवि लेकर जनता के बीच जाएगी।

शिवसेना पर शिंदे का दावा मजबूत करना

संविधान की 10वीं अनुसूची के पैरा 4, दलबदल पर कानून कहता है, "किसी सदन के किसी सदस्य के मूल राजनीतिक दल का विलय तब हुआ माना जाएगा, जब, और केवल अगर, दो-तिहाई से कम नहीं संबंधित विधायक दल के सदस्य इस तरह के विलय के लिए सहमत हो गए हैं। इसमें जोर देकर कहा कि विलय दो राजनीतिक दलों के बीच होना चाहिए।" हालांकि, महाराष्ट्र के हालात कानूनी लिहाज से सरल नहीं है। क्योंकि शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के गुट ने यह स्पष्ट किया है कि वें बीजेपी के साथ विलय नहीं करेंगे, बल्कि वे ही असली शिवसेना है। उधर, शिवसेना सुप्रीमों ने स्पष्ट कहा है कि शिवसेना उनकी है, जिसे उनसे कोई नहीं छीन सकता है। उन्होंने कई बार कहा कि शिंदे गुट ने पीठ में छुरा नहीं घोंपा है।

बालासाहेब के समर्थकों को अपने पक्ष में करना

एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी राज्य के आगामी चुनावों में खुद को मजबूती के साथ पेश करेगी। क्योकि इस कदम से वह बालासाहेब के समर्थकों को अपने अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश करेगी। अब बीजेपी शिवसेना के वोटरों के बीच जाकर यही सन्देश देगी की उसने अपने कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस को नहीं बल्कि एक कट्टर शिवसैनिक को पूरे सम्मान के साथ राज्य के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाया। इतना ही नहीं बालासाहेब की हिंदू विचारधारा को भी आगे बढ़ाया।