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इस संत ने जमींदार के यहां लिया था जन्‍म, गंगा को बचाने के लिए त्‍याग दिए प्राण

स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की पहचान कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर और केंद्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड के सदस्य सचिव के रूप में थी

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इस संत ने जमींदार के यहां लिया था जन्‍म, गंगा को बचाने के लिए त्‍याग दिए प्राण

शामली। संन्‍यास लेने के से पूर्व डाॅ. गुरुदास अग्रवाल के नाम से पहचाने जाने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की पहचान कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर और केंद्रीय प्रदूषण नियत्रंण बोर्ड के सदस्य सचिव के रूप में थी। फिलहाल उनकी यह पहचान पुरानी पड़ चुकी थी। अब उनकी पहचान गंगा नदी की अविरलता के लिए संघर्ष करने वाली भारत की सबसे अग्रणी शख्सियत के रूप में थी। उन्होंने संन्यासी बाना भी अपने संघर्ष को गति देने के लिए ही धारण किया था। आपको बता दें क‍ि गंगा नदी की स्वच्छता, अविरलता और निर्मलता बरकरार रखने के लिए पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 111 दिन से अनशन कर रहे थे। गुरुवार को उनका निधन हो गया था। गंगा की दुर्दशा से आहत होकर स्वामी सानंद 22 जून 2018 से हरिद्वार के मातृ सदन आश्रम में आमरण अनशन पर बैठे थे।

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नहीं किया था विवाह

महान पर्यावरणविद् डाॅ. गुरुदास अग्रवाल का जन्म 1932 में जमींदार परिवार में हुआ था। शामली के कस्बा कांधला के एक खेतिहर परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनके बाबा बुधसिंह आर्यसमाजी थे। बाबा के ससुर डिप्टी कलेक्टर और ससुर के छोटे भाई बैरिस्टर थे। उनके बाबा भी इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर बनना चाहते थे। उन्होंने घर से पैसा निकाल लिया। जहाज का टिकट लेकर इंग्लैंड रवाना हो गए। परिवार के लोगों को यह पता चला तो उनके ससुर को शिकायत कर दी कि वह चोरी करके गए हैं। इसके बाद उनको जहाज में ही गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच एक अंग्रेज से उनकी दोस्ती हो गई। उसने कहा कि तुम्हारे पास तो खेती है, तुम तो राजा हो। इके बाद वह वापस लौटे और तय किया वह खुद खेती करेंगे। बाबा ने करीब 400 एकड़ भूमि दूसरों को दे दी थी और करीब 100 एकड़ अपने पास रख ली। ये गुण डाॅ. गुरुदास अग्रवाल में भी मिले। उन्‍होंने विवाह नहीं किया था। वह आजीवन ब्रह्मचारी बनकर रहे। उन्होंने अपने छोटे भाई निरजंन स्वरूप अग्रवाल के बड़े पुत्र तरुण अग्रवाल को गोद लिया हुआ था।

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महामना मालवीय के पुत्र से जुड़े रहे

अपने जीवन में प्रो. गुरुदास अग्रवाल विभिन्न समाजसेवी संस्थाओं से जुड़कर उन्हें तकनीकी, आर्थिक और मोरल सहायता करते रहे। इन संस्थाओं में तरुण भारत संघ, पीपल साइंस इंस्टीट्यूट, वनवासी सेवा आश्रम व गांधी शांति प्रतिष्ठान शामिल हैं। प्रसिद्ध समाजसेवी एमसी मेहता और भारत झुनझुन वाला भी पर्यावरण से संबंधित विषयों में उन्हीं से सलाह लेते थे। साल 2009 से उन्होंने अपना जीवन गंगा को अर्पण करने का निश्चय किया और 13 जून 2009 में पहला अनशन किया। इसके फलस्‍वरूप गंगोत्री से उत्तरकाशी तक 145 किलोमीटर के क्षेत्र को एक सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया गया और गंगा के ऊपरी भाग में तीन परियोजनाओं के निरस्त कर दिया गया। गंगा की अविरलता के लिए उन्‍होंने कई अनशन किए। महामना मालवीय जी के पुत्र गिरधर मालवीय और गंगा महासभा के साथ मिलकर उन्‍होंने एक कानून का प्रारूप तैयार किया, जिसे वह चाहते थे कि सरकार पास करे, जिससे गंगा की निर्मलता और अविरलता सुनसिचित की जा सके।

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