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उपचुनाव में आसान नहीं होगी विपक्ष की राह, दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है, बीजेपी इस चक्रव्यूह से गठबंधन के अरमानों पर फेर सकती है पानी

बीजेपी को पटखनी देने के लिए क्या तैयार है विपक्षी ब्रिगेड

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उपचुनाव में आसान नहीं होगी विपक्ष की राह, दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है, बीजेपी इस चक्रव्यूह से गठबंधन के अरमानों पर फेर सकती है पानी

शामली। तीन दिन बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली के कैराना और बिजनौर के नूरपुर में उपचुनाव होने हैं। कैराना में लेकसभा और नूरपुर में विधानसभा की सीट पर 28 मई को मतदान होना है। गोरखपुर-फुलपूर में गंठबंधन की एकता से बीजेपी के दिग्गजों को पटखनी देने के बाद विपक्षी पार्टियों के हौसले बुलंद हैं। विपक्ष ने इस बार भी सरकार को पटखनी देने के लिए अपनी तैयारी पूरी कर ली है। लोगों के दिलों को जीतने के साथ राजनीतिक समीकरण भी बैठाए जा रहे हैं। सपा,रालोद, बसपा, कांग्रेस, आप बीजेपी को हराने के लिए एक साथ खड़ी हैं। लेकिन क्या वाकई बीजेपी को इस बार हराना आसान रहेगा। गठबंधन का पंच का अखाड़ें में बीजेपी को पटखनी दे पाएगा। ये सवाल इसलिए क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 28 मई को होने वाले कैराना उपचुनाव को योगी सरकार की अग्निपरीक्षा माना जा रहा है और इस चुनाव में जीत के लिए खुद बीजेपी के कार्यकर्ता से लेकर नेता मैदान में उतरे हुए हैं। खुद सीएम योगी सभा और रैली कर रहे हैं। बीजेपी गोरखपुर और फूरपुर सीट गंवा कर पहले से ज्यादा सतर्क हो गई है।

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चुनाव प्रचार के लिए विपक्ष की ओर से नहीं आया बड़ा चेहरा

दरअसल विपक्ष एक साथ खड़ा है फिर भी अंदरखआने में सब कुछ ठीक नहीं हैं। जहां बीजेपी पांच-पांच पार्टियों से सीधे मुकाबला करने के लिए सीएम योगी खुद चुनाव प्रचार की कमान संभाल चुके हैं वहीं विपक्षी पार्टियां भले ही एक साथ आ गईं हों लेकिन अभी तक उनकी ओर से कोई बड़ा नेता जनता को लुभाने नहीं पहुंचा। हालाकि कांग्रेस का इस बारे में कहना है कि वो जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। जिसका परिणाम 31 मई को सामने आएगा।

योगी मे संभाली उपचुनाव की कमान

पांच दलों के एक साथ आने से अब यहां का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए नाक की लड़ाई बन गई है। कुछ दिन पहले अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना के फोटो को लेकर हुए विवाद को भुनाने के लिए केइस उपचुनाव में लोकदल ने अपना चुनावी नारा जय जवान जय किसान की जगह जिन्ना नहीं गन्ना चलेगा कर दिया। जिसके जवाब में सीएम योगी ने भी तीखा प्रहार किया। गन्ना नहीं, जिन्ना चलेगा के मुद्दे पर कहा कि भाजपा सरकार किसानों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध है। उन्होंने स्पष्ट किया कि गन्ना हम रुकने नहीं देंगे और जिन्ना की तस्वीर लगने नहीं देंगे। उपचुनाव में दंगा, पलायन और किसानों के साथ ही जातीय समीकरणों को भी साधाने की कोशिश की।

केवल दल मिले-दिल नहीं !

उधर कैराना के माहौल के देख कर सीएम योगी ने साफ कहा कि विरोधी दल मिले हैं- दिल नहीं। उनके कही ये लाइने कहीं ना कहीं सही भी साबित हो रही हैं। क्योंकि गोरखपुर और फूलपुर में जिस जोश के साथ बसपा-और सपा कार्यकर्ताओं मे मेहनत की वो जोश फिलहाल इन पार्टियों की ओर से देखने को नहीं मिला। सपा के कुछ नेता भले ही कैराना में दिखने को मिल रहे हों लेकिन बसपा नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं या ये कहें की उन्हें अभी हाईकमान से आदेश ही नहीं मिला। कांग्रेस का हाल भी कुछ ऐसा ही है। भले ही पार्टी ने उम्मीदवार नहीं उतारा और सपा रालोद को समर्थन देने का ऐलान किया हो लेकिन कांग्रेस का एक भी नेता अभी तक गठबंधन के प्रत्याशी के लिए वोट मांगने कैराना नहीं पहुंचा। आम आदमी पार्टी ने भी समर्थन का ऐलान तो कर दिया लेकिन जीत के लिए मेहनत नजर नहीं आ रही। भले ही आखिरी समय में लोकदल प्रत्याशी कंवर हसन रालोद में शामिल हो गये हों गठबंधन उम्मीदवार तबस्सुम हसन की जीत का दावा कर रहे हों लेकिन ये गठबंधन बाहर से जितना मजबूत नजर आ रहा है, अंदर से खोखला ना साबित हो जाए।

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