
करीब छह-सात साल में इतने लोगों का अब तक नहीं चला पता, करीब छह साल पहले दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका अब भी लम्बित, घर छोडऩे वालों में अधिकांश बालिग, इनमें युवती/विवाहिता अधिक
ग्राउण्ड रिपोर्ट
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
नागौर. डेगाना विधायक विजयपाल मिर्धा के लापता चालक ताराचंद को तलाशने में पुलिस ने पूरा जोर लगा रखा है, वहीं कई और भी हैं जिनकी गुमशुदगी काफी पहले की है पर वापसी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे। 378 लोग ऐसे हैं जो पुलिस के रेकॉर्ड में आज भी लापता हैं। इनमें कई तो छह-सात साल से नहीं मिले।
सूत्रों के अनुसार करीब सात साल पहले लापता बीस लोगों का अब तक कुछ पता नहीं चला है। वर्ष 2016 में लापता हुई एक नाबालिग, आठ युवक व 11 महिला/युवती अभी तक नहीं मिल पाए। वर्ष 2017 में गायब एक नाबालिग लड़के-एक लड़की के अलावा दस युवक और सात युवतियां यानी 19 जने अब भी घर वापस नहीं पहुंचे। ऐसा नहीं है कि पुलिस गुमशुदा की तलाश के प्रयास नहीं करती, वो पर्चे भी चस्पा कराती है तो इधर-उधर तलाशती भी है पर कभी कम स्टॉफ तो कभी ठोस सुराग के अभाव में इनका मिलना संभव नहीं होता। दिन-महीने-साल गुजरते हैं तो कभी अपने आप ही वापस आने की तसल्ली से घर वाले भी उनकी तलाश करना छोड़ देते हैं।
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो नागौर जिले में वर्ष 2018 में जो नाबालिग गुम हुए या गए वो सभी मिल गए या लौट आए। बावजूद 14 युवक व 21 युवती/महिलाएं अब तक वापस नहीं मिले। वर्ष 2019 के लापता बीस युवक और सत्रह युवती/महिलाएं अब भी पुलिस रेकॉर्ड में गुम हैं। वर्ष 2020 की स्थिति भी कोई खासी अच्छी नहीं रही तब के गायब 11 युवक और 25 युवती/महिलाएं अब तक नहीं मिल पाए। वर्ष 2021 में जहां कोरोना संक्रमण का जोर था तब भी घर से गायब होने वालों की रफ्तार नहीं थमी। गायब तो काफी हुए पर तब से अब तक जो नहीं मिले उनकी संख्या भी कम नहीं है। इस पूरे साल में गायब 18 युवक व 53 युवती/महिलाएं अब तक गायब हैं। वर्ष 2022 में लापता एक नाबालिग लड़का तो सात नाबालिग बालिकाएं घर नहीं लौटी वहीं 37 युवक व 95 युवती/महिलाएं अब भी गुमशुदा हैं। इस साल के शुरुआती चार महीने में लापता एक नाबालिग लड़का, तीन नाबालिग कन्या के अलावा पांच युवक और तीस युवती/महिलाएं घर छोड़ चुकी हैं। पिछले तीन साल यानी वर्ष 2020 से 2022 पर ही गौर करें तो अठारह बरस से अधिक वाले युवक/पुरुष की गुमुशुदगी रिपोर्ट सिर्फ 347 हैं, जबकि युवती/महिलाओं की संख्या 1396 है यानी चौगुनी मतलब औसतन एक रोजाना। मजे की बात यह भी कि इसमें भी विवाहिताएं अधिक हैं। सबसे अधिक अब भी गुमशुदगी में ये शामिल हैं।
ताराचंद की ही नहीं और भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका हो चुकी है दाखिल
इस साल में राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर में करीब एक साल से लापता ताराचंद की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल हुई है। उनके पिता देवाराम की ओर से एडवोकेट राजेंद्र सिंह चौहान ने करीब डेढ़ महीने पहले बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की। उस पर अगली सुनवाई 19 मई को है। इससे पहले की बात करें तो वर्ष 2017 से वर्ष 2022 तक कुल 107 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल हो चुकी हैं। इनमें वर्ष 2017 में दर्ज छह याचिका में से एक अब भी लम्बित चल रही है। यह भी सामने आया कि गुमशुदगी को लेकर अधिकांश मामलों में बालिका/युवती को लेकर परिजन बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल करते हैं। वर्ष 2017 में 7, वर्ष 2018 में 18, वर्ष 2019 और 2020 में 17-17, वर्ष 2021 में 19 तो वर्ष 2022 में 28 याचिका दायर हुईं।
प्रेम-प्यार का चक्कर
सूत्रों के अनुसार युवाओं में अधिकांश प्रेम प्यार के चक्कर में घर छोड़ते हैं। यही हाल युवती अथवा विवाहिताओं का देखा जा रहा है। घर पर किसी विवाद/नाराजगी के चलते कुछ लोग अपने आप ही वापस आ जाते हैं। यह भी सामने आया कि गुमशुदगी के बाद उनके परिजन को सबसे ज्यादा चिंता यही रहती है कि वो कहीं आत्महत्या ना कर ले।
Published on:
16 May 2023 09:14 pm
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