नागौर. सरकारी योजना में अनुदान राशि बढऩे के बाद भी पशुपालक ऊंट पालन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। पहले अनुदान राशि 10 हजार थी, अब इसे 20 हजार कर दी गई। इसके बाद भी ऊंट पालन को लेकर पशुपालकों में दिलचस्पी नहीं बढ़ी है। अब स्थिति इतनी खराब होने लगी है कि सरकार ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया तो फिर प्रदेश के पर्यटन के साथ ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले ऊंट गायब हो जाएंगे। जैसलमेर सहित प्रदेश के कई सीमावर्ती जिलों में पर्यटकों से होने वाली आय में ऊंटों का भी प्रमुख रूप से योगदान रहता है। विशेषकर विदेशी सैलानियों के लिए ऊंट की सवारी करना उनका पसंदीदा शौक रहा है। अब ऐसे में पश्ुाओं की चल रही गणना पर सभी की निगाहें लगी हुई है, संभवत: इसमें ऊंटों की संख्या को लेकर कुछ अलग ही स्थिति सामने आए, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा कुछ नहीं होगा। इसके लिए सरकार को ही ठोस कदम उठाने होंगे, तभी बात बनेगी।
खर्चा 70 हजार का,अनुदान औसत, कैसे बढ़ेगा पालन
देश के अन्य हिस्सों की तर्ज पर अब राजस्थान में भी ऊंटों की संख्या घटने लगी है। ऊंटों की संख्या घटने के पीछे प्रमुख कारकों में राज्य सरकार की नीतियों को बताया जा रहा है। विभागीय जानकारों के साथ ही ऊंट पालकों से हुई बातचीत में सामने आया कि ऊंट पालन को लेकर अनुदान बढ़ाने के अतिरिक्त सरकार ने अन्य कोई सुविधाएं इसके पालन को प्रोत्साहित करने को लेकर नहीं बढ़ाई। जयपुर के देवासी के बने सिंह के अनुसार जो अनुदान मिलता है, इसे भी प्राप्त करने के लिए ऊँट पालकों को सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता के साथ ही कड़ी मशक्कत से गुजरना पड़ता है। ऐसे में प्राप्त होने वाले अनुदान का औसतन 20-25 प्रतिशत की राशि व समय तो इसे पाने में व्यय कर देते हैं। अब इसके बाद जो अनुदान प्राप्त होता है। उससे ऊंट पालन करना बेहद मुश्किल होता है। जबकि वास्तव में केवल एक ऊंट के चारा आदि प्रबंधन में ही साल भर में 70-80 हजार रुपए का व्यय हो जाता है। अब ऐसे में कैसे बढ़ेगा ऊंट पालन…!
अधिनियम बनाने का भी नहीं मिला लाभ
ऊं टो की संख्या को बढ़ाने के लिए राजस्थान की सरकार ने वर्ष 2015 में राजस्थान ऊं ट अधिनिमय पारित किया था। इसके तहत एक राज्य से दूसरे राज्यों में ऊंट पालन पर पाबंदी लगा दी गई। यह अधिनियम पूरी तरह से सार्थक इसलिए सिद्ध नहीं हो पाया कि गुजरात एवं मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में ऊंटों को पर्यटन की दृष्टि से भी ले जाया जाता रहा है। अधिनियम बनने के बाद इसके जाने पर अधिकारिक रूप से रोक तो लगी, लेकिन इससे ऊंट पालन प्रोत्साहित नहीं हो पाया।
प्रदेश में इस तरह ऊंट घटते चले गए
वर्ष ऊंट की संख्या
1997 9.12 लाख
2003 6 लाख
2007 5.20 लाख
2012 4 लाख
2019 2.50 लाख
विशेषज्ञ बोले…
वर्ष 2024 को ऊं ट वर्ष के रूप में मनाया गया था। इसके बाद भी ऊंट पालन को लेकर पशुपालकों में उत्साह की स्थिति नहीं बनी। राजस्थान में जैव विविधता में ऊँट का बहुत बड़ा महत्व है। रेगिस्तान में पर्यटन की दृष्टि से भी ऊंट महत्वूपर्ण है। ऊंटो लेकर बेहतर येाजनाएं बनानी होगी, तभी बात बन सकेगी।
डॉ. शंकरलाल, सहायक प्राध्यापक, कृषि महाविद्यालय बीकानेर
कृषि कार्यो व माल परिवहन में इनकी उपयोगिता कम होने की वजह से ऊंट पालन में पशुपालक दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इसके लिए विभाग की ओर से योजना को लेकर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। विभाग को उम्मीद है कि इससे पशुपालक ऊंट पालन में दिलचस्पी दिखाएंगे।
डॉ. मूलाराम जांगू, वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी पशुपालन नागौर