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किसान जुटे खेतों में, बिना मजदूरी के सामूहिक खेती का वही पुराना अंदाज

सामूहिक श्रम की संस्कृति लाह परम्परा

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किसान जुटे खेतों में, बिना मजदूरी के सामूहिक खेती का वही पुराना अंदाज

khinwsar news

नागौर/खींवसर. साथी हाथ बढ़ाना एक अकेला थक जाए तो मिलकर बोझ उठाना...। वर्ष 1957 में निर्मित फिल्म नया दौर के इस गाने की तर्ज पर गांवों में आज भी एक दूसरे के कृषि कार्य में हाथ बंटाने की परम्परा जीवित है। क्षेत्र के रेगिस्तानी इलाके के गांवों की संस्कृति सदैव अनूठी रही है। इन्हीं परम्पराओं का एक भाग है लाह परम्परा । खेतों में निराई गुड़ाई, फसल कटाई हो या चारा कटाई का कार्य। लाह किसानों की जरूरत के साथ संस्कृति का अभिन्न अंग बन गई है। ग्रामीणों द्वारा सामूहिक रूप से फसल कार्य पूर्ण करने में इस परम्परा का निर्वाह दशकों से हो रहा है, लेकिन समय में बदलाव के साथ कुछेक गांवों को छोडकऱ अधिकांश गांवों में लाह अतीत की यादें बन गई हैं। रेगिस्तानी इलाके के गांवों में आज भी लाह परम्परा कायम है।

यह है लाह परम्परा
लाह परम्परा में खेतों में जब फसल पक जाती है। अकेला परिवार उसे समेटने की स्थिति में नहीं रहता तथा फसल उमडऩे लगती है तो किसान गांव में लाह आयोजन के लिए न्यौता देता है। गांव के लोग सामूहिक रूप से इसे स्वीकार कर खेत में फसल समेटने में जुट जाते हैं। लाह में 200 से 500 तक लोग काम करते है। कार्य करने वाले लोगों को मजदूरी नहीं दी जाती है। उन्हें सिर्फ भोजन परोसा जाता है। अधिकांश लापसी हलवा व बिणज आदि बनाए जाते है। खास बात तो यह रहती है कि भोजन के दौरान उन्हें कटोरी से घी परोसा जाता है।

लोक गीतों पर काम
लाह के दौरान कुछ लोग ढोल-मजीरे बजाते हैं वहीं लाहिए लोक गीतों की धुन के साथ नाचते दौड़ते काम करते है। लाह के दौरान दूर-दूर तक गूंज सुनकर लोगों को पता चल जाता है कि लाह का आयोजन हो रहा है। वहीं बड़े-बुजुर्ग व काम करने में असक्षम लोग नाचते हुए लाहियों का उत्साह वर्धन करते हैं।

काम होने पर घर वापसी
लाह में आयेाजन कत्र्ता के खेत का काम जब तक पूरा नहीं हो जाता तब तक लोग जुटे रहते है। कई बार बड़े काम में तो दिन के साथ परी रात लग जाती है। चांदनी धवल रातों में तो रात के समय भी लाह परम्परा का आयोजन किया जाता है। लाह परम्परा में केवल पुरुष ही भाग लेते है। ग्राम चारणीसरा के कैप्टन बलवंत सिंह बताते है कि आज परम्परा को सहेजने की आवश्यकता है, लेकिन लोग इसे धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं। इसी गांव के कालुसिंह का कहना है कि थली के गांवों में आज भी यह परम्परा कामय है। यहां मजदूरों के पीछे भटकने की बजाय लोग मनोरंजन के साथ खेती का कार्य सम्पादित कर लेते है, लेकिन धीरे-धीरे यह परम्परा समाप्त होती जा रही है।

खेत में बनती है रसोई
लाह के दौरान लाहियों के लिए भोजन आदि खेत में ही बनता है। खेत में ही एक अस्थाई रसोई बनाई जाती है। जहां कढाई में भोजन तैयार होता है। इस दौरान माहौल किसी विवाह से कम नहीं होता है। रसोई में गांव के छोटे बच्चे भी भोजन बनाने में मदद करते हैं।