श्यामलाल चौधरी
नागौर. देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले नागौर जिले के इंदास निवासी प्रभुराम चोटिया के परिजनों को सरकार की अनदेखी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर रही हैं। करगिल युद्ध के दौरान 13 जून 1999 को टोबोलिंग में अपने प्राणों की आहुति देने वाले प्रभुराम की वीरांगना व तीन बच्चों के साथ इनाम के नाम पर 'ठगी' हुई है, इसके बावजूद न तो सैनिक कल्याण बोर्ड कुछ कर पाया और न ही सरकार ने उन्हें राहत देने के प्रयास किए।
करगिल युद्ध में शहीद होने के बाद सरकार ने परिजनों को राहत के नाम पर एक पेट्रोल पंप आवंटित करने की घोषणा की। घोषणा के अनुसार वर्ष 2000 में शहीद के आश्रितों को पेट्रोल पंप आवंटित कर दिया, लेकिन शहीद के पेट्रोल पंप से तेल कम्पनियों के अधिकारियों की जेब गर्म नहीं होती थी, इसलिए पांच साल बाद ही जांच के नाम पर गड़बड़ी बताकर पंप का लाइसेंस निरस्त कर दिया। वीरांगना रूकीदेवी के साक्षर नहीं होने तथा बच्चे छोटे होने के कारण पेट्रोल पंप का लाइसेंस दुबारा जारी कराने के लिए प्रयास नहीं हो सके।
बच्चों की पढ़ाई के लिए खेती दरकिनार
वीरांगना अकेली होने के बावजूद बच्चों से खेती में काम कराने की बजाए पढ़ाया। आज बड़ी बेटी मंजू नर्सिंग कर रही है, जबकि छोटी बेटी नागौर मिर्धा कॉलेज से बीए कर रही है। बेटा दयाल दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए ऑर्नस कर रहा है। घर में शहीद प्रभुराम की मां गुलाबी देवी भी है।
बच्चों को नहीं पता था कि पापा कहां गए
करगिल युद्ध में जब प्रभुराम शहीद हुए थे, उस समय उनके तीन बच्चे थे और तीनों ही पांच साल से छोटे। सबसे बड़ी बच्ची मंजू उस समय पांच साल की थी। उससे छोटा भाई दयालराम साढ़े तीन साल का था और सबसे छोटी बच्ची निरमा मात्र डेढ़ साल की थी। वीरांगना रूकीदेवी के एक तरफ बच्चों को संभालना भारी पड़ रहा था तो दूसरी तरफ अपने पति की जुदाई का गम। इन सब के बीच आर्थिक तंगी में बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी। इसके बावजूद वीरांगना पिछले 16 साल से बच्चों को पढ़ा रही है, ताकि बुढ़ापे में उसे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़े।