
IAS Mudita Sharma
नागौर. संघ लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित भारतीय सिविल सेवा परीक्षा-2022 में 381वीं रैंक प्राप्त करने वाली नागौर के मेड़ता सिटी की बेटी मुदिता शर्मा ने डॉक्टर बनने के बाद आईएएस की तैयारी शुरू की और सफल हुई। सोमवार को नागौर आई मुदिता से राजस्थान पत्रिका ने विशेष बातचीत की, जिसमें उन्होंने खुलकर सवालों के जवाब दिए और बताया कि आज के जमाने में लड़कियों को मौका मिले तो बेटियां, बेटों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। नवीं से कॉलेज तक सरकारी स्कूल में पढ़ी मुदिता कहती हैं कि परिवारजनों का सपोर्ट मिले तो सफलता कहीं से भी पढकऱ प्राप्त की जा सकती है। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश -
पत्रिका : आपने आईएएस बनने का सफर कैसे तय किया?
मुदिता : वर्ष 2019 में मैंने जोधपुर के डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस पूरा किया। कॉलेज करते समय ही मुझे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए, ताकि समाज को ज्यादा दे सकूं। इसी सोच को लेकर मैंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी दिल्ली जाकर शुरू की, लेकिन कुछ समय बाद ही कोविड आ गया। मुझे लगा कि अभी समाज को डॉक्टर की ज्यादा जरूरत है, इसलिए आठ महीने तक डॉक्टर के रूप में सेवाएं दी। जब दूसरी लहर कम हो गई तो मैंने वापस आईएएस की तैयारी शुरू की और एक्जाम दिया। यह मेरा फस्र्ट मैन्स और फस्र्ट इंटरव्यू था, जिसमें मुझे 381वीं रैंक मिली है।
पत्रिका : आपने किन परिस्थितियों का सामना करके तैयारी की?
मुदिता : मैं तो यही कहूंगी कि संषर्घ, जीवन का पार्ट है। दोनों साथ-साथ चलते हैं। यदि कोई सोचे कि पहले समस्याओं का समाधान कर लें और फिर तैयारी करें तो ऐसा नहीं हो सकता। जीवन भर कोई न कोई संघर्ष करना ही पड़ता है।
पत्रिका : आज भी हमारे समाज में बेटियों को पढऩे के लिए बाहर भेजने में अभिभावक हिचकिचाते हैं, जिसकी वजह से बेटियां चाहते हुए भी अपनी पढ़ाई नहीं कर पाती हैं, आपका क्या कहना है?
मुदिता : कहीं न कहीं एक संकोच है। मैं मेड़ता सिटी से आती हूं, मुझे बाहर भेजना, मेरे पेरेंट्स के लिए बहुत बोल्ड डिसिजन था। लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और मुझे भेजा, जिसका परिणाम आज आपके सामने हैं। इसलिए मैं तो कहूंगी कि थोड़ा विश्वास रखें, अपने संस्कारों पर और अपने बच्चों पर और उन्हें बाहर भेजें। आज लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है। परिवार पर संकट आता है तो एक पढ़ी-लिखी कामयाब महिला अपने पूरे परिवार को संभाल सकती है। इसलिए समाज व परिवार को सोच बदलने की भी आवश्यकता भी है।
पत्रिका : आपकी स्कूली शिक्षा सरकारी विद्यालय से ही हुई। आजकल सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों की धारणा बदल गई है, क्या कहना चाहेंगी?
मुदिता : एक से आठ तक मेरी शिक्षा मेड़ता के विद्या भारती के मीरा बाल मंदिर से हुई। इसके बाद नवीं व दसवीं मेड़ता के सरकारी बालिका स्कूल से की। 11वीं व 12वीं भी राजकीय माध्यमिक विद्यालय से की। यहां तक कि मेरा कॉलेज भी सरकारी था। मैं जब दसवीं में थी, तब मेरी स्टेट मेरिट थी। हां, लेकिन यह जरूर है कि आपकी फेमिली अवेयर है और स्कूल में पढ़ाई को लेकर कहीं समझौता हो रहा है। ऐसे में आपका परिवार एक्स्ट्रा एकेडमिक सपोर्ट प्रोवाइड करवाने में सक्षम है तो फिर स्कूल मायने नहीं रखती है।
पत्रिका : प्रशासनिक सेवा में आने के बाद ऐसे काम हैं, जो आप करना चाहती है?
मुदिता : सबसे पहले तो लड़कियों की शिक्षा को लेकर काम करना चाहती हूं। मेरा परिवार सपोर्टिव था, इसलिए मैं आईएएस बन गई, लेकिन कई ऐसी लड़कियां हैं जो कर सकती थी, लेकिन सपोर्ट नहीं मिलने के कारण नहीं कर पाई। दूसरा, हैल्थ सेक्टर है, जो मेरा खुद का फिल्ड भी है। आज हम सुनते हैं कि किस प्रकार की गंभीर बीमारियां हैं, जिनसे लोगों की मौत हो रही है। इस क्षेत्र में यदि मुझे मौका मिला तो जागरुकता के हिसाब से कुछ करना चाहुंगी।
पत्रिका : प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं को क्या कहना चाहेंगी?
मुदिता : अपनी क्षमताओं को पहचानें और किसी के दबाव में आकर कोई निर्णय न लें। आपका परिवार नहीं समझ रहा है तो पहले उन्हें समझाने का प्रयास करें। एक बार आपने केरियर को लेकर कोई निर्णय ले लिया है तो फिर उससे पीछे नहीं हटें। क्योंकि कोई भी सफलता मेहनत और संघर्ष मांगती है। मैं हमेशा कवि हरिवंशराय बच्चन की कविता की ये पक्तियां बोलती हूं कि - जब नाव जल में छोड़ दी, तूफ़ान में ही मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को, फिर धार क्या मझधार क्या
पत्रिका : पत्रिका के पाठकों के लिए कोई संदेश देना चाहती हैं।
मुदिता : पत्रिका के मंच से मैं कहना चाहती हूं कि यह मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है, यह उन सब की सफलता है, जिनसे मैं आज तक मिली और उनसे कुछ न कुछ सीखा। उन सबको मेरी ओर से बहुत-बहुत शुक्रिया और तहेदिल से धन्यवाद।
Published on:
30 May 2023 12:15 pm
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