
नौकरी से छुट्टी मिलने पर करते हैं किसानी
एक्सक्लूसिव
नागौर. पढ़ाई के बीच नौकरी की मुश्किल भी खेती से रिश्ता जुदा नहीं कर पाई। कभी-कभार तबादले भी हुए पर घर के साथ खेती की चिंता रही। कुछ अपने दायित्व संभाल के साथ खेत जाने से नहीं चूकते। खेती के प्रति उनका समर्पण आज भी बरकरार है। कार्यस्थल से घर-खेत की दूरी भी इनके लिए मायने नहीं रखती। इधर, ड्यूटी खत्म तो उधर खेत संभालने की जद्दोजहद। किसी को नौकरी में तीस साल पूरे हो गए तो किसी को पच्चीस साल। तमाम उलझन के बाद भी खुद किसान बनकर खेत पर काम कर रहे हैं।
फलदार पौधे लगाने का जुनून
छह बार पोस्ट ग्रेजुएट के बाद अब पीएचडी कर रहे डॉ शीशराम चौधरी इस समय नागौर में एडिशनल सीएमएचओ हैं। मूल निवास स्थान झुंझुनूं में खेती है पर यहां भी कार्य करते हुए उन्होंने करीब पंद्रह बीघा का खेत नागौर में तैयार किया है। जोधपुर बायपास रोड पर इस खेत में मूंग-बाजरा के अलावा फलदार पौधे लगाना उनका शौक है। डॉ चौधरी ने बताया कि उनके खेत में चंदन, सागवान, शीशम के पेड़ लगे हैं। साथ ही अनार, नींबू, मौसमी, आम, किन्नू, जामुन, अंगूर, अंजीर, सीताफल, बेर आदि फलदार पौधे व पेड़ भी लगे हैं। उनका कहना है कि ड्यूटी टाइम के अलावा तमाम समय यहीं बिताते हैं, यह खेत उनके वर्तमान निवास से महज साढ़े आठ किलोमीटर दूर है। उनका हर सरकारी डिस्पेंसरी में सौ फलदार पौधे लगाने का लक्ष्य है, काफी डिस्पेंसरी में यह लक्ष्य पूरा हो चुका है।
रिटायरमेंट के नजदीक पर लगाव वैसा
गिनाणी तालाब स्थित राउमा बालिका विद्यालय के प्राचार्य बस्तीराम सांगवा चार-छह महीने बाद रिटायर होने वाले हैं। बावजूद इसके पूरी नौकरी के बीच खेतीबाड़ी से सिलसिला नहीं तोड़ा। तरनाऊ स्थित खेत पर वो इस उम्र में भी समय मिलते ही खेती-बाड़ी में सहयोग करने पहुंच जाते हैं। करीब पंद्रह बीघा खेत से यह जुड़ाव गांव से भी बना रखा है। बेटे-बहू सब सरकारी सेवा में, बावजूद खेती करने की ललक नहीं छूटी। ऐसे ही शिक्षा विभाग के पृथ्वी सिंह कविया हो या स्कूल शिक्षक पुष्प सिंह। खेती-बाड़ी करने का कोई मौका नहीं चूकते।
सख्त ड्यूटी पर खेती का काम भी
पुलिस की ड्यूटी वैसे ही कड़ी होती है। बावजूद इसके गांव/खेती से कौन मुंह मोड़ता है। एसपी ऑफिस में कार्यरत जेठाराम, जयसिंह, मूलाराम या फिर थानों में तैनात राम कैलाश, राकेश सांगवा, मुकनाराम, महावीर समेत अन्य। नौकरी के साथ खेती करना इनकी प्राथमिकता में शामिल है। इनका कहना है कि पुलिस की नौकरी में टाइम कम मिलता है पर जैसे ही मिला जाकर घर के साथ खेत संभालते हैं। खेत-खलिहान ही भारत की पहचान है। एक अफसर का कहना था कि कई लोगों ने कहा कि बेच दो खेत पर कैसे बेच दें, हमारे पुरखों की यादें जुड़ी हैं और हमारी विरासत भी यही है। खेत बेच दिया तो गांव छूट जाएगा।
Published on:
29 Jan 2025 09:09 pm
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