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शुभ कार्यों के लिए टलने वाले भद्रा काल में भी आएंगे मंगलकर्ता, स्थापित हो सकेंगे विघ्नहर्ता

भद्रा काल में ही हुआ था गणपति का जन्म, इसलिए स्थापना में भी यह समय नहीं है वर्जित

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शुभ कार्यों के लिए टलने वाले भद्रा काल में भी आएंगे मंगलकर्ता, स्थापित हो सकेंगे विघ्नहर्ता

शुभ कार्यों के लिए टलने वाले भद्रा काल में भी आएंगे मंगलकर्ता, स्थापित हो सकेंगे विघ्नहर्ता

नागौर. प्रथम पूज्य गौरीनंदन गणेश का मुख्य पर्व शनिवार को गणेश चतुर्थी से शुरू होगा। गणेशोत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलेगा। उत्सव को लेकर श्रद्धालुओं में उल्लास बना हुआ है। पूर्व संध्या पर इसकी जोरदार तैयारियां की गई है। हालांकि इस बार बड़े-बड़े पांडाल और सामूहिक आयोजनों पर रोक रहेगी, लेकिन घरों में धूमधाम से महोत्सव मनाया जाएगा। गणेश स्थापना के बारे में यह खास है कि भद्रा काल में भी मूर्ति स्थापित की जा सकी। अन्यथा आमतौर पर शुभ कार्यों के लिए भद्रा काल को टाला जाता है, लेकिन विघ्नहर्ता की स्थापना में यह काल भी शुभ बन जाता है। मान्यता है कि गणपति का जन्म भद्रा काल में हुआ था इसलिए मूर्ति स्थापना इस काल में करने से कोई दोष लागू नहीं होता यह शास्त्रोक्त नियम है। पं.सुनील दाधीच बताते हैं कि विघ्नहर्ता गणपति का जन्म भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को हस्त नक्षत्र में दोपहर के समय भद्रा काल में हुआ था। समस्त विघ्नों को हरण करने वाले विघ्न विनाशक गणपति को अनेकों नामों से पुकारते हैं। भक्त अपनी सुविधा के अनुसार घर में छोटी या सामूहिक रूप से बड़ी मूर्तियों लाकर विधिवत स्थापना व पूजन कर गणेशोत्सव मना सकते हैं। भगवान गणपति प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

बैठी मुद्रा में मूषक के साथ मूर्ति लानी चाहिए
गणेश प्रतिमा घर लाने से पहले कुछ सावधानी रखनी चाहिए, जिससे फल ज्यादा मिलता है। गणेश की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में हो और साथ में उनका वाहन मूषक भी होना चाहिए, जिससे पूजा में श्रेष्ठता मिलती है। गणपति की सूंड बाएं तरफ घूमी हुई ज्यादा शुभ मानी गई है। व्यक्ति अपनी राशि अनुसार भी गणपति के मूर्ति का रंग चयन कर सकता है, जो ज्यादा लाभदायक सिद्ध होता है। इसके साथ ही गणपति पूजन में विशेष रूप से सभी तरह की पूजन सामग्रियों के साथ दुर्वा, सिंदूर चंदन तथा हल्दी का प्रयोग अवश्य करें।

मोदक का भोग लगाएं, तुलसी न चढ़ाएं
भगवान विनायक के साथ रिद्धि सिद्धि का भी पूजन करना चाहिए गणेश जी को बुद्धि का दाता भी कहा गया है। जिनकी कुंडली में बुध से संबंधित कोई समस्या हो तो उन्हें इस दिन गणपति पूजन अवश्य करना चाहिए। गणपति पूजन में भगवान को 11 या 21 मोदक या मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाए तथा भोग प्रसाद के साथ दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के द्वारा दिए हुए श्राप के कारण चंद्रमा के दर्शन निषेध माने गए हैं। इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। इससे झूठा आरोप लगने का भय रहता है जिस आरोप में भगवान कृष्ण को भी नहीं बख्शा था। तुलसी पत्र गणपति को चढ़ाना निषेध है इसलिए तुलसी पत्र गणपति की पूजा में नहीं चढ़ाएं।

गणपति बिराजित करने का शुभ मुहूत्र्त
भगवान गणेश की विधिवत षोडशोपचार पूजन के बाद सुबह-शाम दोनों समय गणेश चालीसा तथा ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का जाप एवं आरती अवश्य करनी चाहिए। गणेश पूजन में कलश स्थापना, ज्वारारोपण करना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन मूर्ति स्थापना एवं पूजन का विशेष समय रहेगा। सुबह शुभ का चौघडिय़ा 7.51 मिनट से 9.25 तक बजे तक एवं दोपहर अभिजीत मुहूर्त 12.11 से 1.01 तक रहेगा। चंचल, लाभ और अमृत का चौघडिय़ा क्रमश: 11.41 से 5.30 तक रहेगा। इस समय में मूर्ति स्थापना करना श्रेष्ठ रहेगा। इस दिन भद्रा भी होती है, लेकिन भद्रा काल में भी गणेश स्थापना की जा सकती है।