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नागौर. समस तालाब के पास बने नगरपरिषद के पार्क में आज रविवार को सुबह 8 बजे सभापति वार्ड पार्षद के साथ पौधरोपण कार्य के लिए पहुंचे, लेकिन इस दौरान उन्होने तालाब का भी निरीक्षण किया। इस दौरान तालाब में फैली गंदगी को देखकर नाराजगी जताई, उन्होने कहा कि नालियो का गंदा पानी आने से ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंच रहा है तथा मोहल्लेवासियों को भी गंदगी से परेशान होना पड़ता है। उन्होने कहा कि जिले की विरासत को बचाने के लिए तालाब की मरम्मत करवाई जाएगी, जिसमें मोहल्लेवासी अपना सहयोग प्रदान करेगें तो नालियों का पानी तालाब में जाने से रोककर तालाब की सफाई करवाई जाएगी। बाद में सभापति तथा पार्षद घेवरचंद के नेतृत्व में वाडवासियों ने पौधरोपण किया। इस दौरान आयोजन समिति के मास्टर अबरार खान ने बताया कि पौधरोपण के साथ ही पार्क में सफाई व वार्ड में विकास के मुद्दों को लेकर चर्चा की गई। इस दौरान मोहम्मद जावेद गौरी सहित बड़ी संख्या में वार्डवासी मौजूद रहे।
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राम के हाथों पर सजेगी रहीम की बनी हुई राखी
कुचामनसिटी. भाई-बहनों के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन करीब आ रहा है। इसे लेकर शहर के कई मुस्लिम परिवार अपने घरों में राखियां बनाने में जुटे हुए हैं। यह परिवार जहां साम्प्रदायिक सद्भावना की मिसाल बन रहे हैं, साथ ही अपनी आजीविका भी चला रहे हैं। यूं तो इन दिनों सोने, चांदी के साथ-साथ फोटोफे्रम व आर्टीफिशयल राखियां भी बाजार में बिकने लगी है, लेकिन पारंपरिक रेशम की राखी का क्रेज अब भी बना हुआ है। शहर के लुहारिया बास के कई घरों में वर्षों से राखी बनाने का कार्य कुटीर उद्योग के रुप में चल
रहा है।
राखी बनाने वाले परिवारों ने बताया कि हमारे पूर्वज भी रक्षाबंधन के तीन-चार माह पहले से ही राखियां बनाने में जुट जाते थे। पहले केवल रेशम के धागे को ही कच्ची सजावट के साथ तैयार कर राखियां बनाई जाती थी। धीरे-धीरे जमाने के साथ परिवर्तन आता गया और इन परिवारों ने भी मखमली कपड़े के साथ आकर्षक मोतियों की फैशन के अनुरूप राखियां पिरोनी शुरु कर दी। यह लोग पूरे परिवार के साथ अलग-अलग कार्य करते हुए राखियां बना रहे है। जो रक्षाबंधन के दिन हिन्दू परिवारों में बहिनें अपने भाइयों की कलाई पर सजाएगी। यह पर्व भाई बहिनों के प्रेम और रक्षा का प्रतीक है। ऐसे में इन परिवारों को राखियों से अच्छी आमदनी भी हो जाती है।
दूसरे राज्यों में भी जाती है राखियां
परिवार हर वर्ष राखियों की अलग-अलग वैरायटी बनाने के लिए मशक्कत करते है। हर बार इन्हें राखियों के अलग-अलग कच्चा माल खरीदना पड़ता है। इस बार यह लोग मखमली मोटे कपड़े को अलग-अलग डिजाइनों में काटकर इस पर सुंदर कशीदे लगाकर इसे रेशम के धागे से जोड़ रहे है। इसके अलावा रेशम के धागे में चमकीले मोती पिरो कर राखियां बनाई जा रही है। रमजान ने बताया कि यह राखियां जिले के अलग-अलग शहरों में भिजवाने के साथ ही दूसरे राज्यों में भी भिजवाई जाती है। इन परिवारों के बच्चे भी अपनी स्कूली शिक्षा के साथ-साथ घर में हो रहे काम में हाथ बंटाते हैं। इससे जहां यह कार्य परम्परागत तरीके से आगे बढ रहा है वहीं बचपन में ही अपने परिवार के साथ सीखा जा रहा है यह कार्य बच्चों को भी रोजगार प्रदान करने में सहायक बन रहा है। बच्चों ने बताया कि अलग-अलग मनमोहक राखियां बनाने में खुशी होती है। परिवार चार महिनों तक लगातार राखियां बनाकर इक_ी करते रहते है। रक्षाबंधन से करीब एक माह पहले यह परिवार इन राखियों को दूसरे कई राज्यों व जिले के अलग-अलग बाजारों में भिजवा देते है।
चाइनीज राखियों ने बिगाड़ा जायका
पिछले कुछ वर्षों में बाजार में सस्ती और सुंदर दिखने वाली चाइनीज राखियों ने इन परिवारों का मुनाफा मार दिया है। इन दिनों फोटोफे्रम की राखियों का चलन भी बढ रहा है। इसके अलावा कुछ लोग सोने-चांदी की राखियां भी बांधने लगे है। हालांकि आज भी हाथ से बनी राखियों की बाजार में मांग है। जिसके चलते अभी भी दर्जनों परिवार इस कार्य को कुटीर उद्योग के रुप में अपनाएं हुए है।
Updated on:
05 Aug 2018 06:37 pm
Published on:
05 Aug 2018 04:57 pm
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