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ईष्र्या मनुष्य के पतन का मुख्य कारक

Nagaur. रामद्वारा केशव दास महाराज बगीची बख्तासागर में भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए महंत जानकीदास ने रुक्मणी विवाह का वर्णन किया

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Jealousy is the main factor in the downfall of man

Nagaur. Mahant Jankidas delivering a discourse on Bhagwat Katha at Ramdwara Keshav Das Maharaj Bagichi Bakhtasagar

नागौर. रामद्वारा केशव दास महाराज बगीची बख्तासागर में भागवत कथा पर प्रवचन करते हुए महंत जानकीदास ने रुक्मणी विवाह का वर्णन किया। इस प्रसंग के माध्यम से ईष्र्या के उद्भव को को पतन का कारक के तौर पर बताते हुए कहा कि जब किसी की प्रगति दूसरे को अप्रिय लगने लगे तो वहां ही ईष्र्या का जन्म होता है। मानव कि यह एक स्वाभाविक कमजोरी है कि वह दूसरों के उत्कर्ष को सहन नहीं कर पाता। ईष्र्या मनुष्य की अत्यंत कुत्सित मनोवृति का परिणाम है। आज असाधारण रूप से ईष्र्यालु व्यक्तियों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। इसलिए हमारे देश की प्रगति उतनी नहीं हो पाई है। ईष्र्या का एक मुख्य कारण यह भी है कि किसी अन्य को यश,वैभव, ज्ञान ,बुद्धि या व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ता हुआ देख ही नहीं सकते। यहां तक कि किसी और की प्रशंसा भी सुनी नहीं जाती। अच्छे कार्यों को संपादित करने में बाधाएं उत्पन्न कर दी जाती है। ईष्र्या के मानसिक विकार की ज्वाला से व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है। ईष्र्या का स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । इन विकृतियों से कई ऐसे रोग होते हैं। मनुष्य को परनिंदा से बचना चाहिए।
विनम्रतायुक्त सादा जीवन ही सच्चे सुख का आधार
नागौर. रामपोल सत्संग भवन में चल रहे श्रीमदभागवत कथा में प्रवचन करते हुए संत रमताराम ने कहा विनम्रतायुक्त सादा जीवन ही सच्चे व सुखी जीवन का आधार है। इसका अनुभव भी इसी मनुष्य शरीर में किया जा सकता है। मानव जीवन तो अनंत प्रकाश के ज्ञान आनन्द का भण्डार है। प्रत्येक मनुष्य को अपने सभी कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। सत्संग नहीं करने से ही संताप होता है। सत्संग करने से अज्ञान का अंधकार हटता है तो फिर ज्ञान के प्रकाश में आनंद की रोशनी फैलती है। इससे पूरा जीवन प्रकाशित होने लगता है। रामनामी महंत मुरलीराम महाराज ने ने कहा कि सत्संग प्रत्येक को करना चाहिए। देव होना या दानव होना, यह मनुष्य के हाथों में है। पुण्रू की इच्छा तो सभी रखते हैं, लेकिन करने की इच्छा नहीं रखते। खुद ही पुण्य के कर्तव्य करने चाहिए। कर्मानुसार ही फल प्राप्त होता है। इसलिए सत्कर्म करने की जरूरत रहती है। संतों का सत्संग हुआ तो फिर अज्ञान हट जाएगा,और पुण्य मार्ग का उद्भव होने लगेगा। इसलिए सत्संग तो बहुत जरूरी है। भक्ति मार्ग के लिए संयम की आवश्यकता होती है। मन के आवेग को प्रभु के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए। प्रभु को सभी कुछ समर्पित करने पर खुद-ब-खुद पुण्य के प्रकाश के साथ ही भक्ति के उजाले में मानव प्रकाशयमय हो जाता है। भागवत कथा के दौरान भगवान की अनेक लीलाओं के साथ गोवर्धन लीला का उत्सव धूमधाम से मनाया गया इसमें बाल संत रामगोपाल, साध्वी मोहनी बाई, राजाराम महाराज, माणकराम महाराज, कांतिलाल कंसारा, रामअवतार शर्मा, मनोज कुमार शमार्, मांगीलाल लौहिय,ा राजाराम तोषनीवाल, आनंद ,नंदलाल प्रजापत व सहदेव चौधरी आदि मौजूद थे।