
चौसला. कस्बे के वार्ड एक में चतुर्थी की कथा सुनती महिलाएं व बालिकाएं। पत्रिका
चौसला. क्षेत्र में शुक्रवार को घरों में तिलकुटा (संकष्ट) चौथ का पर्व मनाया गया। महिलाएं सुबह से ही पर्व की तैयारी में जुट गई। घरों में पकवान बनाए गए। दिनभर महिलाओं ने निराहार व्रत रखा तथा शाम को चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत खोला। माघ मास में आने वाली चतुर्थी को संकट हरण चौथ भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही इस व्रत को मनाने की परंपरा चली आ रही है। माघ में कृष्ण पक्ष चतुर्थ तिथि को व्रत करने वाली महिलाएं पूरे दिन निर्जल व्रत रख श्री गणेश का पूजन-अर्चन करती है। शास्त्रों में चतुर्थी का विशेष महत्व है। ब्राम्हणों के अनुसार समस्त देवताओं की शक्ति से सम्पन्न मंगलमूर्ति गणपति का माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को प्राकट्य हुआ था। इस दिन खासतौर से श्रद्धाभाव से बनारस में गणेशजी की प्रतिमा की स्थापना करते है। अन्य क्षेत्रों में भी गणेश भक्त संकट हरण व तिलकुटा गणेश चतुर्थी मानकर बड़े श्रद्धाभाव से व्रत रखते है। इस दिन रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने के बाद संकट नाशक गणेश स्त्रोत का पाठ या गणेशजी के बारह नाम सुमुख, एकदंत, कपिल, विनायक, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्नविनाशक, धुम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र व गजानन आदि नामों का उच्चारण करके गणेशजी का पूजन करना चाहिए। गणेशजी को हरी घास की माला बनाकर पहनाने का भी विशेष महत्व माना जाता है।
होते है सभी संकट समाप्त
संकट हरण श्री गणेश चतुर्थी के प्रभाव से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। इस दिन सभी कार्य बिना रुके सम्पन्न हो जाते हैं। पुराणों में इस बात का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन कहा गया है कि इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु, मानसिक तथा शारीरिक बल की वृद्धि होती है। इस दिन गणेशजी के वाहक मूशक और गजराज को भी लड्डुओं का भोग लगाया जाना चाहिए। इससे सभी संकटों एवं बाधाओं की समाप्ति होती है।
Published on:
05 Jan 2018 07:43 pm
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