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राजस्‍थान के ऐसे पालिकाध्‍यक्ष जो सरकारी वाहन नहीं लेते काम

मेड़ता पालिकाध्यक्ष नहीं कर रहे सरकारी वाहन का उपयोग, 5 साल में 10.80 लाख बचाएंगे, शपथ लेते वक्त की थी घोषणा - नहीं करुंगा सरकारी वाहन का प्रयोग, हर महीने औसतन 2500 किमी चलने वाला वाहन अब सरकारी काम से केवल 150 किमी चला

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Merta City Chairman

मेड़ता सिटी. अपने निजी वाहन में बैठते हुए पालिकाध्यक्ष।

राधेश्याम शर्मा @ मेड़ता सिटी. आज 14 मार्च को पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल का एक महीना पूरा हो रहा है। जब पालिकाध्यक्ष ने पदभार ग्रहण किया उस समय घोषणा की थी कि पालिकाध्यक्ष रहते हुए 5 सालों में सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करुंगा। हर काम अपने निजी वाहन से ही करुंगा। इससे पहले पालिका का सरकारी वाहन औसतन 2500 किमी प्रतिमाह चलता था। लेकिन टाक के पालिकाध्यक्ष बनने के पहले एक महीने में यह सरकारी वाहन केवल 150 किमी चला है। इस हिसाब से पालिकाध्यक्ष सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करके 5 साल में 10 लाख 80 हजार का सरकारी डीजल बचाएंगे।

अपने कार्य क्षेत्र में संसाधनों का दुरुपयोग एवं भ्रष्टाचार को लेकर शुरू से ही सख्त माने जाने वाले पालिकाध्यक्ष गौतम टाक ने दूसरी बार अध्यक्ष पद की शपथ लेते समय अपने उद्बोधन में सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करने की घोषणा मंच से की थी। संभवतया अध्यक्ष रहते हुए सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करने वाले गौतम टाक प्रदेश के एकमात्र पालिकाध्यक्ष हैं। पालिकाध्यक्ष सरकारी वाहन का उपयोग नहीं करके एक महीने में करीब 18 हजार रुपए के सरकारी डीजल की बचत कर रहे हैं। इस एक महीने में उन्होंने जयपुर और लक्ष्मणगढ़ की 800 किमी की यात्रा अपने निजी वाहन से ही की। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व वर्ष 2000 से 2005 तक पालिकाध्यक्ष रहते हुए टाक ने स्वयं पर भ्रष्टाचार का एक रूपया भी लेना साबित करने पर अपनी पूरी संपत्ति दान में देने की घोषणा की थी।

एईएन, जेईएन सरकारी कार्य से ही करते हैं वाहन का उपयोग
पालिकाध्यक्ष के सरकारी वाहन को कभी कभार विकास कार्यो का निरीक्षण, मौका मुआयना जैसे कार्यो के लिए एईएन, जेईएन करते हैं। जिसके चलते अब यह गाड़ी नाम मात्र ही चल रही है। इस तरह अब एक महीने में 18 हजार, एक साल में 2 लाख 16 हजार और पांच साल में 10 लाख 80 हजार रुपए बचेंगे।

एक और घोषणा के लिए सुर्खियों में, अपनी तनख्वाह जरूरतमंद, बीमार के लिए करेंगे खर्च

टाक अपने पिछले कार्यकाल में बतौर पालिकाध्यक्ष मिलने वाली तनख्वाह को बीमार जरूरतमंद रोगी के उपचार के लिए मेडिकल पर जमा करवाते थे। इस बार कुछ नया करते हुए पालकिाध्यक्ष अपनी तनख्वाह में उतनी ही राशि अपनी ओर से मिलाकर दुगुनी करते हुए मेडिकल पर जमा करवाएंगे। जिस राशि का जरूरतमंद बीमार के सहायतार्थ उपयोग होगा।