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Nagaur patrika…ज्ञान को जीवन में उतारकर आत्मा को शुद्ध करना ही सच्चा साधन

जयमल जैन पौषधशाला में प्रवचन में श्रद्धालुओं को बताई साधना की विशेषताएंनागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चातुर्मास में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने कहा कि साधना का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्ति तक सीमित नहीं होता है, बल्कि आत्मा को परमात्मा में रूपांतरित करना ही साधक का परम लक्ष्य होता है। उन्होंने भगवान […]

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जयमल जैन पौषधशाला में प्रवचन में श्रद्धालुओं को बताई साधना की विशेषताएं
नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चातुर्मास में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने कहा कि साधना का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्ति तक सीमित नहीं होता है, बल्कि आत्मा को परमात्मा में रूपांतरित करना ही साधक का परम लक्ष्य होता है। उन्होंने भगवान महावीर स्वामी और वेशिकायन तापस के प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि तापस को ज्ञान क अनुभूति होने पर यह स्पष्ट हुआ कि केवल जानना पर्याप्त नहीं, बल्कि उस ज्ञान को जीवन में उतारकर आत्मा को शुद्ध करना ही सच्चा साधन है। उन्होंने कहा कि जब आत्मा कुमार्ग की ओर अग्रसर होती है तो वह स्वयं के लिए शत्रु बन जाती है। उसकी ओर से किए गए कर्म फिर अच्छे कर्म की श्रेणी में नही आते हैं, और अपने कर्मो से वह खुद का पतन कर लेता है। यही आत्मा जब सुमार्ग पर चलती है तो खुद के िलए सबसे बड़ी मित्र बन जाती है। इसलिए, आत्मा से सच्ची मित्रता करना हर साधक के लिए आवश्यक है। उन्होंने दवा उद्धरण देते हुए समझाया कि जैसे यह शरीर के बीमारियों के उन्मूलन का कार्य करती है, और पीडि़त को राहत मिल जाती है। उसी तर्ज पर धर्म हमारे दोषरूपी बीमारियों का उन्मूलन करता है। इसलिए साधना को केवल साधना नहीं, बल्कि स्वयं को अध्यात्मिक रूप से विकसित करने का एक माध्यम समझना चाहिए। यह परमात्मा तक पहुंचने की सीढ़ी होती है, लेकिन इस सीढ़ी पर हर कोई नहीं चल सकता है। सीढिय़ों पर से कई गिरते हैं, और कई संभल भी जाते हैँ। इसमें से जो गिर गया, और उठने का प्रयास नहीं किया तो उसका पतन हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि साधना तो साधक की आत्मा को अग्नि की तरह तपाने का कार्य करती है। जिसने अग्नि का यह ताप सह लिया वह निखर जाता है, और जो बीच में टूट गया तो फिर वह बिखर जाता है। इसलिए साधना को केवल साधना ् मानकर सीमित कर देंगे तो फिर आत्म-नियंत्रण नहीं हो पाता है। उन्होंने कहा कि साधना को जीवन का साधन बनाकर ही हम अपने भीतर के परमात्मा तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा की शुद्धि और उन्नति के लिए निरंतर प्रयास करने के साथ ही धर्म को जीवन में अपनाते हैं तो फिर साधना के माध्यम से अपना आत्मिक विकास कर सकते हैं। यह विकास समग्र रूप से मार्ग प्रशस्त करने वाला होता है। यह विकास परमात्मा तक पहुंचने के लिए एक रोशनी का का कार्य करता है।
सही उत्तर देने पर हुए सम्मानित
संघ मंत्री हरकचंद ललवाणी ने बताया कि प्रवचन प्रश्नो के सही उत्तर देने वालों में पिंकी नाहटा, वीणा बोहरा को रजत मेडल से सम्मानित किया गया। इसी तरह बोनस प्रश्नो के सही देने पर उत्तर रेखाकमल सुराणा, मंजू ललवाणी के देने पर इनको भी सम्मानित किया गया। प्रवचन प्रभावना का लाभ चच़लमल रुपेश कुमार रिधान पींचा एवं अतिथि सत्कार का लाभ महावीरचंद भूरट परिवार को मिला। इस दौरान मूलचंद ललवाणी, नरपतचंद ललवाणी, सुनील ललवाणी, अंकित ललवाणी आदि उपस्थित थे।