सूत्रों के अनुसार कुछ माह पहले हत्याकाण्ड के एक आरोपी का जेल में रेपिड टेस्ट हुआ तो एचआईवी पॉजिटिव पाया गया था। अलगे चरण में जेएलएन अस्पताल में हुई जांच के बाद उसे एड्स संक्रमित होने की पुष्टि कर दी गई थी। इसके अलावा नागौर/मेड़ता जेल में आए बंदियों के एचआईवी टेस्ट में दो अन्य बंदी भी संक्रमित/पॉजिटिव पाए गए। इसके अलावा पिछले पांच साल में करीब दो दर्जन से अधिक बंदियों के एचआईवी संक्रमित/पॉजिटिव होने का खुलासा हो चुका। इसके अलावा टीबी, सिफलिश, हैपेटाइटिस व एसटीआई की जांच जेल में हो रही है। मुख्यतया एचआईवी व टीबी की जांच है।सूत्र बताते हैं कि नागौर/मेड़ता में आने वाले सभी बंदी विचारधीन होते हैं।
कोई दो-चार माह में ही यहां से चला जाता है तो कोई तीन-चार साल से बंद है। नागौर में तो महिला बंदी भी रहती हैं। कुछ समय पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और फिर राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी जेल के बंदियों के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने के आदेश दिए थे। आयोग ने जहां हर छह माह में टीबी व एचआईजी जांच कराते रहने को कहा वहीं उच्च न्यायालय ने भी जेल में बंदियों के स्वास्थ्य को लेकर पूरी तरह सतर्कता बरतने को कहा। इसमें जेल में मेडिकल अफसर/नर्स आदि की व्यवस्था करने के साथ आवश्यकता पडऩे पर अस्पताल की सुविधा मुहैया कराने के भी आदेश दिए थे।
सबकी होती है एचआईवी जांच सूत्र बताते हैं कि बंदी महिला हो या पुरुष, जेल में आते ही उसका रेपिड टेस्ट होता है। इसकी रिपोर्ट पंद्रह-बीस मिनट में आ जाती है। ऐसे में एचआईवी संक्रमित/पॉजिटिव पाए जाने पर उसकी जेएलएन अस्पताल में जांच कराई जाती है, एड्स संक्रमण की पुष्टि हो जाने के बाद उसे एआरटी सेंटर के जरिए दवा सहित अन्य सरकारी लाभ से जोड़ दिया जाता है। नागौर जेल में मेडिकल अफसर/ मेल नर्सिंग अफसर भी रोज मरीजों की जांच करते हैं। ऐसे में लम्बे समय रहने वाले नागौर जेल के बंदियों की भी समय-समय पर एचआईवी की जांच की जा रही है।
नशा नहीं मिलने वालों की तीमारदारी मुश्किल बताया जाता है कि जेल में नशे की तस्करी अथवा नशेड़ी अपराधियों को रखना बड़ा मुश्किल काम है। वो इसलिए भी कि आदतन नशेड़ी बंदी को नशे की खुराक नहीं मिलने पर बेचैन हो जाते हैं, उनकी पीड़ा/परेशानी ऐसी की उन्हें संभालना तक मुश्किल हो जाता है। ऐसे में मेडिकल अफसर जरूरी दवा देता है, मामला बढऩे पर बंदी को जेएलएन अस्पताल में भिजवाया जाता है। पिछले दिनों चप्पल में नशे की गोलियां देती आई महिलाओं को जेलकर्मियों ने दबोचा था। ऐसा माना जाता है कि जेल के बंदियों में करीब तीस फीसदी नशे से ग्रसित होते हैं।
इनका कहना… नागौर जेल में मेडिकल अफसर व नर्सिंगकर्मी है। ये बंदियों का उपचार करते हैं। एचआईवी संक्रमण की जांच भी हर बंदी के लिए अनिवार्य है। टीबी के रोगियों को दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया जाता है। बंदियों के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जाता है।
-पृथ्वी सिंह कविया, जेल उपाधीक्षक नागौर सभी जेलों में एचआईवी व टीबी जांच का कार्यक्रम राजस्थान एड्स कंट्रोल सोसायटी, जेल विभाग आदि के सहयोग से चलाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के निर्देश पर ऐसे बंदियों की जानकारी जुटाकर दवा समेत अन्य लाभ दिलाने के प्रयास किए जाते हैं।
-नितेश कुमार सोलंकी, प्रतिनिधि एनजीओ