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नागौर में सड़क हादसों की भयावह तस्वीर: दुर्घटनाएं कम, मौतें प्रदेश औसत से दोगुनी

सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में नागौर का स्थान प्रदेश में 29वां, लेकिन मृतकों की संख्या में औसतन 14वां स्थान, एकीकृत सडक़ दुर्घटना डेटाबेस : प्रदेश में प्रति दुर्घटना 0.457 तो नागौर में 0.755 की हो रही मौत - राज्य सरकार की सख्ती के बाद पुलिस विभाग ने बढ़ाई कार्रवाई, परिवहन विभाग की घटी

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Accident photo

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नागौर. राजस्थान में सड़क दुर्घटनाओं को लेकर लगातार चिंता जताई जा रही है। वहीं नागौर जिले की स्थिति प्रदेश के औसत से भी अधिक चिंताजनक है। सडक़ हादसों की संख्या में नागौर जहां प्रदेश में 29वें स्थान पर है, वहीं इन हादसों में होने वाली मौतों के औसत के मामले में नागौर 14वें स्थान पर पहुंच गया है। यह अंतर बढ़ते जोखिम और सुरक्षा उपायों की कमी को उजागर करता है।

गत 3 दिसम्बर को हुई जिला सड़क सुरक्षा समिति नागौर की बैठक में आईएआरडी (एकीकृत सड़क दुर्घटना डेटाबेस) के डीआरएम विजय जांगिड़ की ओर से पेश किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में जहां प्रति दुर्घटना औसतन 0.457 लोगों की जान जाती है, वहीं नागौर में यह औसत बढ़कर 0.755 पहुंच गया है। यानी नागौर में होने वाली हर चार सड़क दुर्घटनाओं में औसतन करीब तीन व्यक्ति की मौत हो रही है। राजस्थान में नवम्बर 2025 तक जहां कुल 30,948 सड़क हादसों में 11,018 लोगों की मौत हुई, वहीं नागौर जिले में 346 हादसों में 254 लोगों की मौत हो गई। स्थिति बताती है कि हादसे भले कम हों, लेकिन उनमें मृत्यु दर अधिक घातक है।

परिवहन विभाग की रोक प्रभावी नहीं

गौरतलब है कि प्रदेशभर में सड़क सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार की ओर से सख्ती बढ़ाए जाने के बाद पुलिस विभाग ने कार्रवाई तेज कर दी है। जिले में भी पुलिस ने चालान, वाहन चेकिंग, ओवरलोडिंग एवं बिना हेलमेट-सीटबेल्ट के खिलाफ अभियान चलाकर सड़कों पर अनुशासन बढ़ाने का प्रयास किया है। लेकिन परिवहन विभाग की ओर से की जाने वाली कार्रवाई में स्पष्ट कमी दर्ज की गई है, जिससे नियम तोडऩे वाले वाहन चालकों पर प्रभावी रोक नहीं लग पा रही। विशेषज्ञों का मानना है कि सड़क सुरक्षा केवल पुलिस कार्रवाई से नहीं, बल्कि पुलिस और परिवहन विभाग दोनों की संयुक्त रणनीति से ही प्रभावी हो सकती है।

समय पर उपचार नहीं मिलने से मौतें ज्यादा

विश्लेषण बताता है कि जिले में ओवरस्पीडिंग, गलत दिशा में वाहन चलाना, शराब पीकर ड्राइविंग, अवैध ओवरलोडिंग और खराब सड़कें, तेज रोशनी वाली एलईडी लाइटें दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क किनारे सुरक्षा अवसंरचना का अभाव भी दुर्घटनाओं को गंभीर बना रहा है। कई मामलों में समय पर चिकित्सकीय सहायता न मिलने से भी मृतकों की संख्या बढ़ जाती है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 से 2025 तक हुए कुल सडक़ हादसों में 80 फीसदी हादसे ग्रामीण क्षेत्र में तथा 20 फीसदी हादसे शहरी क्षेत्र में हुए हैं, वहीं मौतों के मामले में 86 फीसदी मौत ग्रामीण क्षेत्र के हादसों में और 14 फीसदी मौतें शहरी क्षेत्र के हादसों में हुई है। यानी गांव में हुए हादसों के घायलों को अस्पताल पहुंचने में देरी हुई, जिसके कारण मौत का औसत ज्यादा रहा।

त्वरित सुधार की आवश्यकता

सडक़ सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार मौतों के औसत को कम करने के लिए जिले में दुर्घटना संभावित ब्लैक स्पॉट्स की पहचान कर त्वरित सुधार करने होंगे। साथ ही हेलमेट और सीटबेल्ट के लिए कड़ाई, भारी वाहनों की मॉनिटरिंग, स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम और परिवहन विभाग की सक्रियता बढ़ाना बेहद जरूरी कदम है। जिले में वर्ष 2025 में अब तक कोतवाली, खींवसर, सदर, थांवला, गोटन व रोल थाना क्षेत्रों में सबसे ज्यादा हादसे हुए हैं, जबकि हादसों में मरने वालों की संख्या खींवसर, सदर, गोटन, कोतवाली, मूण्डवा व सुरपालिया थाना क्षेत्र में ज्यादा रही है।