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बीज के साथ किसानों को तकनीकी जानकारी देगा अनुसंधान केन्द्र

मूंग एवं बाजरा के उन्नत किस्म के बीज का स्थानीय भौगोलिक वातावरण व मिट्टी के प्रभाव का किया अध्ययन, उत्पादित बीज के साथ ही वैज्ञानिक तरीके से इसकी बुआई एवं उत्पादन तक की जानकारी काश्तकारों को देंगे कृषि वैज्ञानिक, मूंग में जीएम फाइव एण्ड जीएम फोर बीज, तिल के आर. टी.351 किस्म का आधार बीज, बाजरा-एमपीएच 17 हाईब्रिड की बुआईजोधपुर कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में बुआई

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Nagaur patrika

Tutors and informative benefits of cultivating farming cultivators

नागौर. कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में मूंग, तिल एवं बाजरा के उन्नत बीजों के उत्पादन की बुआई की गई है। अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों के अनुसार स्थानीय स्तर पर इसकी बुआई से उत्पादन तक की प्रक्रिया पर पूरी नजर रखी गई है। बेहतर बारिश होने की स्थिति में यहां की मिट्टी में भी मिट्टी उपचार के बाद अच्छा उत्पादन हो सकता है। जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में इस बार बाजरा, तिल एवं मूंग की बुआई की गई है। मूंग में जीएम फाइव एण्ड जीएम फोर बीज की बुआई की गई है। जीएम फोर को 16 हेक्टेयर में एवं जीएफ फाइव को 40 हेक्टेयर में बुआई बोया गया है। बीज तैयार हो चुका है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन का औसत केवल 10 से 12 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर रहा। अनुसंधान केन्द्र के कृषि विशेषज्ञ रोहिताश्व बाजिया ने कहा कि किसानों को इसकी बुआई वैज्ञानिक तरीके से करनी पड़ेगी। वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल करने पर ही यह समुचित तरीके से उत्पादित हो सकेगा।
करेंगे विश्लेषण
कृषि अनुसंधान केन्द्र के विशेषज्ञ बाजिया ने बताया कि मूंग, तिल एवं बाजरा के बीज उत्पादन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। बुआई से लेकर इसके विकसित होने तक की समस्त तथ्यों का बारीकी से विश्लेषण किया गया है। इस दौरान पानी की कमी से होने वाले प्रभाव, वातावरण के संपर्क में होने वाले रोग एवं बचाव के लिए कारगर उपायों पर अध्ययन किया जा चुका है। अब जल्द ही किसानों का इसका बीज देने के साथ ही इसकी तकनीकी जानकारी दी जाएगी।
यह रखनी होगी सावधानियां
इसके लिए पहले पहले खेती गहरी जोताई करनी चाहिए। इसके पश्चात पाटा मार कर खेत को तैयार करना पड़ता है। इतना करने के बाद फिर बीज को उपचारित कर 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजाई करते हैं। इसके पांच से सात दिन में अंकुरण होता है, जीएफ फाइव 60 से 70 दिन में विकसित होती है। इसमें किसानों को खरपतवार प्रबंधन, पोषण प्रबंधन, जल प्रबंधन का पूरी तरह से ध्यान रखना पड़ेगा, अन्यथा इसका उत्पादन प्रभावित होगा। खरतपतवार को रासायनिक मिश्रण के इस्तेमाल से खत्म करने के साथ ही पोषण में शुरूआती दौर में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन देना पड़ेगा। बारिश होने पर उत्पादन भी निश्चित रूप से बेहतर होगा। अन्यथा बारिश नहीं होने की स्थिति में फूल आने से पहले एक बार इसकी भरपूर सिंचाई करनी पड़ती हैं।
तिल व बाजरा में रखना होगा ध्यान
अनुसंधान केन्द्र के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार केेन्द्र में तिल के आर. टी.351 किस्म का आधार बीज तैयार किया गया है। इसकी फसल 65 से 70 दिन में पकती है। प्रदेश में लगभग सभी जगह पर काश्तकारों के लिए इसकी बुआई एक मुनाफा है। इसमें भी खेत की जोताई करने के बाद मिट्टी उपचार कर इसमें नाइट्रोजन 40 से 60 किलोग्राम में नाइट्रोजन व 40 किलो फासफोरस देना पड़ता है। इसमें इस मिश्रण का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर करना पड़ेगा। इसमें फाइलोडी बीमारी होती है। यह बीमारी मिट्टी एवं बीज के माध्यम से होती है। बीमारी से ग्रसित होने पर पीडि़त प्लांट को निकालकर फेंकना पड़ेगा। उपचार के लिए दो एमीडा क्लोरपिड दवा का स्प्रे प्रति हेक्टेयर करना पड़ता है। ताकि रोग ग्रसित प्लांट को फेंकने के बाद भी इससे बीमारी के कीटाणु न फैले। काश्तकार को इसमें एक सेंटीमीटर से गहरा ज्यादा बीज नहीं डालना चाहिए। सिंचाई के लिए मीठा पानी चाहिए, खारा नहीं देना चाहिए। बारिश नहीं होने की स्थिति में इसकी दो बार सिंचाई करनी पड़ेगी। पहली सिंचाई फलोरिंग के पहले व फिर पकाव के दौरान की जानी चाहिए। इससे किसान को बेहतर उत्पादन मिलेगा। इसी तरह यहां पर बाजरा-एमपीएच 17 हाईब्रिड की बुआई की गई है। इसमें काश्तकार को बुआई के लिए एक से दो मीटर की गहराई में जोताई कर पंजीसाइड के साथ बीज उपचारित कर बुआई करनी पड़ती हैं। बारिश नहीं होने पर इसमें भी काश्तकार को दो बार सिंचाई करनी पड़ेगी।