
शिक्षा विभाग में बड़ा घपला....ट्रांसपोर्ट बाउचर भुगतान अटका...
नागौर. जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयों में पिछले साल के जुलाई से लेकर दिसंबर माह तक की अवधि तक बालिकाओं को दिए जाने वाले परिवहन भत्ते का भुगतान नहीं होने से संस्था प्रधानों के सामने संकट पैदा हो गया है। छात्राओं द्वारा पूछने पर उनके पास कोई जबाव नहीं होता। ट्रांसपोर्ट बाउचर का भुगतान नहीं होने का मामला उस वक्त सामने आया जब खुद जिला कलक्टर गत दिनों डीडवाना क्षेत्र के दयालपुरा विद्यालय का निरीक्षण करने पर पहुंचे। जानकार इसमें गड़बड़ी की आशंका जता रहे हैं।
सामने आ सकते हैं शिक्षण संस्थानों के नाम
डीडवाना के राउमावि दयालपुरा का जिला कलक्टर द्वारा किए गएनिरीक्षण में खुलासा। गत वर्ष के जुलाई से दिसंबर तक का भी नहीं भेजा भुगतान, पीडि़तों में और भी विद्यालयों के सामने आने की आशंका, कई बार स्मरण पत्र भेजने के बाद भी नहीं मिला बजट, जानकारों ने बताया बजट की कमी नहीं, फिर क्यों नहीं हुआ भुगतान, जिला शिक्षाधिकारी जांच करने में जुटे। जांच होने पर इस प्रकरण में जिले के दर्जनभर से अधिक शिक्षण संस्थानों के नाम सामने आ सकते हैं।
शिक्षा विभाग ने टाल दिया
पीडि़त संस्था प्रधानों द्वारा पत्राचार करने के बाद भी शिक्षा विभाग की ओर से हर बार बजट नहीं होने की बात कहकर टाल दिया गया, जबकि वास्तविकता यह है कि बजट की कमी किसी भी स्तर पर नहीं है। ट्रांसपोर्ट बाउचर का भुगतान नहीं होने का मामला गत शुक्रवार को जिला कलक्टर द्वारा डीडवाना के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, दयालपुरा में किए गए निरीक्षण के दौरान खुला। वहां निरीक्षण व जनसुनवाई कार्यक्रम के दौरान विद्यालय की छात्राओं व संस्था प्रधान ने गत वर्ष के जुलाई से दिसंबर तक का भुगतान नहीं मिलने का प्रकरण उठाया।
कभी नहीं रही बजट की कमी
कलक्टर को बताया गया कि कई बार स्मरण पत्र भेजने के बाद भी शिक्षा विभाग की ओर से बजट नहीं होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया गया। अब बजट नहीं होने से स्थिति बिगड़ गई है। इस संबंध में कलक्टर ने जिला शिक्षाधिकारी ब्रह्माराम चौधरी से बात की तो पता चला कि यह प्रकरण उनके संज्ञान में नहीं है। इस पर तीन दिन में पूरा बजट उनके खातों में जमा करने के निर्देश दिए। जानकारों का कहना है कि ट्रांसपोर्ट बाउचर भुगतान के मामले में बजट की कमी कभी नहीं रही। किसी स्कूल का ट्रांसपोर्ट बाउचर एक लाख से ज्यादा का होने पर भी तत्काल इसे जारी किया जा सकता है। इसके बाद भी इस तरह की गड़बड़ी की गई।
जांच में जुटे जिला शिक्षाधिकारी
इस तरह और भी स्कूलों के नाम सामने आ सकते हैं, लेकिन संस्था प्रधान केवल विभागीय स्तर पर पत्राचार तक ही सीमित रह जाते हैं। इस वजह से यह मामले खुल नहीं पाते, जबकि एक स्कूल का औसतन कम से कम 50 से 60 हजार तक का बजट रहता है। ऐसे में अन्य स्कूलों के नाम सामने आने पर आंकड़ों में और ज्यादा बढ़ोत्तरी हो सकती है। ट्रांसपोर्ट बाउचर भुगतान क्यों नहीं हुआ? किन परिस्थियों में यह बजट नहीं पास हो पाया? ऐसा तो नहीं कि कागजों में बजट जारी हो गया, और भुगतान संबंधित तक नहीं पहुंचा आदि बिंदुओं पर फिलहाल जिला शिक्षाधिकारी चौधरी खुद जांच करने में जुटे हैं।
Published on:
06 Aug 2018 02:31 pm
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