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नागौर की इस महिला डॉक्टर पर यहां आते ही गुस्साए परिजनों ने किया था हमला, फिर भी डरी नहीं, डटी रहीं

राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे पर विशेष : जिला मुख्यालय के जेएलएन राजकीय अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. वंदना गोदारा से विशेष बातचीत

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नागौर. ‘वर्ष 2015 में जब मैंने नागौर के पंडित जवाहरलाल नेहरू राजकीय जिला चिकित्सालय मेंं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के पद पर ज्वॉइन कर काम शुरू किया तो मन में यह संकल्प था कि गांव-ढाणी से आने वाले गरीब एवं जरूरतमंदों को परेशान नहीं होना पड़े। सरकार की मंशा अनुसार उन्हें सरकारी अस्पताल में ही जांच एवं दवा के साथ अन्य सभी सुविधाएं नि:शुल्क मिल जाएं। मैं इसी ध्येय के साथ अस्पताल में सेवाएं दे रही थी कि 11 दिसम्बर, 2015 को एक ऐसा हादसा हो गया, जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकती। एक प्रसूता की गंभीर स्थिति को देखते हुए मैंने उसे हायर सेंटर रेफर किया तो उसके परिजनों ने मेरे साथ ड्यूटी स्थल पर ही मारपीट कर दी। अचानक हुए इस घटनाक्रम ने एक बार तो मुझे झकझोर कर रख दिया। मैंने एक बार तो यहां से नौकरी एवं नागौर को छोडऩे तक मानस बना लिया, लेकिन अगले ही क्षण वापस विचार आया कि इस तरह परिस्थितियों से हारना ठीक नहीं और फिर से ठान लिया कि हारने की बजाय हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला करूंगी।’ यह कहना है नागौर के जेएलएन अस्पताल की एमसीएच विंग में सेवा दे रहीं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. वंदना गोदारा का।
डॉ. गोदारा ने पत्रिका से बातचीत करते हुए बताया कि उनके इस निर्णय में उनके चिकित्सक पति डॉ. सहदेव चौधरी का बड़ा योगदान रहा। उन्होंने हर समय उनकी हौसलाअफजाई की और संकट की इन परिस्थितियों में साथ दिया।

दो साल में सबसे अधिक ऑपरेशन
जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में आधा दर्जन स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ कार्यरत हैं, जिसमें कुछ डॉ. गोदारा से सीनियर हैं तो कुछ जूनियर भी हैं। लेकिन पिछले दो साल के रिकॉर्ड को देखें तो सबसे ज्यादा सिजेरियन (प्रसव या बच्चेदानी) डॉ. गोदारा ने ही किए हैं। डॉ. गोदारा का मानना है कि सरकारी अस्पताल में आमतौर पर जरूरतमंद और गरीब लोग ही आते हैं, इसलिए उन्हें यदि सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाकर चिकित्सा एवं उपचार मिल जाए, तो वे खुशी-खुशी घर लौटते हैं। यही डॉक्टर पेशे का धर्म और कत्र्तव्य भी है।

खुद जिस परिस्थिति से गुजरी, दूसरे उससे नहीं झेले
साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाली डॉ. गोदारा ने बताया कि एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान उनकी डॉ. सहदेव चौधरी से शादी हो गई। पीजी के दौरान वह गर्भवती हो गईं। उस समय फाइनल ईयर कर रही थी, थ्योरी के पेपर तो हो चुके थे, लेकिन जिस दिन प्रेक्टिकल था, उसी दिन उसने बच्चे को जन्म दिया। सुबह चार बजे बच्चा जन्मा और आठ बजे पीजी फाइनल ईयर का प्रेक्टिकल था, वो प्रेक्टिकल देने चली भी गई। डर था साल खराब न हो जाए, लेकिन जब वो वहां पहुंची तो परीक्षा लेने वाले चिकित्सक ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि इस स्थिति में वो उन्हें प्रेक्टिकल देने की अनुमति नहीं दे सकते। वजह यह थी कि प्रेक्टिकल का यह पूरा एक्जाम दिनभर होने के साथ-साथ खड़े होकर देना होता है। डॉ. वन्दना ने बात ऊपर तक पहुंचाई। आखिरकार उनके प्रेक्टिकल के दौरान फिट या अनफिट होने को लेकर मेडिकल बोर्ड का गठन करना पड़ा, लेकिन मेडिकल बोर्ड ने भी उन्हें एक्जाम के लिए अनफिट कर दिया। इसके बावजूद वो हिम्मत नहीं हारी और चिकित्सा शिक्षा विभाग एवं राजस्थान सरकार तक बात पहुंचाई, आखिरकार सरकार ने इस मामले में अपने नियम बदलते हुए मात्र पांच दिन बाद डॉ. वन्दना को उदयपुर से प्रेक्टिकल दिलवाया और वो निर्धारित समय में पीजी करके नागौर में पदस्थापित हुई।