
The danger of extinction of the state animal, which is considered to be the ship of horses, has increased, biological diversity is in danger
-पिछले पांच सालों में प्रदेश में ऊंटों में औसतन 37 प्रतिशत से ज्यादा की संख्या में घटे ऊंट
केवल पांच साल में दो लाख ऊंटों की संख्या में आई कमी
राज्य सरकार की ओर से वर्ष में दस हजार का अनुदान दिए जाने के बाद भी ऊंटों की संख्या नहीं बढ़ रही
वर्ष 2012 में चार लाख ऊंट थे, और अब रह गए केवल दो लाख
नागौर. राज्य सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो धोरों के घोड़े यानि की ऊंट अब केवल किताबों में ही मिलेंगे। इनकी संख्या में 34.69 प्रतिशत की कमी आई है। ऊंटों की संख्या कम होने से अब जैविक विविधता का खतरा भी मंडराने लगा है। यह स्थिति तब है, जबकि राज्य सरकार की ओर से तकरीबन नौ साल पहले दूसरे राज्यों में ऊंटों के ले जाने पर रोक लगा दी गई थी। इसका खासा असर ऊंटों की जनसंख्या पर पड़ा है। आंकड़ों में यह कमी केवल नागौर ही नहीं, बल्कि प्रदेश के सभी जिलों की है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार ने जल्द ही इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो फिर ऊंट राजस्थान से भी गायब हो जाएंगे। ऐसा हुआ तो फिर न केवल जैव विविधता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, बल्कि राजस्थान के इस गौरव पर भी ग्रहण लग जाएगा।
राजस्थान में ऊंटों की संख्या बहुत तेजी से घटती जा रही है। हालांकि प्रदेश में इनकी संख्या देश भर में मौजूद ऊंटों में से 84 प्रतिशत है। ऊंटों का यह औसत प्रदेश के लिए काफी मायने रखता है, लेकिन सरकार की ओर से ध्यान नहीं दिए जाने के कारण अब यह औसत तेजी से कम होने लगा है। प्रदेश में वर्ष 2012 में ऊंटो की संख्या चार लाख थी। यह संख्या 2019 में महज़ दो लाख रह गई है। इस तरह एक जनगणना में ही 34.69 प्रतिशत की कमी हुई है। हालांकि प्रदेश के विभिन्न पशु मेलों में ऊंट अभी काफी संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन इसमें भी तेजी से कमी होने लगी है। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि ऊंट पालकों को सरकार की ओर से की जाने वाली मदद औसत स्तर से भी कम है।
खर्च 50 गुना ज्यादा, लेकिन अनुदान एक प्रतिशत
राज्य सरकार की ओर से ऊंट पालन को प्रोत्साहित करने के लिए योजनागत तरीके से से अनुदान दिया जाता है, लेकिन दिया जाने वाला अनुदान होने वाले अनुदान का औसत महज एक प्रतिशत है। सरकार की ओर से प्रति वर्ष दो किस्तों के रूप में कुल 10 हजार का अनुदान दिया जाता है। जबकि शिशु ऊंट हो तो हर माह लगभग बीस हजार एवं व्यस्क ऊंट पर होने वाला प्रतिमाह का व्यय इससे भी डेढ़ गुना ज्यादा रहता है। यानि की कुल होने वाले व्यय की अपेक्षा मिलने वाले अनुदान से ऊंट पालकों को कोई फायदा नहीं हो रहा। अनुदान राशि को लेकर भी ऊंट पालक हतोत्साहित होने लगे हैं।
2015 में राज्य से बाहर जाने पर लगी थी रोक
राज्य सरकार की ओर से ऊंट पालन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार की ओर से प्रति वर्ष दो किस्तों में अब तक 10 हजार का अनुदान दिया जा रहा है। राजस्थान राज्य की सरकार ने वर्ष 2015 में राजस्थान ऊंट अधिनियम पास किया जिसके तहत एक राज्य से दूसरे राज्य में ऊंट को लाने ले जाने पर पाबंदी लगायी गई थी। ताकि ऊंटों की संख्या में बढ़ोत्तरी सके। इस रोक के बाद भी प्रदेश में ऊंटों की संख्या बहुत तेजी से घटती चली जा रही है।
पांच साल में एक लाख से ज्यादा ऊंट कम हो गए
ऊँटों की संख्या वर्ष 2012 में तीन लाख 25 हजार 713 थी। यह संख्या वर्ष 2019 में दो लाख 12 हजार 739 रह गई। यानि की केवल पांच साल में ही ऊंटों की संख्या में एक लाख 12 हजार 974 ऊंटों की कमी हुई है। इस तरह से औसतन 34.69 प्रतिशत की रफ्तार से ऊंट राजस्थान में घट रहे हैं। ऊंटों की गणना हर पांच साल में की जाती है। यह आंकड़े वर्ष 2012 से लेकर 2019 तक के हैं। इस तरह से वर्ष 2024 यानि की इस साल फिर से इनकी गणना की जानी है। हालांकि अभी गणना शुरू नहीं की गई है, लेकिन कहा जा रहा है कि ऊंटों की संख्या में इससे भी ज्यादा तेज रफ्तार से कमी आई है। फिलहाल यह तो आशंका मात्र है, इसलिए सभी को इंतजार है इस शुरू होने वाली ऊंटों की गणना का। ताकि ऊंटों की वास्तविक स्थिति पांच सालों के दौरान जो भी रही हो, वो सामने आ सके।
इनका कहना है...
ऊंट पालन को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की ओर से वर्ष में दस हजार रुपए की राशि दो किस्तों में दी जाती है। इसके साथ ही विभाग की ओर से पालक को प्रोत्साहित करने के लिए उसे निरंतर प्रयास भी किए जा रहे हैं।
डॉ. मूलाराम जांगू, वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी पशुपालन विभाग नागौर
Published on:
23 Jan 2024 09:48 pm
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