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महेंद्र-मंजू को मंत्री बनाए जाने की आस नहीं हुई पूरी

nagaurपत्रिका न्यूज नेटवर्क नागौर. गहलोत सरकार के रविवार को हुए कैबिनेट विस्तार में नागौर फिर खाली हाथ रहा। जिले में किसी विधायक को मंत्री का ताज नहीं मिल पाया। नावा विधायक महेन्द्र चौधरी और जायल विधायक मंजू मेघवाल को इसके लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। महेंद्र चौधरी अभी उप मुख्य सचेतक हैं तो मंजू मेघवाल पिछली कांग्रेस सरकार में महिला बाल विकास मंत्री रही हैं। पिछली वसुंधरा सरकार में नागौर से सीधे तौर पर दो या यूं कहें कि तीन मंत्रियों ने प्रतिनिधित्व दिया था। इसमें यूनुस खान, अजय सिंह किलक

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बरसों बाद नागौर को नहीं मिला प्रतिनिधित्व

महेंद्र चौधरी उप मुख्य सचेतक पद पर ही ठहरे

सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2018 में बनी गहलोत सरकार में नागौर से मंत्री बनाए जाने की अटकलें शुरू हुई थी। हालांकि उस समय महेंद्र चौधरी को उप मुख्य सचेतक बनाकर राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया गया, बाकी को कुछ नहीं मिल पाया। वैसे भी जिले से दो मंत्री का होना भी बड़ी बात माना जा रहा था। ऐसे में जायल विधायक मंजू मेघवाल का नाम भी गाहे-बगाहे उठता रहा। रविवार को तय माना जा रहा था कि महेंद्र चौधरी या मंजू मेघवाल में से किसी न किसी को मंत्री मण्डल में शामिल किया जाएगा। बावजूद इसके ऐसा कुछ नहीं हुआ। नागौर की दस विधानसभा सीटों में दो पर भाजपा और दो पर रालोपा का कब्जा है जबकि सात में कांग्रेस के विधायक है। इनमें महेंद्र चौधरी और मंजू मेघवाल ही वरिष्ठ माने जा सकते हैं क्योंकि डीडवाना विधायक चेतन डूडी , डेगाना विधायक विजय पाल मिर्धा, लाडनूं विधायक मुकेश भाकर और परबतसर विधायक रामनिवास गावडिय़ा पहली बार विधानसभा में पहुंचे हैं। हालांकि बीच में सचिन पायलट के खेमे से इनको जोड़ा जाने लगा था। बावजूद इसके बाद में सबकुछ सामान्य सा दिखने लगा। राजनीतिक गलियारों में पिछले कई महीनों से मंत्रीमण्डल विस्तार को लेकर बार-बार संभावनाएं जताई गईं। यह भी सही है कि पायलट गुट के कुछ विधायकों को इसमें शामिल करने की संभावनाएं भी इसमें शामिल थी। गहलोत सरकार का कार्यकाल आधे से थोड़ा अधिक बीत चुका है। नागौर जिले को प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग भी समय-समय पर उठती रही। जिला अध्यक्ष जाकिर हुसैन गैसावत ही नहीं संगठन के जिला प्रभारी गजेंद्र सिंह सांखला ने तो एक दिन पहले ही इसकी आशा जताई थी, लेकिन यह पूरी नहीं हो पाई। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पिछली वसुंधरा सरकार में किलक-यूनुस खान के साथ गजेंद्र सिंह कैबिनेट में होने से जिले में राजनीतिक गतिविधियां अधिक से अधिक करा पाने में सफल हो पाए। ऐसा नहीं है कि अभी कि गहलोत सरकार ने बिना मंत्री के नागौर में विकास को लेकर कोई कंजूसी की हो। यहां के विधायकों की सीधी पहुंच गहलोत को बार-बार यहां की खामियां/जरुरत के बारे में बता पाने में सफल रही है। कोरोना काल के करीब डेढ़ साल में धीमा पड़ा विकास कार्य जरूर यहां के कांग्रेसी विधायकों को आगे बढ़ाने के प्रयास करने होंगे। दबी जुबान में कांग्रेस पदाधिकारी ही नहीं कार्यकर्ता भी स्वीकारते हैं कि अच्छा होता कि दोनों को मंत्रीमण्डल में शामिल कर लिया जाता, क्योंकि नागौर वो जिला है जहां से राजनीतिक समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं।

बड़े-बड़े पदों तक रही पहुंच

आंकड़े बताते हैं नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा और मथुरादास माथुर अपने विभिन्न कार्यकाल में अहम महकमों के मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे। मथुरादास माथुर व नाथूराम मिर्धा प्रदेश में वित्त, सिंचाई, कृषि, खाद्य एवं आपूर्ति आदि महकमों के मंत्री पद संभाल चुके हैं। वर्ष 1977 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में पहली बार कांग्रेस की बजाय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी। ऐसे में जिले की सभी 10 सीटों में से निर्वाचित एक भी विधायक मंत्रीमंडल में शामिल नहीं हुआ। हालांकि इससे पूर्व 1952 से लेकर 1972 तक के चुनाव में नागौर, डीडवाना, जायल, लाडनूं और मेड़ता सीटों से विधायक बनने वाले मथुरादास माथुर, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा को जिले से मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व मिलता रहा है।