17 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

ऊंच-नीच का भेद मिटाने का दिया संदेश…

-बच्छवास गांव में गंगाप्रसादी के कार्यक्रम में की अनूठी पहल- वाल्मीकि समाज के लोगों को कालीन बिछाकर बैंड-बाजों से घर तक लाए-सभी को चौकी पर भोजन करवाया

2 min read
Google source verification
 ऊंच-नीच का भेद मिटाने का दिया संदेश...

वाल्मीकि समाज के लोगों को कालीन बिछाकर बैंड-बाजों से घर लाते हुए

मेड़ता सिटी (नागौर). मेड़ता से 20 किमी दूर बच्छवास गांव में जागरूक समाज का एक जीवंत उदाहरण देखने को मिला। मौका था गंगाप्रसादी के एक कार्यक्रम का। जहां बच्छवास के चारण परिवार के लोग इस मौके पर गांव के ही वाल्मीकि समाज के लोगों को कालीन बिछाते हुए बैंड-बाजों के साथ सम्मानपूर्वक अपने घर तक लाए। फिर भोजन करवाते हुए उन्हें उपहार देकर ऊंच-नीच का भेद मिटाने की मिसाल पेश की।
दरअसल, बच्छवास गांव निवासी स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त हुए रतन सिंह की 4 सितंबर को मृत्यु होने पर शुक्रवार को आयोजित द्वादशा गंगाप्रसादी के कार्यक्रम में परिजनों ने एक अनूठी प्रेरणास्पद पहल की। कार्यक्रम के दौरान सुबह चारण परिवार के विजयसिंह, मदनसिंह, सुरेंद्र सिंह, नारायण सिंह, चंद्रशेखर सिंह, नवदीप सिंह, मोहित सिंह एवं सीता कंवर, कमला नेहरू महिला महाविद्यालय जोधपुर अध्यक्ष कोमल कंवर, पारस कंवर, सुमन कंवर, संतोष कंवर, प्रेम कंवर, सूरज कंवर सहित परिजन अपने गांव स्थित वाल्मीकि परिवार के घर पहुंचे। फिर वहां से परिवार के सुरेश, देवाराम सहित 10 से अधिक परिजनों को उनके घर से स्वयं के मकान तक करीब 800 मीटर रास्ते पर सफेद कालीन बिछाते हुए बैंड-बाजों व मंगल गीत के साथ लेकर पहुंचे। इसके बाद सभी को चौकी पर भोजन करवाया गया।

6 साल पहले भी हुआ सम्मान का कार्यक्रम

6 वर्ष पहले अक्टूबर 2017 में भी चारण परिवार की ओर से इस तरह का सम्मान किया गया था। परिवार के नारायण सिंह की माता चंद्रकंवर की मृत्यु पर भी वाल्मीकि समाज के लोगों का इस तरह स्वागत करते उन्हें उपहार देकर सम्मानित किया गया था। इसके बाद अब फिर घर में मृत्यु होने पर गंगाप्रसादी के मौके पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया।

पुराणों में बताया महात्मय
द्वादशा-गंगाप्रसादी पर परिवार व आमंत्रित लोगों के साथ गांव के वाल्मीकि परिवार को भोजन कराने का गरुड़ पुराणा में महात्मय है। इस परम्परा का प्रदेश के कई क्षेत्रों में समय-समय पर निर्वाहन होता आया है। पुराणों में भी इस परम्परा के तहत आपसी भेद-भाव मिटाने का संदेश दिया हुआ है।