scriptगांव की मिट्टी में ‘सेना’ की महक, हर तीसरे घर का सीधा रिश्ता | The smell of 'Army' in the soil of the village, the direct relation of | Patrika News
नागौर

गांव की मिट्टी में ‘सेना’ की महक, हर तीसरे घर का सीधा रिश्ता

संदीप पाण्डेय
नागौर. हर घर से किसी न किसी के सेना में जाने की हसरत इस गांव की खूबसूरती है। दसवी कक्षा पास करने के बाद जवान होने की ‘दहलीज‘ पर खड़ा यहां का हर छात्र सीधा सेना में भर्ती होकर देश-सेवा करने की ‘ललक’ रखता है। यहां के हर घर में सेना का अनुशासन, समर्पण और साहस बसा हुआ है। न मजहब/जातियों की दूरी न अमीर-गरीब की खाई, मदद करने का अनूठा जज्बा इस ‘जवान’ गांव कठौती की। जायल तहसील का यह गांव शूरवीरों का है, लगभग हर तीसरे घर का सेना से सीधा ‘रिश्ता’ रहा है।

नागौरJan 15, 2022 / 10:16 pm

Sandeep Pandey

गांव की मिट्टी में ‘सेना’ की महक, हर तीसरे घर का सीधा रिश्ता

जायल का कठौती गांव, पिता-बेटा तो भाई-भाई तक ने की देश सेवा

गांव शहीद मूलाराम का भी है तो आतंकवादियों से मुठभेड़ कर तीन गोलियां खाने वाले सरवन राम का भी। यहां की खुशबू में देशभक्ति है। तुतलाती जुबान के छोटे बच्चों से भी पूछो कि बड़ा होकर क्या बनोगे, तो उनका जवाब होता है, सेना में जाऊंगा। बच्चों में जिद भी है तो गर्व भी, जिद ये कि खिलौनों में बंदूक या टैंक मांगते हैं और गर्व ये कि उनके घर/परिवार या फिर गांव सेना के जवानों का है। इस गांव की ‘वीरता‘ इससे ही पता लगती है कि अभी भी सौ से अधिक जवान सरहद पर भारत की रक्षा करने के लिए तैनात हैं। करीब डेढ़ सौ सेवानिवृत्त हो गए तो करीब साठ-सत्तर युवा सेना में जाने की तैयारी कर रहे हैं। करीब पांच हजार की आबादी वाले गांव का यह हाल है, किसी घर में पिता के बाद बेटे ने सेना की नौकरी की तो कहीं भाई-भाई ने एक साथ नौकरी की। पिता मोहनराम ने सेना में सेवा दी तो पुत्र बीरमाराम ने भी, जैताराम बेड़ा के साथ भाई चंदाराम ने भी देश सेवा की। यहां किसी को तलाशना नहीं पड़ता, कोई भी मिल जाए वो दस-बीस सैनिकों के घर-परिवार की ‘कहानी’ मुंह-जुबानी सुना देता है। जेएलएन अस्पताल के डॉ राजेंद्र बेडा भी इसी गांव के हैं, सेना के ‘जवानों’ का नाम पूछा तो कहने लगे कि एक-दो हो तो बताएं, यहां तो गिनती बड़ी है।
घर-घर में अनुशासन

सेना के रंग-ढंग में पले-बढ़े बच्चे ही नहीं महिलाएं-लड़कियों तक में अनुशासन की खूबी नजर आती है। समय की पाबंदी के साथ स्कूल जाने का समय हो या फिर खाने-पीने का, बच्चे शायद इस ‘घुट्टी’ के साथ ही पैदा होते हैं। गांव में स्वाधीनता हो या गणतंत्र दिवस, इसका जोश-खरोश बड़े-बडे शहरों से अधिक दिखाई देता है। देश के लिए कुछ करने का जज्बा यहां हर चेहरे पर दिखाई देता है। सेना से रिटायर जेताराम बेड़ा हो या बलदेव बेडा, रामकरण हो या मुकेश, ऐसे नामों की फेहरिस्त है जिनके दिल में सेना है तो घर में भी सेना सा अनुशासन।
खाता रहा गोलियां, पीछे नहीं हटा सरवन राम

जायल तहसील के कठौती गांव के रहने वाले सरवन राम हजारों सपने के साथ सेना में हवलदार भर्ती हुआ था। घर-परिवार को छोडक़र कभी सीमा पर तैनाती तो कभी कश्मीर आतंकवाद पर पहरा। सर्द हवाएं भी उसका गर्म जोश ठण्डा नहीं कर पाईं। 28 अक्टूबर 1991 सं 31 अक्टूबर 2013 तक सेना की ड्यूटी निभाई। अनेकों बार मौत से भी सामना हुआ पर घबराया नहीं, हौसलों से लड़ा और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए।जब तीन गोली लगी सरवन राम का सामना 15 मई-2005 को राजोरी सेक्टर में आतंकियों से मुकाबला हुआ। जान हथेली पर लेकर वो भिड़ पड़ा, तीन आतंकी ढेर कर दिए, इसके बदले उसके पांव में तीन गोलियां लग गई। बावजूद इसके उसने न हथियार छोड़े न पीछे हटा। लहूलुहान सरवनराम अस्पताल लाए गए। उपचार हुआ और भगवान की दया से बच गए और पूरे जोश से कुछ कर गुजरने की मंशा फिर सेना अफसरों को बताई। सरवनराम के हौसले की दाद आज भी सेना के नए जवानों को दी जाती है। इसी बहादुरी पर सरवनराम को 15 अगस्त 2006 को सेना मेडल मिला। सरवन राम का कहना है कि मेरे घर में बेटा हो या बेटी, भले ही सेना में नहीं गए पर उसी के मुताबिक अनुशासन के साथ अपने कर्तव्य को पूरा कर रहे हैं।
शहादत देने वाला मूलाराम

कारगिल युद्ध में देश के लिए मूलाराम ने जान दे दी थी। मूलाराम उन सैनिकों में शामिल था जिसकी दुश्मन देश ने आंखें निकालकर शव क्षत-विक्षत कर दिया था। कारगिल युद्ध में इसी गांव के जवान रामनारायण बेड़ा ने भी गोलियां खाई थी। रामनारायण का बेटा रवि नेवी में है। इसी गांव में शहीद मूलाराम की प्रतिमा भी लगी। सेना के इस गांव में बस इस प्रतिमा की हो रही बदहाली पर लोगों को काफी दुख है। प्रतिमा के आसपास खिवंज माता का मंदिर है तो तिल बाबा के साथ लिखासया माता भी। बावजूद इसके मरे पशु यहीं डाले जा रहे हैं, वो भी पांच-छह बरस से। शहीद मूलाराम का भाई प्रहलाद राम टोलकर्मी है जबकि दूसरा भाई राधाकिशन सेना में तैनात है। मदद के साथ एकता भीइस गांव में वो सारी खूबियां है जो भारतीय सेना में होती हैं। अनुशासन के अलावा मदद का जज्बा भी यहां हर घर-शख्स में देखा जाता है। मदद करने में न कोई मजहब देखता है न जाति। किसी का दु:ख बांटने वालों की ‘टुकड़ी’ यहां हर समय तैनात रहती है। बेटियों की पढ़ाई से लेकर उनकी विदाई तक मेे गांव के सभी लोगों का ‘समर्पण’ दिखता है। एकता ऐसी कि किसी घर से निकली आवाज/दर्द का अहसास होते ही सब मदद को आ जाते हैं, उन्हें कोई बुलाने नहीं जाता। सम्मान के साथ शौर्य का गांव है, यहां मुलाकातों के साथ बातों में सरहद की वादियों का जिक्र हमेशा होता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो