आधी रोटी खाई पर पढ़ाई का खर्च कम नहीं किया गीता देवी ने पत्रिका को बताया कि उन्होंने संघर्ष के दौरान आधी रोटी खाकर ही पेट भर लिया पर बेटे-बेटी की पढ़ाई का खर्च कम नहीं किया। बच्चों ने भी घर की परिस्थितियां भांप ली थी और जी-जान से पढ़ाई में लगे रहे। इसका परिणाम 2005 में छोटे बेटे रामाकिशननिम्बड़ के पीएमटी के चयन के रूप में आना शुरू हुआ। 2011 में चौधरी का चयन चंडीगढ़ की प्रतिष्ठित पीजीआई में हुआ। हड्डी एवं जोड़ रोग विभाग में पीजी करने के बाद वर्तमान में निम्बड़ सह आचार्य व यूनिट हेड के रूप में जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं। 2011 में ही बड़े बेटे राजेंद्र निम्बड़ का सरकारी शिक्षक के रूप में चयन हो गया। वहीं बेटी पूजा निम्बड़ का चयन प्रतिष्ठित वेटनरी कॉलेज बीकानेर में हुआ। जयपुर से पीजी करने के बाद वर्तमान में तख्तगढ़ पाली में पशु चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत है। इस प्रकार एक अकेली औरत ने घर का खर्च चलाने के साथ-साथ तीनों संतानों को पढ़ाकर सफलता के मुकाम तक पहुंचाया, जो कि ग्रामीण परिवेश की महिलाओं के लिए आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकी है।