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संखवास की गीतादेवी के संघर्ष ने तीन बच्चों को पहुंचाया सफलता के मुकाम पर

पति के निधन के बाद खेती व पशुपालन का कार्य कर तीन बच्चों को पढ़ाया, आज दो डॉक्टर तो एक शिक्षक पद पर दे रहे सेवाएं

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नागौर.‘कोई भी लक्ष्य इंसान के संघर्ष से बड़ा नहीं, हारा वही जो लड़ा नहीं।’ कवि की इन्हीं पंक्तियों को साकार कर दिखाया है नागौर जिले के संखवास की एक महिला ने। मूण्डवा उपखंड के संखवास की गीता देवी अपने ग्यारह भाई-बहिनों में सबसे छोटी है, लेकिन इनके समर्पण और दृढ़ संकल्प ने जीवनरथ को खूब आगे बढ़ाया है। मात्र चौथी कक्षा तक पढ़ी गीता देवी को पढ़ाई का महत्व इस कदर समझ आया कि उन्होंने खेती व पशुपालन कर अपनी तीनों संतानों को सफलता के मुकाम तक पहुंचाया। सन 2001 में एक सडक़ दुर्घटना में पति सीताराम निम्बड़ की मृत्यु के बाद गीता देवी ने तीनों संतानों की पढ़ाई जारी रखी। घर की खेती के साथ मजदूरी व पशुपालन का कार्य कर परिवार का लालन-पालन किया, लेकिन बच्चों की शिक्षा से कोई समझौता नहीं किया। इसी की बदौलत आज एक बेटा डॉक्टर, दूसरा शिक्षक तो तीसरी बेटी पशु चिकित्सा अधिकारी के रूप में सेवाएं दे रहे हैं।

आधी रोटी खाई पर पढ़ाई का खर्च कम नहीं किया

गीता देवी ने पत्रिका को बताया कि उन्होंने संघर्ष के दौरान आधी रोटी खाकर ही पेट भर लिया पर बेटे-बेटी की पढ़ाई का खर्च कम नहीं किया। बच्चों ने भी घर की परिस्थितियां भांप ली थी और जी-जान से पढ़ाई में लगे रहे। इसका परिणाम 2005 में छोटे बेटे रामाकिशननिम्बड़ के पीएमटी के चयन के रूप में आना शुरू हुआ। 2011 में चौधरी का चयन चंडीगढ़ की प्रतिष्ठित पीजीआई में हुआ। हड्डी एवं जोड़ रोग विभाग में पीजी करने के बाद वर्तमान में निम्बड़ सह आचार्य व यूनिट हेड के रूप में जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं। 2011 में ही बड़े बेटे राजेंद्र निम्बड़ का सरकारी शिक्षक के रूप में चयन हो गया। वहीं बेटी पूजा निम्बड़ का चयन प्रतिष्ठित वेटनरी कॉलेज बीकानेर में हुआ। जयपुर से पीजी करने के बाद वर्तमान में तख्तगढ़ पाली में पशु चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत है। इस प्रकार एक अकेली औरत ने घर का खर्च चलाने के साथ-साथ तीनों संतानों को पढ़ाकर सफलता के मुकाम तक पहुंचाया, जो कि ग्रामीण परिवेश की महिलाओं के लिए आदर्श के रूप में स्थापित हो चुकी है।