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वस्तु का यथार्थ स्वरूप धर्म कहलाता है- साध्वीबिंदुप्रभा

Nagaur.जयमल जैन पौषधशाला में विविधि धार्मिक कार्यक्रम

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The true nature of the object is called Dharma - Sadhvibinduprabha

Shravak-Shravikas chanting in Jaimal Jain Nursery

नागौर. जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जयमल जैन पौषधशाला में में चल रहे प्रवचन में श्वेतांबर स्थानकवासी साध्वी बिंदुप्रभा ने कहा कि व्यवहार धर्म के बिना निश्चय धर्म की साधना हो ही नहीं सकती। बिना व्यवहार के धर्म का ही उच्छेद हो जाता है। धर्म के दो रूप बताए गए हैं, जो कि निश्चय धर्म और व्यवहार धर्म से जाने जाते हैं। निश्चय के अनुसार आत्मा का स्वभाव धर्म है, स्वरूप परिणति धर्म है । वस्तु का यथार्थ स्वरूप धर्म कहलाता है। व्यवहार धर्म की अपेक्षा चार भावनाएं है जो इस प्रकार है - मैत्री भावना, प्रमोद भावना, करुणा भावना और माध्यस्थ भावना। प्राणी मात्र पर मैत्री भाव, गुणाधिकों पर प्रमोद भाव, दुखितों पर करुणा भाव एवं अविनीत जनों पर माध्यस्थ भाव रखना चाहिए। जीवन में इन योग भावनाओं का विकास मनुष्य को मनुष्यता के श्रेष्ठतम शिखर पर पहुंचा देता है। आध्यात्मिक और व्यवहारिक जीवन में बहुत उपयोगी है। इन भावनाओं के अभाव के कारण ही द्वेष, ईष्र्या, संघर्ष, कलह आदि जन्म ले लेते हैं। साध्वी ने कहा कि आज कल की समस्याएं मानवकृत है। संसार की समस्याओं की जड़ है - राग द्वेष अहंकार और स्वार्थ बुद्धि। अगर ये सारी नकारात्मक अशुभ भावनाएं दूर हो जाए तो 90 प्रतिशत समस्याएं सुलझ जाए। संसार में जहां कहीं भी कोई अच्छाई, कोई सद्गुण दिखाई दे, तो उन्हें देखकर प्रसन्न होना चाहिए। अच्छाई का स्वागत करना चाहिए। जो प्रशंसा करता है उसके जीवन में सद्गुण धीरे धीरे प्रवेश करते जाते हैं। वह किसी भी स्थिति में प्रसन्नता का अनुभव करता है। करुणा भावना के अन्तर्गत कहा कि अहिंसा को भी दया बताया। जीवन के समस्त गतिविधियों में हमारे द्वारा किसी को कोई पीड़ा न हो, यही लक्ष्य रखने की जरूरत है। अनेकों बार होने वाली उलझनों में मध्यस्थ वृत्ति ही शांति की अनुभूति करा सकेगी। मध्यस्थ वृत्ति जागृत होने से जीवन में कलह, विवाद के प्रसंग कम हो जाएंगे। इसी प्रकार कुशल साधक धर्म का बीज जीवन में अंकुरित करने से पहले मनोभूमि को तैयार करता है।
जयमल जाप का हुआ अनुष्ठान
प्रवचन की प्रभावना नरपतचंद, गणपतकुमार कोठारी की ओर से वितरित की गयीं। प्रवचन में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीपक सैनी, प्रेमलता ललवानी, सोहन नाहर एवं सुशीला नाहटा ने दिए। विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। आगंतुकों के भोजन का लाभ मालचंद, प्रीतम ललवानी ने लिया। दोपहर में महाचमत्कारिक जयमल जाप का अनुष्ठान किया गया। इस मौके पर कंचनदेवी ललवानी, तीजा बाई पींचा, शोभादेवी पारख, रसीला सुराणा आदि श्रावक-श्राविकाएं मौजूद थीं। मंच का संचालन संजय पींचा ने किया।