
खजवाना. छतरियों में की गई शिल्पकारी।
राजवीर रोज
नागौर जिले के खजवाना गांव में प्राचीन काल की स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने के रूप में धाय मां की छतरियां आज भी अपने प्रारम्भिक स्वरूप को धारण किए हुए है।
कस्बे के मुख्य तालाब के पास बनी ऐतिहासिक छतरियां पुरासम्पदा की निशानी हैं। एक समय में इन छतरियों में बैठकर लोग शिक्षा ग्रहण करते थे। संत -महात्मा छतरी में बैठकर तपस्या किया करते थे। पास में ही गवंई कुआ होने से चहल-पहल रहती थी। लेकिन समय के साथ कुओं का अस्तित्व नगण्य हो गया। छतरी के आस-पास रहने वाली चहल कदमी भी बंद हो गई। फिर भी पौराणिक धरोहर के रूप में छतरियाें का अस्तित्व कायम है। इसके पीछे की मुख्य वजह है इनके निर्माण में काम ली गई गुणवत्तापूर्ण सामग्री।
बिना सीमेंट चूने के बनाई गई है छतरी
इस छतरी की मुख्य विशेषता यह है कि छतरी के निर्माण में कहीं भी सीमेंट व चूने का उपयोग नहीं हुआ है। एक विशेष पद्धति से पत्थर के ऊपर पत्थर चिपकाकर छतरी आकार दिया गया है। इतने वर्ष बीतने के बावजूद छतरी यथावत स्थिति में खड़ी हैं।
हर किसी का मन मोह लेती है शिल्प कला
पौराणिक छतरी पर लगे शिलालेख पर भाषा तो स्पष्ट दिखाई नहीं देती, फिर भी इतना पढा जा सकता है कि इस छतरी का निर्माण विक्रम सम्वत 1134 में गुर्जर प्रतिहार वंश की धाय मां इन्द्र बाईसा की याद में किया गया है।
छतरी के गुबंद में पत्थर के अन्दर की गई बारिक खुदाई हर किसी का मन मोह लेती है। अद्भूत शिल्प कला इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती है। सुबह व शाम जब पक्षी इस छतरी पर आकर बैठते हैं तो मनोरम नजारा बन जाता है।
70 के दशक के बाद अब होगी मरम्मत, निखरेगी चमक
बुजुर्ग ग्रामीणों के अनुसार 70 के दशक में तत्कालीन सरपंच जस्साराम लामरोड़ ने इस छतरी की मरम्मत का कार्य करवाया था। उसके बाद कभी इसकी मरम्मत नहीं हुई। वर्तमान सरपंच सीपू देवी ने इस छतरी के पास सार्वजनिक पार्क का निर्माण करवाया है । इससे इसकी अहमियत और अधिक बढ गई है। इस छतरी की मरम्मत के दौरान इसके पौराणिक स्वरूप का ध्यान रखा जाएगा। इसी परिसर में बनी अन्य छतरियों की मरम्मत का कार्य भी चल रहा है। पार्क के अन्दर स्थापत्य कला की छतरियां कस्बे के हृदय स्थल को ओर अधिक आकर्षित बना रही है।
Updated on:
17 Nov 2023 04:27 pm
Published on:
17 Nov 2023 04:16 pm
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