
sambhar lake nawa nagaur
दीपक कुमार शर्मा @ नावां शहर. वेटलैंडस अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। यह वन पारिस्थितिकी प्रणालियों की तुलना में तीन गुना अधिक तेजी से नष्ट हो रहे हैं। इनकी सुरक्षा के लिए, रामसर कन्वेंशन 1971 में स्थापित किया गया था और अब तक 2414 रामसर साइटों को नामित किया गया है। वेटलैंड संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए 1997 से हर साल 2 फरवरी को वेटलैंड डे मनाया जाता है। हर साल थीम निर्धारित की जाती हैं। इस वर्ष का थीम ‘वेटलैंड एंड वाटर’ है। भारत 1 फरवरी 1982 को रामसर कन्वेंशन में शामिल हुआ। तब से हमारे पास 42 रामसर साइट हैं, हालांकि, अभी भी भारतीय आर्द्रभूमि रूपांतरण, परिदृश्य परिवर्तन, संकोचन, प्रदूषण और अपशिष्ट निपटान के कारण गंभीर खतरे से गुजर रही है।
सांभर झील में पक्षी त्रासदी के बाद अतंराष्ट्रीय स्तर पर राज्य व केन्द्र सरकार की खूब किरकिरी हुई, इसके बावजूद सरकार सांभर झील संरक्षण को लेकर केवल लीपापोती तथा नाकाम प्रयास कर रही है। झील संरक्षण का जिम्मा उठाने वाला सांभर साल्ट लिमिटेड खुद झील में अवैध गतिविधियां करने में पीछे नहीं है। झील पर शोध कर रही टीम के राजश्री नायक, आलोक राज, रजनी गुप्ता, रजनीकांत वर्मा ने बताया कि यह भारत की विशालतम सांस्कृतिक, आर्थिक, सौंदर्य, वैज्ञानिक, शैक्षणिक, मनोरंजक और पारिस्थितिक मूल्यों वाली सबसे बड़ी अंतर्देशीय खारी झील है। 23 मार्च 1990 से एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के साथ-साथ एक रामसर साइट भी है। यह प्रोटोजोआ, रोटिफेरा, क्लैडोकेरा, क्रसटेशियन, ऑर्थोपेट, डरमेक्टा और कोलॉप्टेरा जैसी जैव विविधता के एक बड़े समूह का समर्थन करता है। हालांकि, इन जीवों का अस्तित्व झील में पानी की उपलब्धता पर निर्भर करता है। नमक का उत्पादन पूरी तरह से पानी की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इस वर्ष का विषय ‘वेटलैंड और पानी’ है, यह सांभर झील पर बहुत जोर देता है कि यदि पानी नहीं है, कोई पारिस्थितिकी नहीं है और कोई अर्थव्यवस्था नहीं है।
पिछले कुछ दशकों से सांभर झील अवैध नमक पैन, अतिक्रमण और अत्यधिक भूजल निष्कर्षण के अधीन है। जिसके परिणामस्वरूप, यह विलुप्त होने के कगार पर था। हालांकि, 2019 में भारी बारिश हुई और जल स्तर बढ़ गया। फिर से 2020 में, कोविड-19 महामारी लॉकडाउन के दौरान उपग्रह से ली गई उपग्रह इमेजरी से जल स्तर उच्च स्तर पर देखा गया। संयुक्त राष्ट्र दशक के दौरान पारिस्थितिक तंत्र बहाली (2021-2030) के दौरान इस पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने में खुद की मदद की। फिर, यह विलुप्त होने के कगार पर है जैसा कि 2021 उपग्रह छवि से देखा गया है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसकी बहाल स्थिति को बनाए रखें ताकि स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक पटल पर हमेशा पारिस्थितिक और आर्थिक जुड़ाव हो।
इनका कहना
राजस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय के अनुसंधान समुदाय के एक भाग के रूप में, मेरी शोध टीम सांभर झील के भविष्य का अनुमान लगाने के लिए मल्टीस्पेक्ट्रल, हाइपरस्पेक्ट्रल, माइक्रोवेव और लीडर तकनीक के मल्टी सेंसर उपग्रह डेटा सेट का उपयोग कर रहे हैं। ताकि इस झील को बहाल किया जा सके। यह रामसर की बुद्धिमान उपयोग अवधारणा के लिए मदद करेगा। इस पर हमारा शोध एक वैश्विक मंच (सोसायटी ऑफ वेटलैण्ड साइंटिस्ट) पर प्रस्तुत किया गया है।
- डॉ.लक्ष्मीकांत शर्मा, सदस्य,आई.यू.सी.एन.-सी.ई.एम.(यू. एन.) एसोसिएट प्रोफेसर, पर्यावरण विज्ञान विभाग, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, किशनगढ़, अजमेर, राजस्थान
वेटलैण्ड को लेकर सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन के अनुसार कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही कपूर आयोग की सिफारिशों में भी काफी कार्य किया गया है। झील क्षेत्र से लगने वाले गांवों में अभियान चलाकर जागरुक किया जा रहा है। झील में पानी की मात्रा होना भी अत्यंत जरूरी है।
- ब्रह्मलाल जाट, उपखण्ड अधिकारी नावां
Updated on:
02 Feb 2021 02:31 pm
Published on:
02 Feb 2021 02:14 pm
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