
The case of hoarding the recharge amount by showing false entry in the private education institute in Nagaur
नागौर. जिले के मकराना व डेगाना क्षेत्र के सरकारी स्कूलों के बच्चों को निजी स्कूलों में दर्शाकर पुनर्भरण राशि खुर्द-बुर्द करने के मामले में अब शिक्षा विभाग के अधिकारी ही संदेह के घेरे में आ गए हैं। आरटीई के तहत प्रवेशित बच्चों के होने या नहीं होने का सत्यापन स्थानीय स्तर पर शिक्षा विभाग की ओर से गठित कमेटी करती है, और इस पर अंतिम मुहर भी जिला शिक्षाधिकारी ही लगाते हैं। सैकण्डरी या सीनियर सैकण्डरी में जिला स्तर के अधिकारी एवं प्रारंभिक में ब्लॉक स्तर के अधिकारी अंतिम रूप से सत्यापन कर रिपोर्ट भेजते हैं, तभी पुनर्भरण राशि का भुगतान होता है।शिक्षा विभाग के जानकारों का ऐसा कहना है।
यही नहीं, सालों से चल रही इस गड़बड़ी का निदेशक कार्यालय बीकानेर को भी चार साल बाद पता चला। पहले भी पोर्टल पर अंकित रिकार्ड की जांच होती रही, लेकिन किसी की इस पर नजर नहीं पड़ी। इस संबंध में प्रकरण से जुड़े जिले के प्रारंभिक एवं माध्यमिक स्तर के अधिकारियों से बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह कन्नी काट गए। इससे जिले के मकराना एवं डेगाना ब्लॉक में चार साल से सरकारी बच्चों को निजी में दर्शाकर पुनर्भरण राशि दिलाने के मामले में अब शिक्षा अधिकारियों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लग गया है। संस्था प्रधानों की ओर से दी गई रिपोर्ट का सत्यापन शिक्षा विभाग के अधिकारी करते हैं, तभी उनको पुनर्भरण राशि मिलती है। इस संबंध में पड़ताल करने पर चौंकानेवाले जानकारी सामने आई। सैकण्डरी में बच्चों के सत्यापन के लिए सीनियर विद्यालय का प्रधानाचार्य तथा एक वरिष्ठ व्याख्याता की टीम जिले के शिक्षाधिकारी (माध्यमिक)की ओर की जाती है। केवल क्षेत्र के हिसाब से यह अधिकारी माध्यमिक प्रथम एवं द्वितीय में बंटे रहते हैं, लेकिन जांच टीम की अंतिम रिपोर्ट का सत्यापन इन्हीं के द्वारा करने पर ही उसे निदेशालय भेजा जाता है। केवल संस्था प्रधान या सत्यापन दल की ओर से गठित टीम के सदस्यों की रिपोर्ट को अंतिम मानते हुए भुगतान करने का प्रावधान नहीं है। सत्यापन दल की रिपोर्ट पर अंतिम मुहर शिक्षाधिकारी ही
लगाते हैं।
1. सरकारी स्कूलों के बच्चों को निजी में दर्शाकर सरकार की आंख में धूल झोंकने का गोरखधंधा लंबे समय से चल रहा था। पोर्टल की जांच पहले भी होती रही, लेकिन मामला पकड़ में क्यों नहीं आया?
2. पोर्टल तो ऑनलाइन खोलकर जांच जिला स्तर के अधिकारी भी करते रहे, तो फिर इनके द्वारा कैसे यह चूक हो गई?
3. पोर्टल पर अंकित रिकार्ड प्रारंभिक शिक्षा में ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक शिक्षाधिकारी ही संस्था प्रधानों से सबमिट कराते हैं, और दिशा-निर्देश उनके पास भेजते हैं तो फिर ब्लॉक शिक्षाधिकारी को खुद के स्कूल के बच्चों के नाम पर सालों से चल रही इस गड़बड़ी का पता कैसे नहीं चला?
4. जिला स्तर पर सत्यापन दल की रिपोर्ट पर सत्यापित होने की अंतिम मुहर लगाने वाले जिला या ब्लॉक स्तर के शिक्षा विभाग के अधिकारी क्या करते रहे? या तो शिक्षा विभाग के अधिकारियों की सहमति से ही पुनर्भरण राशि उठती रही या फिर सत्यापन के नाम पर केवल खानापूर्ति की जाती रही?
5. शिक्षा विभाग के अधिकारियों के संदेह के घेरे में आने पर सरकारी राशि वसूलने के लिए विभाग ने प्रारंभिक स्तर पर पुष्टि होने के बाद कोई बड़ा कदम क्यों नहीं उठाया?
यह था मामला
गौरतलब है कि प्रारंभिक शिक्षा के सरकारी स्कूलों के बच्चों को निजी स्कूलों में दिखाकर चार साल से पुनर्भरण राशि खुर्दबुर्द कर रहे संस्थानों के खिलाफ शिक्षा निदेशक बीकानेर कार्यालय द्वारा जांच के आदेश देने पर मकराना में तीन एवं डेगाना ब्लॉक में एक बच्चे का प्रकरण पकड़ा गया था।
Published on:
19 Dec 2017 10:39 pm
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