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आधुनिक इलाज से वंचित अबुझमाड़ का मासूम, एक साल से बीमारी से जूझ रहा 7 वर्षीय संजय वड्दा

CG News: गोंडी जैसी स्थानीय भाषा में संवाद की कमी और सांस्कृतिक विश्वासों को समझने की पहल न होने से परिजनों तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच अब भी दूर है।

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जिंदगी और मौत से जूझ रहा अबुझमाड़ का मासूम वड्डा (Photo source- Patrika)

जिंदगी और मौत से जूझ रहा अबुझमाड़ का मासूम वड्डा (Photo source- Patrika)

CG News: अबुझमाड़ क्षेत्र के कुतुल ग्राम पंचायत के आश्रित गांव परपा में रहने वाला 7 वर्षीय बालक संजय वड्दा, बीते एक वर्ष से अज्ञात बीमारी से पीड़ित है और इलाज के अभाव में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। परिजन अज्ञानता के कारण उसे आधुनिक चिकित्सा सुविधा की बजाय सिरहा-गुनिया (झाड़-फूंक करने वाले पारंपरिक ग्रामीण उपचारक) के पास लेकर जा रहे हैं।

हालांकि इस गंभीर मामले की जानकारी छह माह पूर्व ही स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले को मिल चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद परिजनों को उचित इलाज के लिए तैयार करने में विभाग अब तक विफल रहा है। संजय की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, उसका शरीर धीरे-धीरे गल रहा है और वह पीड़ा से कराहते हुए इलाज की गुहार लगा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय ग्रामीणों को विश्वास में लेकर, गोंडी भाषा में समुचित संवाद कर, परिजनों को यह समझाना जरूरी है कि छह महीने से इलाज न मिलने पर भी संजय की हालत में सुधार नहीं हुआ है, जबकि सरकारी अस्पताल में इलाज से उसकी जान बचाई जा सकती है।

CG News: अब क्या करेगा प्रशासन

अब सवाल यह है कि क्या स्थानीय स्वास्थ्य अमला और प्रशासन संजय के परिजनों को सरकारी इलाज के लिए राजी कर पाएंगे? क्या विभाग स्थानीय विश्वासों और सांस्कृतिक बाधाओं को समझकर संजय जैसे मासूमों को चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंचाने में सफल होगा? संजय की पीड़ा आज पूरे अबुझमाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई को सामने ला रही है। जरूरत है संवेदनशीलता, सक्रियता और संवाद की, ताकि संजय जैसे हजारों बच्चों की जिंदगी समय रहते बचाई जा सके।

पत्रिका ने संजय की आवाज पहुंचाई स्वास्थ्य मंत्री तक

CG News: इस पूरे मामले की जानकारी जब पत्रिका को प्राप्त हुई, तो अगले ही दिन प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल का नारायणपुर दौरा प्रस्तावित था। पत्रिका प्रतिनिधि द्वारा पत्रकारवार्ता के दौरान संजय का मामला उठाए जाने पर मंत्री ने संज्ञान लिया और संजय को नारायणपुर में इलाज न मिलने की स्थिति में रायपुर रेफर कर विशेष इलाज उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया।

परिजन 'माता लगना' मानते हुए संजय का इलाज सिरहा-गुनिया के पास ही करा रहे हैं। स्वास्थ्य अमले ने एक बार समझाइश देने का प्रयास किया, लेकिन परिजनों के इनकार के बाद स्थानीय ग्रामीणों की मदद से दोबारा प्रयास नहीं किया गया। गोंडी जैसी स्थानीय भाषा में संवाद की कमी और सांस्कृतिक विश्वासों को समझने की पहल न होने से परिजनों तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच अब भी दूर है।