
अभी नहीं बचाया तो हरित क्रांति लाने वाली तवा के भी हो जाएंगे सहायक नदियों जैसे हाल
नर्मदापुरम. narmdapuram जिले में मुख्य नर्मदा नदी की सबसे लंबी सहायक नदी तवा के हालात भी ठीक नहीं है। इसकी लंबाई 172 किमी है। इस पर बने बांध से साल में दो बार गेहूं एवं मूंग के लिए बड़ी मात्रा में पानी खींच लिया जाता है। मछलियों का अंधाधुंध शिकार भी बांध के जल के पर्यावरण सिस्टम को प्रभावित कर रहा है। यह नदी प्रमुख रूप से सतपुड़ा रेंज में बहती है। वर्तमान में गर्मी के चलते इसमें भी पानी का बहाव कम हो गया। कई स्थानों से इसकी धार बदल गई है। रेत के बड़े-बड़े टीले भी निकल आए हैं। अवैध खनन और तटीय गांवों में हो रही रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव से भी इस नदी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है। अगर तवा के संरक्षण-संवर्धन के कार्य भी शुरू नहीं हुए तो ये नदी भी आने वाले वर्षों में 41 सहायक नदियों की तरह नालों में तब्दील होकर सूख जाएगी। सिंचाई एवं पीने के पानी का संकट भी झेलना पड़ सकता है। बता दें कि करीब 44 गांवों बांध से जलमग्न होकर प्रभावित हुए थे।
बैखोफ खनन की शिकार तवा नदी
जिले में तवा नदी की ठेके की खदानें पिछले दस माह से बंद है। बड़ी-बड़ी ठेका कंपनियां भी वैध खदानें नहीं चला पाईं। दो कंपनियां तय ठेका अवधि के बीच में ही रेत व्यवसाय नहीं कर पाई है। सरकारी तौर पर किसी तरह का कोई खनन-परिवहन नहीं हो रहा है, लेकिन अवैध खनन बैखोफ जारी है। रेत माफिया रात के अंधेरे में मशीनों से खनन कर टै्रक्टर-ट्रॉलियों से इसका जमकर परिवहन कर जमकर स्टॉक रहे हैं, ताकि बारिशकाल में इसे मनमाने दामों में बेचा जा सके। ग्राम रायपुर, मालाखेड़ी, बांद्राभान, सांगाखेड़ा पुल, निमसाडिय़ा, तवा पुल के आसपास सहित बाबई, सेमरी, सोहागपुर, पिपरिया, बनखेड़ी, सिवनीमालवा, डोलरिया की नदियों व इनके तटों से रेत का अवैध खनन, परिवहन को रोकने खनिज व प्रशासन का अमला नाकाम साबित हो रहा। अवैध कारोबारी ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से रेत चोरी कर शासन की रायल्टी का भारी नुकसान पहुंचा रहे।
ये है तवा नदी का उदगम
तवा नदी एक प्रमुख नदी है। इसका उदगम जिले के पंचमढ़ी के महादेव पर्वत श्रंखला की कालीभीत पहाडिय़ों से हुआ है। यह नर्मदा की सबसे लम्बी सहायक नदी कहलाती है। यह नदी बैतूल होते हुए नर्मदापुरम में मुख्य नर्मदा नदी में मिलती है। यह नदी छिंदवाड़ा, बैतूल, होशंगाबाद और आस-पास के इलाकों में ही बहती है और इस दौरान मालिनी, देनवा नदी तवा नदी में आकर मिल जाती है। नदी उत्तर और पश्चिम दिशा में बहती है, जहां यह नर्मदापुरम शहर के नजदीक बांद्राभान संगम स्थल में नर्मदा से मिलती है।
बांध ने रोका प्रवाह, लेकिन सिंचाई के लिए मिलता है पानी
तवा-देनवा नदी के संगम स्थल पर जो 58 मीटर ऊंचा एवं 1,815 मीटर लंबा है।
तवा बांध 1978 में बनकर तैयार हुआ था। उसने जंगल के बहुत बड़े हिस्से के साथ कृषि भूमि भी काफी मात्रा में अपने में समेट लिया यानी डूब में चली गई। प्रभावितों को रोजी-रोजगार दिलाने मछली व्यवसाय के लिए तवा मत्स्य संघ का गठन हुआ। बांध को तवा परियोजना नाम दिया गया। इसके पानी से रबी के गेहूं-चने एवं गर्मी में मूंग की सिंचाई के लिए नर्मदापुरम-हरदा जिले को पानी मिलता है।
एक नजर में तवा नदी का बांध
-जल संचयन क्षमता : 1993 मिलियन घन मीटर
- वार्षिक अनुमानित सिंचाई क्षमता: 3,32,720 हेक्टेयर है ।
-सिंचाई क्षेत्र : 2.47 लाख हेक्टेयर भूमि
-दावा किया था: 3.33 लाख हैक्टेयर में सिंचाई का
-बांध निर्माण का खर्च: 172 करोड़ रुपए
-किसने बनाया: विश्व बैंक व विदेशी एजेंसी
जल रिसाव व दलदलीकरण से नुकसान
तवा परियोजना का कमांड क्षेत्र में जल के रिसाव से दलदलीकरण के कारण काली चिकनी मिट्टी को भी नुकसान हो रहा है। नहरें फूट जाने से भी खेतों को नुकसान पहुंचता है। मिट्टी बचाओ अभियान का असर भी नहीं पड़ सका। करीब 60 प्रतिशत रिसन से ऊपचाऊ जमीन दलदल से ग्रसित हो रही है। क्योंकि समूचे कमांड की कच्ची नहरें पक्की नहीं हो पाई है। करीब 25 तटीय गांवों की कुल 335 हेक्टेयर भूमि दलदली हो चुकी है।
सिर्फ गेहूं-सोयाबीन पर हुए निर्भर
नहरी सिंचाई आने के साथ ही नर्मदापुरम एवं हरदा जिलों की खेती में बड़ा बदलाव आया। फसलों का ढांचा पूरी तरह बदल गया। पहले इस इलाके में ज्वार, मक्का, कोंदो, कुटकी, समा, बाजरा, देशी धान, देशी गेहूं, तुअर, तिवड़ा, चना, मसूर, मूंग, उड़द, तिल, अलसी आदि कई तरह की फसलें ली जाती थी। तवा कमांड क्षेत्र में इन विविध फसलों की जगह सोयाबीन (खरीफ) और गेहूं (रबी) की एकल खेती ही हो पा रही।
उत्पादित बिजली का नहीं मिल रहा फायदा
तवा बांध में बिजली भी बनती है, लेकिन इसका फायदा आम जन को नहीं मिलता। एचईजी कंपनी जो 6.5 गुणा 2 मेगावाट बिजली पैदा करती है, वह ग्रिड में देकर बदले में मण्डीदीप स्थित अपने कारखाने में ग्रिड से 80 प्रतिशत बिजली ले लेती है। 20 प्रतिशत बिजली रास्ते में नुकसान हो जाती है।
मिट गए जंगल, चारागाह और सामुदायिक भूमि
तवा बांध की नहरों के आने से पूरे कमांड क्षेत्र में जंगल, चारागाह तथा सामुदायिक उपयोग की अन्य भूमि समाप्त हो गई और खेतों में बदल गई। इससे सबसे बड़ा नुकसान पारंपरिक पशुपालन का हुआ तथा पशुओं की संख्या तेजी से घटी है। विशेषकर आदिवासी, दलित एवं अन्य पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार इससे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।
500 टन मछली उत्पादन भी नहीं
तवा जलाशय से मछली उत्पादन का लक्ष्य भी 500 टन का था जो इतने सालों बाद भी पूरा नहीं हो सका है। अधिकतम मछली उत्पादन, 300-400 टन से ज्यादा नहीं बढ़ पाया है।
बाढ़ नियंत्रण के दावे भी झूठे
तवा, बारना बांध से बाढ़ नियंत्रण के दावे किए गए थे, लेकिन वर्ष 1999 और इसके बाद आई बाढ़ से ये दावे भी झूठे ही साबित हुए। बरगी बांध से छोड़े जाने वाले अथाह पानी के कारण तवा बांध के फुल होने के कारण बारिश में इसे लगातार खोलने से भी बाढ़ के हालात पैदा होते हैं।
-तवा नदी नर्मदा की मुख्य सहायक नदी है। इसके संरक्षण के लिए सतपुड़ा के जंगल में हो रही अंधाधुंध पेड़ कटाई को रोकना होगा। नदी से जुड़े सत्तर फीसदी जंगल को सुरक्षित रखना जरूरी है। क्योंकि नर्मदापुरम वाले हिस्से में रेत के अवैध खनन से तवा के पाट एवं इसका जल प्रवाह सिमटने लगा है। तटों पर रासायनिक खेती को पूरी तरह बंद किया जाना चाहिए।
-अशोक विस्वाल, पर्यावरणविद नर्मदापुरम।
Published on:
22 May 2022 12:54 pm
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