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घास से बनी रस्सी बांस पर पडती है भारी, प्रदेशभर में जबरदस्त मांग

भारिया आदिवासी बनाते हैं सावई घास बावेर की रस्सियां

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नरसिंहपुर. प्रदेश के जंगलों में उगने वाली घास से बनी रस्सी इतनी मजबूत होती है कि बांस पर भारी पडती है। इस रस्सी की प्रदेशभर में जबरदस्त मांग है। इस रस्सी को वन अमला ही खरीद लेता है।

सावई अर्थात बावेर घास से बनी रस्सी काफी मजबूत मानी जाती है जो बांस बांधने के कार्य में सबसे उपयुक्त मानी जाती है। वन विभाग के जरिए यह रस्सी प्रदेश के बैतूल, होशंगाबाद, खंडवा, बालाघाट, सिवनी, रीवा,छिंदवाड़ा, हरदा के अलावा अन्य जिलों में भेजी जाती है।

गोटीटोरिया का जो वनक्षेत्र है उससे लगे छिंदवाड़ा और होशंगाबाद के भी कुछ वन ग्राम है जहां के ग्रामीण इसी केंद्र पर घास-रस्सी लाते हैं। वन विभाग के अनुसार हर वर्ष करीब एक हजार क़िंटल से ज्यादा मात्रा में रस्सी की सप्लाई की जाती है। जिले के आदिवासी क्षेत्र गोटेटोरिया की रस्सी अपने बल के लिए ही जानी जाती है। इसका बल इतना ज्यादा होता है कि प्रदेश के कई जिलों में भारी भरकम बांसों कोबांधने केलिए सप्लाई की जाती है।

भरिया आदिवासी समाज के लोग यहां के जंगल में उगने वाली सावई घास बावेर की रस्सियां बनाकर वनविभाग को उपलब्ध कराते हैं जिससे उन्हें अपनी जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए पर्याप्त आय होती है। वन विभाग के सतपुड़ा बावेर रस्सी केंद्र में तो रस्सियां बनाई जाती हैं इसके अलावा अपनी निजी 75 मशीनों से भी यह काम कर रहे हैं | ये आदिवासी रस्सी बनाने का यह हुनर अपने बच्चों को भी सिखा रहे हैं ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें। वन विभाग ने वर्ष 2003 में यहां सतपुड़ा बावेर रस्सी केंद्र की शुरुआत की थी। घास से रस्सी निर्माण के लिए 41 मशीनों रखी गईं थीं। जिससे शुरु में 155 आदिवासी परिवार जुड़े।

इस केंद्र से ग्राम बड़ागांव, भातौर, भेंसा, पटकना, भिलमाढाना, ग्वारी, भटिया, रातेर जैसे कई गांव जुड़े है। इस केंद्र में करीब 50 परिवार नियमित रूप से रस्सी का निर्माण कर रहे हैं। एक दिन में एक व्यक्ति करीब 10 किलो तक रस्सी बना लेता है। केंद्र के गोदाम में जो घास स्टाक की जाती है वह ग्रामीणों को बिना कोई दाम लिए करीब 100 क्विंटल तक दी जाती है। अक्टूबर से मई-जून तक घास आती है और रस्सी का कार्य चलता रहता है, घास का स्टाक भी रहता है। इस काम से ग्रामीणों को पर्याप्त आय हुई और उन्होंने 75 मशीनें अपने रुपयों से खरीद ली हैं।