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सांकल घाट पर स्थित है आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर, अक्षय तृतीया पर कराई थी मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा

shankaracharya आदि शंकराचार्य जयंती पर आज विशेष

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adi shankaracharya

नरसिंहपुर. मध्यप्रदेश में आदि शंकराचार्य का भव्य मंदिर बनने का सौभाग्य सबसे पहले नरङ्क्षसहपुर जिले को प्राप्त हुआ है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नर्मदा के सांकल घाट पर भव्य मंदिर बनवा कर अक्षय तृतीया के दिन ७ मई २०१९ को मंदिर में आदि शंकराचार्य और उनके गुरु गोविंदपादाचार्य की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। इस धार्मिक कार्यक्रम में देश भर से आचार्य और श्रद्धालु शामिल हुए थे। गौरतलब है कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने नरसिंहपुर के सांकल घाट को आदि शंकराचार्य की तपोस्थली बताते हुए ओंकारेश्वर में मूर्ति स्थापना का विरोध किया था। ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की मौजूदगी में उनके दैविक मार्गदर्शन में आचार्यों ने शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति रिवाजों के साथ दंड संन्यास की दीक्षा देते हुए गुरु गोविंदपादाचार्य और आदि शंकराचार्य के दिव्य विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा की थी।

सिद्ध क्षेत्र है गुरु गुफा

सांकलघाट के पास ढानाघाट पर यह मंदिर उस सिद्ध क्षेत्र में बनाया गया है जिसके बारे में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज शास्त्रोक्त आधार पर यह प्रमाणित करते रहे हैं कि यहां आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविंद पादाचार्य से दंड संन्यास की दीक्षा ग्रहण की थी। यहां वह गुरु गुफा अपने प्राकृतिक स्वरूप में अभी भी मौजूद है जिसमें रह कर आदि शंकराचार्य ने कठोर जप तप व साधना की थी। इस स्थान व गुफा की प्रमाणिकता को पुरातत्वविद भी साबित कर चुकेे हैं। यह स्थान धूमगढ़ नीमखेड़ा के अंतर्गत है।
५५ फीट ऊंचा शिखर
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने २८ जनवरी २०१८ को मंदिर के लिए भूमिपूजन किया था। जून माह में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था। मंदिर के सामने ही नर्मदा परिक्रमावासियों के ठहरने और सदाव्रत आदि के लिए अन्नक्षेत्र, भोजनालय का निर्माण कराया गया है। २० कक्षों वाले इस अतिथिग़ृह में २ कक्ष शंकराचार्य महाराज के ठहरने के लिए बनाए गए हैं।
अत्यंत मनोरम स्थल
नर्मदा किनारे ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह मंदिर आसपास प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है, पूर्वाभिमुख मंदिर के दायीं ओर नर्मदा का विशाल आंचल है तो बायीं ओर गुरुगुफा है जहां आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण की थी।