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‘बेहतर होगा कि आप बरी होने तक जेल में रहें…’: एसजी की दलील पर हाईकोर्ट से दिल्ली दंगों के 10 आरोपियों को झटका

2020 Delhi Riots: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली में 2020 के दंगों से संबंधित बड़ी साजिश मामले में आरोपी कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य को जमानत देने से इनकार कर दिया।

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उमर खालिद (Photo-IANS)

2020 Delhi Riots: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े बड़े साजिश मामले में 10 आरोपियों की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। इनमें कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (यूएएच) के संस्थापक खालिद सैफी, अतहर खान, मोहम्मद सलीम, शिफा उर रहमान, मीरान हैदर, शादाब अहमद और तस्लीम अहमद शामिल हैं। न्यायमूर्ति नवीन चावला और शैलिंदर कौर की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, सभी अपीलें खारिज की जाती हैं। कोट ने 9 जुलाई को इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था। एक अन्य पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और हरीश वैद्यनाथन शंकर शामिल थे, ने तस्लीम अहमद की जमानत भी खारिज की।

2020 दिल्ली दंगे: साजिश का आरोप

23 से 25 फरवरी, 2020 को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हुए। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 18 लोगों को गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के तहत गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा है कि यह हिंसा स्वतःस्फूर्त नहीं थी, बल्कि एक सुनियोजित साजिश थी, जिसका मकसद धार्मिक आधार पर देश को बांटना और वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करना था।

अभियोजन पक्ष की दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, अगर आप देश के खिलाफ कुछ करते हैं, तो बेहतर है कि आप बरी होने तक जेल में रहें। उन्होंने दावा किया कि यह साजिश 24 फरवरी, 2020 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान रची गई थी, ताकि राष्ट्रीय राजधानी में हिंसा कर भारत को शर्मिंदा किया जाए। पुलिस ने व्हाट्सएप चैट, सीसीटीवी फुटेज और गवाहों के बयानों को सबूत के रूप में पेश किया।

आरोपियों का तर्क

आरोपियों ने जमानत के लिए लंबी हिरासत और मुकदमे में देरी का हवाला दिया। उमर खालिद ने कहा कि केवल व्हाट्सएप ग्रुप में होना अपराध नहीं है और उनके खिलाफ कोई हिंसक गतिविधि का सबूत नहीं है। शरजील इमाम ने दावा किया कि वे सह-आरोपियों से पूरी तरह असंपृक्त थे। हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को खारिज कर दिया।