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Ayurveda Day: धनतेरस पर नहीं अब हर साल 23 सितंबर को मनाया जाएगा आयुर्वेद दिवस, जानें क्या है 2025 की थीम

Ayurveda Day: सरकार का मानना है कि आयुर्वेद दिवस के लिए एक निश्चित तारीख तय होने से इसको सार्वभौमिक कैलेंडर पर पहचान मिलेगी।

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भारत

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Ashib Khan

Aug 26, 2025

23 सितंबर को मनाया जाएगा आयुर्वेद दिवस (Photo-X @airnewsalerts)

Ayurveda Day: भारत सरकार ने आयुर्वेद दिवस को लेकर बड़ा फैसला लिया है। अब हर साल 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। हालांकि इससे पहले यह धन्वंतरि जयंती (धनतेरस) को मनाया जाता था।इसकी शुरुआत के बाद से यह पहली बार है जब आयुर्वेद दिवस मनाने के लिए एक निश्चित तिथि निर्धारित की गई है। इस साल की थीम है- लोगों और ग्रह के लिए आयुर्वेद।

सार्वभौमिक कैलेंडर पर मिलेगी पहचान

सरकार का मानना है कि आयुर्वेद दिवस के लिए एक निश्चित तारीख तय होने से इसको सार्वभौमिक कैलेंडर पर पहचान मिलेगी। इसके साथ ही विश्व में इसका व्यापक रूप से आयोजन संभव हो सकेगा। बता दें कि 2024 में 150 से अधिक देशों ने आयुर्वेद दिवस की गतिविधियों में भाग लिया था।

‘आयुर्वेद केवल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली नहीं’

केंद्रीय आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा- आयुर्वेद केवल एक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक विज्ञान है जो व्यक्ति और पर्यावरण के बीच सामंजस्य के सिद्धांत पर आधारित है।

वैश्विक कैलेंडर पर दी पहचान

उन्होंने आगे कहा कि 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित करके सरकार ने आयुर्वेद को एक वैश्विक कैलेंडर पहचान दी है। 2025 की थीम, "आयुर्वेद फॉर पीपल एंड प्लैनेट", वैश्विक कल्याण और एक स्वस्थ ग्रह के लिए आयुर्वेद की पूरी क्षमता का दोहन करने के हमारे सामूहिक संकल्प को दर्शाती है।

2016 से हुआ शुरू

आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा- 2016 से आयुर्वेद दिवस की शुरुआत हुई थी। इसके बाद से यह भारत के पारंपरिक ज्ञान का जश्न मनाने वाले एक वैश्विक आंदोलन के रूप में उभरा है। पहला अखिल भारतीय एनएसएसओ सर्वेक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि आयुर्वेद ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली उपचार प्रणाली है।

'95 प्रतिशत लोग जानते है आयुष उपचार प्रणाली के बारे में'

एक सर्वे के मुताबिक 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 95 प्रतिशत भारतीय आयुष उपचार प्रणाली के बारे में जानते हैं और औसतन एक ग्रामीण साल भर में वैकल्पिक चिकित्सा पर 472 रुपये खर्च करता है, जबकि शहरी 574 रुपये खर्च करते हैं।