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अग्रिम जमानत पर 1 साल फैसला सुरक्षित रखने के बाद क्यों हट गए जज, सुप्रीम कोर्ट हैरान, मांगी रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट में एक अग्रिम जमानत याचिका पर एक साल तक फैसला सुरक्षित रखने के बाद जज द्वारा खुद को मामले से अलग करने पर हैरानी जताई और रिपोर्ट मांगी है।

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पटना हाईकोर्ट में एक अग्रिम जमानत याचिका पर करीब एक साल तक फैसला सुरक्षित रखने के बाद जज द्वारा खुद को मामले से अलग करने (रिक्यूज) पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि हम बेहद हैरान हैं कि अग्रिम जमानत की याचिका पर आदेश को एक साल तक कैसे लंबित रखा जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले में पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से तथ्य जुटाकर आठ जनवरी 2024 तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए। जस्टिस संदीप कुमार द्वारा आदेश सुरक्षित कर रिक्यूज करने के बाद दूसरी बेंच ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज की तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।


इसलिए रिक्यूज किया मामला

याचिकाकर्ता के खिलाफ पीएमएलए के तहत दर्ज मामले में पटना हाईकोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस संदीप कुमार ने अग्रिम जमानत अर्जी पर सात अप्रैल 2022 को फैसला सुरक्षित रखा था। उन्होंने चार अप्रैल 2023 को यह कहते हुए रिक्यूज किया कि वह इसी एफआईआर से जुड़े मामले में वकील रह चुके हैं, इसलिए इस मामले को दूसरी बेंच के समक्ष रखा जाए।

न्यायिक स्वतंत्रता के लिए जजों की आर्थिक गरिमा जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को न्यायिक अधिकारियों और जजों को वित्तीय गरिमा के साथ जीवन जीने की आवश्यकता पर जोर दिया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि न्यायिक अधिकारी अपने कामकाजी जीवन का बड़ा हिस्सा न्यायिक संस्थान की सेवा में बिताते हैं और वह लाभ नहीं लेते जो बार के अन्य सदस्यों के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। ऐसे में सरकार (स्टेट) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिटायर होने पर न्यायिक अधिकारियों का जीवन सम्मानजक हो।

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काम का मूल्यांकन घंटों के आधार पर करना गलत

चीफ जस्टिस न कहा कि कानून के शासन में जनता के विश्वास और विश्वास को बनाए रखना वित्तीय गरिमा की भावना के साथ जीवन जीने वाले न्यायिक अधिकारियों पर निर्भर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों की सेवाओं और भत्तों से संबंधित ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के काम का मूल्यांकन काम के घंटों के आधार पर करने को गलत बताया।

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