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जिसने की IAS की हत्या, उसे रिहा करने के लिए नीतीश कुमार ने कानून बदल डाला!

बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई को लेकर नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है आनंद मोहन पर नीतीश सरकार की विशेष कृपा रही है, तभी तो हर जगह यह बात कहावत के रूप में कहीं जा रही है कि यह रिहाई एक बाहुबली, माफिया और दुर्दांत अपराधी को सरकार का उपहार है, और बिहार में फिर 90 का दशक लौटने वाला है।

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जिसने की IAS की हत्या, उसे रिहा करने के लिए नीतीश कुमार ने कानून बदल डाला!

बिहार के सबसे दुर्दांत अपराधियों में शुमार एक बाहुबली को फिर से खड़ा करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानून बदल दिया है। एक डीएम जिसकी हत्या सरेआम रोड पर कर दी गई थी, भीड़ को उकसा उनकी हत्या कराने आरोप जिस अपराधी पर लगा था, उसका नाम बाहुबली आनंद मोहन था और मरने वाले डीएम का नाम जी.कृष्णैया था। पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को पहले मौत की सजा दी फिर बाद में इसे उम्र कैद में बदल दिया गया। अब इसी कैदी आनंद मोहन को जेल से रिहा कराने के लिए सुशासन कुमार के नाम से मशहूर नीतीश कुमार ने कानून ही बदल दिया है।

समझिए ये कैसी विडंबना है। एक तरफ आप सुशासन कुमार का चोला ओढ़े हैं। दूसरी तरफ आप एक ऐसे कैदी को रिहा कराने के लिए कानून बदल दिया, जिसने आप ही के राज्य के एक जिले के डीएम की सरेआम रोड पर हत्या करवाई हो। यहां पर हम आरोप की बात नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ यह न्यायालय में साबित हो चुका था, तभी उन्हें पहले फांसी की सजा मिली थी, बाद में उसे उम्रकैद में बदला गया था।


पलकें बिछाए बैठी है नीतीश सरकार

आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि एक ऑन ड्यूटी ऑफिसर के हत्या करने वाले के लिए नीतीश कुमार और उनकी पूरी सरकार पलके बिछाए बैठी है, और स्वागत के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है। क्योंकि उनका प्यारा दुर्दांत हत्यारा जेल से बाहर आ रहा है।

अपराधी को रिहा करने के लिए जेल मैनुअल बदल डाला!

आप यह सोचेंगे कि यह फैसला कैसे लिए गया तो, आपको बता दें कि पहले बिहार के जेल मैनुअल में लिखा था, कि सरकारी अफसर की ऑन ड्यूटी हत्या करने पर उम्र कैद की सजा खत्म होने पर रिहाई नहीं होगी। यानी अगर आप किसी सरकारी अफसर की हत्या करते हैं और अगर आप को उम्र कैद की सजा मिलती है तो जेल में आप अच्छा व्यवहार भी करते हैं फिर भी आप की रिहाई नहीं होगी।

लेकिन अब इस दुर्दांत अपराधी को निकालने के लिए नीतीश कुमार ने इस लाइन को ही हटा दिया है और इसे अपवाद की श्रेणी से हटाकर सामान्य श्रेणी में ला दिया। बदले हुए नियम के अनुसार, अब ऑन ड्यूटी सरकारी सेवक की हत्या अपवाद नहीं होगी। यानी अपनी जान की बाजी लगाकर लोगों की सेवा करने वाले ऑफिसर की हत्या करने वाले हत्यारे अब हत्या करके जेल में कुछ दिन अच्छे से रहेंगे और बाहर आ जाएंगे।

पहले वाले कानून में यह प्रावधान नहीं था। इसीलिए माफिया आंनद मोहन जेल में था। यह बात तो सब जानते हैं की सत्ता और अपराध, अपराध और सत्ता का कैसा सम्बन्ध होता है। कोई किसी को ज्यादा दिन दुःख में नहीं देख सकता, दुःख से उबरने के लिए कोई न कोई उपाय हो ही जाता है ।

इस नये कानून से सीधा-सीधा गुंडों माफियाओं में यही मैसेज जाएगा कि सरकार अपने ऑफिसर अपने पुलिस के साथ नहीं बल्कि आपके साथ है। वह दिन दूर नहीं जब बिहार फिर से 90 के दशक में जाएगा। जब अपहरण एक उद्योग हुआ करता था। बालू माफिया समानांतर सरकार चलाते थे। कुछ जातियों के लोग हमेशा दहशत में रहा करते थे, टाइटल बदलकर उन्हें अपना जीवन जीना पड़ता था, ताकि कोई उनके जाति को जानकर उनकी हत्या ना कर दे।

इन सबके अलावा ज़रा आप सोचिए उस डीएम की पत्नी पर आज क्या बीत रही होगी, जिनके पति की ऑन ड्यूटी हत्या कर दी गई थी। आज उनका भरोसा कानून से इस कदर उठ गया होगा इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। लेकिन नीतीश कुमार का क्या है, उनके लिए तो ईद और दीवाली दोनों एक साथ है। जब चाहे साथी बदल दिया, जब मन हुआ कानून बदल दिया। जो मन में आया कर दिया, शायद वो भूल जाते हैं की उनके एक छोटे से छोटे निर्णय का असर बिहार के सभी जनता पर पड़ता है ।