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Loksabha Elections 2024 : यहां रातों-रात सितारे चमक जाते हैं तो कभी बनती बाजी बिगड़ते देर नहीं लगती

बिहार की सियासत : बिहार की सियासत में पता नहीं कब-क्या पलट जाए, कोई नहीं जानता। दरअसल में बिहार की राजनीति चौंकाने वाली हैं और पिछले कुछ सालों से तो यहां नीतीश कुमार ही सबसे बड़ा मुद्दा है। बिहार का गया नगर जीतन राम मांझी का भी क्षेत्र है। ज्ञात है कि नीतीश के कहने के बावजूद मांझी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडऩे से इनकार कर दिया था

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Loksabha Election Ground Report Gaya Bihar

बिहार की सियासत : यहां रातों-रात सितारे चमक जाते हैं तो कभी बनती बाजी बिगड़ते देर नहीं लगती

देवेंद्र गोस्वामी

बिहार मेंं सियासत की बाजी में कब-क्या बदल जाए, कोई नहीं जानता। या यूं कहे कि बिहार की सरगर्मी बदलते समय नहीं लगता। कभी रातों-रात सितारे चमक जाते हैं तो कभी बनती बाजी भी बिगड़ जाती है। बिहार की राजनीति में जीतन राम मांझी का नाम भी इन दिनों सुर्खियों में है। हाल ही लालू यादव की ओर से पीएम मोदी पर टिप्पणी की तो पूरे देश में मोदी का परिवार का मुद्दा छा गया। टिप्पणी के बाद देश में परिवारवाद बनाम मोदी का परिवार की जंग छिड़ गई।

आखिर बिहार राज्य की सियासत के खेल में ऐसा क्या है, इसका ज्ञान बारिकी से करने के लिए मैं गया नगर पहुंचा। बिहार राज्य का गया नगर मोक्षधाम के रूप में प्रसिद्ध है। यहां से 12 किलोमीटर दूर बोधगया है, जहां भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक बोधगया है। यूनेस्को ने इस जगह को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल कर रखा है। कुल मिलाकर यह जगह ज्ञान और मोक्ष से जुड़ा हुई हैं। जिसे ज्ञान मिल गया, उसे मोक्ष भी मिल गया। यहां के स्थानीय निवासी दीपक कुमार ने बताया कि वे रोजाना विष्णुपद मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर फाल्गु नदी के किनारे बना है। भगवान विष्णु ने गयासुर राक्षस को यहीं मारा था। गया की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पर्यटकों पर निर्भर है। बिहार का सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है, लेकिन सुविधाएं उस स्तर विकसित नहीं की जा सकी है। मोक्ष के लिए सालभर लोग आते हैं। अपने परिजनों का पिंड दान करते हैं। श्राद्ध पक्ष में तो लाखों की भीड़ होती है। अभी भी लगभग 500 लोग रोजाना आते हैं। लेेकिन फाल्गु नदी में पानी नहीं दिखता। रेत हटाने पर पानी निकलता है। वैसे भी गया के लिए प्रसिद्ध है- बिना पेड़ के पहाड़ और बिना पानी की नदी। ऐसी ही हैरत करने वाली घटनाएं यहां की सियासत में होती रहती हैं।

राजनीति में रुचि रखने वाले निकेश सिंह ने बताया कि गया के जीतन राम मांझी आज एससी वर्ग के प्रमुख नेता हैं, जो एनडीए में शामिल हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के खराब प्रदर्शन पर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ दिया था और मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था। पार्टी के अंदर लगातार विरोध होने पर नीतीश ने जब जीतन राम मांझी से इस्तीफा मांगा तो मांझी ने मना कर दिया। काफी विवाद के बाद 20 फरवरी 2015 को उन्होंने इस्तीफा देकर नई पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) बनाई। पिछले विधानसभा चुनाव में छह सीटें भी जीतकर लाए। पूरे बिहार में मांझी को वोट बैंक साधने में सक्षम माना जाता रहा हैं। चर्चा है कि इस बार लोकसभा में इनके बेटे को लोकसभा में उतारा जा सकता है।

ओबीसी वोट बैंक साधने की कोशिश

बिहार में एक खास बात यह है कि यहां सियासी चर्चा में हर वर्ग के लोग शामिल हो जाते हैं। रंजीत गिरि युवा हैं, बताने लगे कि बिहार सरकार की ओर करवाई गई जाति आधारित जनगणना में सामने आया कि ओबीसी सबसे बड़ा वोट बैंक है। जाति की सही गणना सामने आने के बाद आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया। इसका पूरा श्रेय नीतीश को गया। इसी बिहार की एक सभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। इसके बाद भी उन्हें वापस लिया गया। दरअसल विपक्ष के इंडिया गठबंधन की नींव बिहार में पड़ी थी और नीतीश कुमार ही इसके सूत्रधार थे और पिछले दिनों इसी बिहार से इंडिया गठबंधन पर संकट आया। नीतीश जब एनडीए छोड़कर महागठबंधन में आए तो इंडिया नाम हुआ, उनके जाते ही फिर महागठबंधन के नाम पर रैली हुई। देशभर में एक संदेश यह गया कि नीतीश के जाते ही इंडिया बिखर गया। दूसरा संदेश यह गया कि बिहार चाहेगा तभी गैर भाजपाई दल एक प्लेटफॉर्म पर आएंगे। तीसरा मैसेज यह रहा कि नीतीश ने जब चाहा बना दिया जब चाहा बिगाड़ दिया।

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बिहार में चुनावी मुद्दा एक ही

बार-बार पाला बदलने के बाद यह कहा जाने लगा कि नीतीश कुमार का प्रभाव कम होता जा रहा है। जबकि नीतीश कुमार को बिहार में 16.5 प्रतिशत वोट की गारंटी माना जाता रहा हैं। भाजपा जो नया नारा दे रही है कि लाभार्थी को पकड़ो, नीतीश कुमार ने इसे 2005 में पकड़ लिया था। नीतीश कुमार के लिए महिलाएं बहुत बड़ा वोट बैंक हैं। आज बिहार के किसी भी दरवाजे पर दस्तक दीजिए, हर घर से एक महिला नौकरी या रोजगार से जुड़ी मिलेगी। चाहे आशा दीदी हो, ममता हो, सहिया हो, रोजगार दीदी, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार से जुड़ी 10 लाख से अधिक महिलाएं, पशुधन योजना में शामिल महिलाएं, महिला उद्यमी योजना समेत तमाम योजनाओं के माध्यम से नीतीश ने महिलाओं के वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाई है। इतना ही नहीं, ओबीसी को भी ईबीसी वर्ग में बांटा। अति पिछड़ा वर्ग के रूप में नया वोट बैंक तैयार किया। जानकार मानते हैं कि एक वोट बैंक नितीश के साथ चलता है। चाहे वो एनडीए में जाएं या आरजेडी के साथ रहे। हार-जीत में यह वोट बैंक अहम भूमिका निभाता रहा है। यह बात लालू यादव भी जानते हैं और अमित शाह भी बखूबी समझते हैं। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि नवंबर-दिसंबर में भाजपा ने एक इंटरनल सर्वे करवाया था। जनवरी में जब उसका परिणाम सामने आया तो भाजपा की चिन्ता बढ़ गई। भाजपा को नीतीश कुमार के कारण 10 से 12 सीट का नुकसान हो रहा था। इस सर्वे के बाद फैसला लिया गया कि हर हाल में नीतीश कुमार को एनडीए में लाना होगा। नीतीश के बार-बार पाला बदलने से एनडीए में भाजपा पर असर पड़ रहा है और महागठबंधन में राजद पर। नीतीश की फेस वेल्यू बरकरार है।

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रोजगार देकर युवाओं को साधने की कोशिश

बिहार में पहली बार एक साथ अलग-अलग विभागों में साढ़े तीन लाख नियुक्तियां हुई हैं। दो लाख से 'यादा शिक्षकों की भर्ती हुई है। करीब 50 हजार पद पुलिस विभाग में भरे गए। दो महीने के अंदर दो लाख शिक्षकों को नियुक्ति दे देना बड़ा काम माना जा रहा है। यह काम तब हुआ जब नीतीश कुमार का राजद के साथ गठबंधन था। तेजस्वी यादव इस मामले को भुनाना चाहते हैं। वे रैली शुरू कर चुके हैं। जमीन पर रोजगार की बात कर रहे हैं। दरअसल यह रोजगार इसलिए महत्वपूर्ण है कि बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में 9.26 लाख वोटर पहली बार वोट डालेंगे।

चार साल में तीन बार सरकार बदली

बिहार में वर्ष 2020 में विधानसभा चुनाव हुए थे। इसके बाद चार साल में तीन बार सरकार बदल चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहते हैं लेकिन गठबंधन बदलता रहा। 2005 से 2015 तक नीतीश गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे लेकिन बाद में वे हासिये पर चले गए। चिराग पासवान पर गठबंधन धर्म का पालन नहीं करने का आरोप लगाकर राजद के साथ गए थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर जदयू आ गई। इस दौरान सबसे बड़ा बदलाव तेजस्वी यादव का उदय हुआ। लालू यादव के प्रभाव से परे रहकर तेजस्वी ने अपनी अलग छवि बनाई। 2020 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तब लालू जेल में थे। तेजस्वी ने नेतृत्व किया था। राजद में नेतृत्व परिवर्तन होते ही बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। उसके 75 विधायक जीतकर आए। बिहार की राजनीति में एआईएमआईएम का उदय हुआ और पांच विधायक जीतकर आए। सीमांचल मुस्लिम बहुल इलाके से पांचों विधायक जीते। हालांकि बाद में ये जेडीयू और राजद में आ गए। एमवाई समीकरण पर एआईएमआईएम ने सेंध लगाई। अभी एक विधायक है। असदुद्दीन ओवैसी पिछले दो महीने में सीमांचल का तीन बार दौरा कर चुके हैं।

2020 में हुए विधानसभा चुनाव में दलों की स्थिति

कुल सीट- 24

राजद- 75

भाजपा- 74

जदयू- 4

कांग्रेस- 19

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा- 4

विकासशील इंसान पार्टी- 4

भाकपा-माले- 12

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भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- 2

भाकपा (माक्र्सवादी)- 2

बसपा- 1

एआईएमआईएम- 5

लोक जनशक्ति पार्टी- 1

निर्दलीय- 1

गठबंधन की सीटें :

एनडीए- 125

राजद महागठबंधन- 110

जीडीएसएफ- 6