
बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति (फोटो- bjp.org)
Manipur: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगे 10 महीने से अधिक बीत गए हैं। फरवरी में राष्ट्रपति शासन को 1 साल पूरा होने वाला है। ऐसे में वहां सरकार गठन की चर्चा तेज होने लगी है। भारतीय जनता पार्टी ने पार्टी विधायकों को रविवार को दिल्ली तलब किया है। पूर्व सीएम एन बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य की स्थिति पर चर्चा करने के लिए पार्टी हाईकमान ने दिल्ली बुलाया है। उन्होंने कहा कि हमें मीटिंग के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि बातचीत में लोकप्रिय सरकार को फिर से बहाल करना एजेंडे में शामिल हो सकता है।
मीडिया से बातचीत के दौरान सीनियर बीजेपी लीडर ने भी कहा कि पार्टी मणिपुर में नई सरकार के गठन की संभावना तलाश रही है। केंद्र सरकार भी राज्य में राष्ट्रपति शासन को आगे बढ़ाने में इच्छुक नहीं है। उन्होंने कहा कि हम कितनी बार एक्सटेंशन मांग सकते हैं? चूंकि विधानसभा को सस्पेंडेड एनीमेशन में रखा गया था, इसलिए यह हमेशा साफ था कि पार्टी मणिपुर में एक चुनी हुई सरकार देखना चाहती है। हालांकि, एक अन्य नेता ने मीडिया से कहा कि इस बार सीएम के रूप में एन बीरेन सिंह के शपथ लेने की संभावना बेहद कम है।
मणिपुर बीजेपी के एक नेता ने कहा कि राज्य में सामान्य स्थिति बहाल हो गई है। विधायकों के साथ नियमित बैठकें भी सामान्य स्थिति का संकेत दे रही हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन के एक साल बाद, सरकार गठन एक तरह से संवैधानिक दायित्व बन जाता है। हालांकि, केंद्रीय हाईकमान राज्य में नई सरकार के गठन को लेकर पशोपेश की स्थिति में है।
मोदी सरकार का मानना है कि कानून-व्यवस्था की स्थिति नाज़ुक है। हालांकि, राष्ट्रपति शासन से कुछ हद तक व्यवस्था बनी है, हिंसा में काफी कमी आई है और पिछले कुछ महीनों में शायद ही कोई हत्या हुई हो। केंद्र का मानना है कि यह काफी हद तक राज्य में तैनात सुरक्षा बलों और स्थानीय पुलिस दोनों पर केंद्र के सीधे नियंत्रण के कारण संभव हुआ है।
वहीं, कुछ दिनों पहले भाजपा के संगठन महासचिव बी एल संतोष और पार्टी के नॉर्थईस्ट कोऑर्डिनेटर संबित पात्रा पूर्वोत्तर की यात्रा पर थे। पार्टी ने दोनों नेताओं को इंफाल में स्थिरता का टोह लेने के लिए भेजा था। इस दौरे के दौरान दोनों नेताओं ने इंफाल में प्रदेश मुख्यालय में बीजेपी विधायकों के साथ एक बंद कमरे में मीटिंग की। बीजेपी नेताओं ने पार्टी के सहयोगियों से भी मुलाकात की थी।
इधर, संवैधानिक चुनौतियों के कारण भी मोदी सरकार एक साल से अधिक समय तक राष्ट्रपति शासन का कार्यकाल आगे नहीं बढ़ा सकती है। दरअसल, संविधान के तहत, किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन अधिकतम तीन साल के लिए लगाया जा सकता है, बशर्ते हर छह महीने में संसदीय मंजूरी मिले। हालांकि, 1978 के 44वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के तहत, एक साल से ज्यादा के विस्तार के लिए दो शर्तें जरूरी हैं। पहली यह घोषणा कि राष्ट्रीय आपातकाल लागू है और दूसरी कि चुनाव आयोग (EC) यह प्रमाणित करे कि मुश्किलों के कारण चुनाव नहीं कराए जा सकते। अगर ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो राष्ट्रपति शासन एक साल से ज्यादा नहीं हो सकता और चुनाव या सरकार का गठन होना ही चाहिए।
Published on:
13 Dec 2025 11:20 am
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