
Branding Mistake of Agneepath Yozna
देश के सबसे भरोसे का ब्रांड रहे टाटा ने अपने सबसे क्रांतिकारी प्रोडक्ट को लाते समय भारतीय मानसिकता को समझने में पूरी तरफ से गलती कर दी। हम भारतीयों के लिए कार हमेशा से एक गौरव और सम्मान का प्रतीक रही है। अधिकांश भारतीय लोग, कार को दिखावे और सम्मान के लिए खरीदते हैं और परिवहन की सुविधा दूसरे नंबर पर होती है। पहली कार खरीदने वाले के लिए यह बात और ज्यादा सही बैठती है। अगर उसे कहा जाए कि वह जो कार खरीद रहा है वह गरीबों की कार है तो वो उसे खरीद कर अमीरी का गौरव कैसे महसूस करेगा? नैनो कार मार्किट में बुरी तरह फेल हो गई और सिर्फ खराब मार्केटिंग और ब्रांडिंग के कारण ही रतन टाटा का सपना चकनाचूर हो गया। अगर रतन टाटा ने नैनो कार को ‘फैमिली कार’, ‘ऑफिस कार’, ‘इजी पार्किंग कार’ के रूप में पेश किया होता या फिर सेफ ट्रेवल मोटर बाइक की तुलना में पेश किया होता तो शायद आज नैनो कार मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास की पहली पसंद होती।
टीम मोदी ने अग्निपथ की ब्रांडिंग में वही गलती की! कैसे?
जब भी हम भारतीय नौकरी या करियर के बारे में सोचते हैं या बात करते हैं तो हमारे दिमाग में क्या आता है ? बचपन ने हमारे दादाजी, पिताजी और समाज ने हम भारतीयों को यही बताया है कि जॉब का मतलब होता है -
- अच्छा जीवन साथी तलाशने में मदद
- परिवार और बच्चों के लिए सुरक्षा
- जीवन भर के लिए पेंशन
- भविष्य की सुरक्षा
दूसरे शब्दों में कहें तो नौकरी चाहने वाला हरेक इंसान इसे भविष्य की सुरक्षा से जोड़ता है। जॉब उसके मान-प्रतिष्ठा का प्रतिबिम्ब बन जाता है। यहां तक कि हकीकत यह है कि शादी होने के लिए लड़के के अच्छे चरित्र से ज़्यादा नौकरी जरूरी हो जाती है। साथ ही जॉब का स्थायी होना सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है। अग्निपथ योजना चार साल की अस्थायी नौकरी ले कर आती है जबकि भारतीय विवाह का बाजार एक सुरक्षित नौकरी की मांग करता है। 10,000 या 15,000 रुपये महीने की चपरासी का जॉब भी चलेगा मगर जॉब सुरक्षित होनी चाहिए और इसलिए शादी और जॉब एक दूसरे से बहुत नजदीक से जुड़े हैं।
समाधान क्या है? अग्निवीर योजना को बेहतर तरीके से कैसे पेश किया जा सकता था?
अग्निवीर का कांसेप्ट एक जॉब के तौर पर गलत है। एक सामान्य भारतीय युवक इन चार साल के बाद उसका क्या होगा इस बारे में कल्पना भी नहीं कर सकेगा। अग्निवीर योजना में सब कुछ वैसा ही रहता, सिर्फ इसकी ब्रांडिंग और प्रेजेंटेशन अलग रखी जाती। लोग शिक्षा को अस्थायी मानते हैं और जॉब को स्थायी। हमारी नज़र में जॉब और एजुकेशन दोनों अलग हैं। भारतीय युवा खुशी से शिक्षा को अस्थायी रूप से स्वीकार करता है। कुकुरमुत्ते की तरह ऐसे संस्थान खुल आए हैं जो नौकरी की गारंटी के बिना भारी फीस लेते हैं। इनमें भी युवाओं की भीड़ लगती है। मुश्किल से 5-10% डिग्री धारकों को 15000 -20000 मासिक सैलरी से उपर की नौकरी मिलती है। लेकिन इन जगहों से शिक्षा लेने वाले युवा कभी इन कॉलेज या शिक्षण संस्थानों के सामने प्रदर्शन नहीं करते। ना ही इनमें रही किसी कमी के लिए रेलवे या दूसरी सरकारी संपत्ति को जलाते हैं। भारतीय मानसिकता को समझते हुए अग्निवीर योजना को इस तरह पेश करना चाहिए था।
- 4 साल का डिग्री कोर्स
- मोटे स्टाइपेन्ड के साथ बैचलर ऑफ़ डिफेंस सर्विसेज
- कोर्स के ख़त्म होने पर लाखों की मोटी रकम
- सेना, अर्धसैनिक बल, राज्य पुलिस फोर्सेज में नौकरी की संभावनाएं
Published on:
13 Jul 2022 01:15 pm
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