
पोक्सो एक्ट
नई दिल्ली। सरकार ने गृह मामलों की संसदीय समिति की बाल यौन उत्पीडन मामलों को लेकर पेश की गई एक सिफारिश को खारिज कर दिया है। दरअसल, इस सिफारिश में अपराधियों को 18 के बजाय 16 उम्र के बाद से बालिग मामने की विचार रखा गया था, जिसे सरकार ने खारिज कर दिया है। बता दें कि भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के शख्स को किशोर माना जाता है।
JJ ACT है प्राथमिक कानून
महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पैनल को बताया कि किशोर न्याय यानी जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम, (JJ ACT) 2015, देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों और कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के लिए प्राथमिक कानून है।
पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध के आरोपी बच्चे को जेजे अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत बहाल न्याय के सिद्धांत के आधार पर संरक्षित किया जाता है। जेजे अधिनियम, 2015 किशोर न्याय बोर्ड को कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है।
सरकार का कहना है कि बच्चों द्वारा किए गए अपराधों को 'छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों' के रूप में वर्गीकृत किया गया है और जेजे अधिनियम के तहत उन्हें वयस्कों के रूप में पेश करने का प्रावधान पहले से मौजूद है। बता दें कि जेजे अधिनियम, 2015 में उन मामलों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया भी शामिल है, जहां 16 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों पर जघन्य अपराध करने का आरोप लगाया जाता है।
गौरतलब है कि इससे पहले 11 मार्च को इस समिति ने पोक्सो अधिनियम के तहत वयस्कों के रूप में आरोपियों की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने की सिफारिश की थी। इस दौरान समिति के पैनल ने 2017 और 2019 के बीच पोक्सो अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में लगातार वृद्धि का भी जिक्र किया था। 2017 में पोक्सो के तहत दर्ज मामलों की संख्या 32608 थी, जो 2019 में बढ़कर कुल 47325 हो गई थी। यह पोक्सो अधिनियम 2012 में लागू किया गया था। इसमें बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की जांच करने और अपराध में लिप्त पाए जाने के बाद उम्रकैद और मौत की सजा का प्रावधान किया गया था।
Published on:
11 Aug 2021 10:26 am
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