
Chhawla Rape-Murder Case
दिल्ली के छावला इलाके में 2012 में हुए गैंगरेप-मर्डर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों रवि, राहुल और विनोद की फांसी की सज़ा को रद्द करते हुए रिहाई का फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पीड़िता के माता-पिता बेहद ही निराश और दुःखी नज़र आए। इस फैसले के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, "पिछले 10 साल से न्याय के लिए जो जंग हम लड़ रहे थे, उसमें हमारी हार हुई है।" पीड़िता की मां सुप्रीम कोर्ट के इस गलत फैसले के बाद खुद को संभाल न सकी और कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोने लगी।
"न्यायपालिका से भरोसा उठा"
सुप्रीम कोर्ट के तीनों आरोपियों को बरी करने के फैसले के बाद पीड़िता के माता-पिता ने इस बारे में बात करते हुए कहा, "हमारा न्यायपालिका से भरोसा उठ गया है। सिस्टम हमारी गरीबी का फायदा उठा रहा है। 10 साल से भी ज़्यादा समय तक न्याय के लिए लड़ाई लड़ने के बाद भी हमें न्याय नहीं मिला। यह बहुत ही निराशाजनक है।"
"जीने की इच्छा हुई खत्म"
पीड़िता की मां ने रोते हुए कहा, "मैं इसी उम्मीद के साथ जी रही थी कि मेरी बेटी को न्याय मिलेगा। निचली कोर्ट और हाई कोर्ट ने हमें राहत दी। पर सुप्रीम कोर्ट ने हमसे हमारी उम्मीद छीन ली। इससे मेरी जीने की इच्छा ही खत्म हो गई।"
क्या है पूरा मामला?
9 फरवरी, 2012 को को 17 साल की नाबालिग लड़की अपनी दो सहेलियों के साथ रात करीब पौने नौ बजे छावला स्थित हनुमान चौक से घर की तरफ जा रही थी। तभी रास्ते में एक लाल रंग की इंडिका कार आकर रुकी और इसमें से दो लड़के, जिन्होंने अपना चेहरा ढंक रखा था, उतरे और उन्होंने लड़की को ज़बरदस्ती कार में खींच लिया। इसके बाद करीब 70 किलोमीटर तक रवि, राहुल और विनोद ने उस लड़की के साथ गैंगरेप किया। इतना ही नहीं, उन तीनों दरिंदों ने लड़की के साथ मारपीट भी की, उसके शरीर को गर्म लोहे और सिगरेट से भी दागा। बाद में उसके बुरी तरह से मारपीट कर, उसकी आँखें भी फोड़ दी। इन दरिंदों का इन सब के बाद भी दिल नहीं पसीजा, तो लड़की के सर पर कई वार किए, उसके निजी अंग को जख्मी कर दिया, उसके चेहरे पर तेजाब दाल दिया और उसकी क्रूरता से हत्या कर उसे गाड़ी से फेंक दिया। सिर्फ इसलिए क्योंकि उस लड़की ने रवि का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।
इसके बाद 13 फरवरी को हरियाणा के झज्जर क्षेत्र स्थित रोढ़ाई गाँव के पास रेल की पटरियों के पास पीड़िता की लाश मिली थी।
निचली कोर्ट ने सुनाई थी फांसी की सज़ा
इस पूरे मामले को 'दुर्लभतम' बताते हुए निचली कोर्ट ने 2014 में तीनों आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई थी। निचली कोर्ट के इस फैसले को हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा था। पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने इस फैसले को रद्द कर दिया। इससे पहले 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों दोषियों की फांसी की सजा पर फैसला सुरक्षित रखा था।
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने की फैसले की आलोचना
सुप्रीम कोर्ट के इस निराशाजनक फैसले से महिला अधिकार कार्यकर्ताओं में भी निराशा है और उन्होंने इसकी आलोचना भी की है। पीड़िता के माता-पिता को ढांढस बंधाते हुए महिला अधिकार कार्यकर्त्ता योगिता भयाना ने कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट के इस गलत फैसले से स्तब्ध है। हम चाहते थे कि मौत की सज़ा को बरकरार रखा जाए, पर हमें लगता था कि इसे उम्र्रकैद में भी बदला जा सकता है। पर जो सुप्रीम कोर्ट ने किया, वो निंदनीय है।"
Published on:
08 Nov 2022 02:06 pm
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