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दिल्ली विस्फोट का हवाला देते हुए आतंकी मामले में दिव्यांग आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देने से किया इनकार, कहा- मैसेज देने के लिए…

Supreme Court: दिल्ली धमाके के अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अलग आतंकी मामले में दिव्यांग आरोपी को जमानत देने से मना कर दिया है।

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Supreme Court

सु्प्रीम कोर्ट (Photo-IANS)

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली के लाल किले के पास हुए विस्फोट का हवाला देते हुए एक अलग मामले में दिव्यांग आरोपी को जमानत देने से मना कर दिया है। बता दें कि दिल्ली ब्लास्ट में पीटीआई के अनुसार, 12 लोगों की मौत हो चुकी है। मृतकों में तीन कार सवार भी शामिल हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता पर ISIS विचारधारा को बढ़ावा देने और आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश का कथित रूप से हिस्सा होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दो साल से अधिक समय तक जेल में रहने का आरोप है।

'संदेश भेजने के लिए आज सबसे अच्छी सुबह'

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने टिप्पणी की कि 'कल की घटनाओं के बाद इस मामले पर बहस करने के लिए यह सबसे अच्छी सुबह नहीं थी।' संभवतः उनका इशारा दिल्ली में हुए कार विस्फोट की ओर था। इस पर न्यायमूर्ति मेहता ने जवाब दिया, 'संदेश भेजने के लिए आज सबसे अच्छी सुबह है।'

ISIS विचारधारा से जुड़ा है आरोपी

कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के पास से 'भड़काऊ सामग्री' बरामद की गई है, जिस पर वकील दवे ने जवाब दिया कि उनके मुवक्किल के पास से बरामद एकमात्र सामग्री इस्लामी साहित्य है। दवे ने बताया कि संरक्षित गवाह ने बयान दिया था कि एनआईए अधिकारी उस पर झूठी गवाही देने के लिए दबाव डाल रहे थे और वह गवाही नहीं देना चाहता था।

जमानत के लिए वकील ने दी ये दलील

इसका जवाब देते हुए न्यायमूर्ति मेहता ने पूछा, 'गवाह की बात तो छोड़िए, बरामदगी का क्या? आपने आईएसआईएस जैसा ही एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है। इसके पीछे क्या मंशा है?' दवे ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के पास से कोई आरडीएक्स या विस्फोटक बरामद नहीं हुआ है और इस बात पर जोर दिया कि वह 70 प्रतिशत विकलांग है और पहले ही ढाई साल हिरासत में बिता चुका है। कारावास की अवधि को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने आदेश दिया कि मुकदमा दो साल के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।