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कर्नाटक में जातीय जनगणना के बीच लिंगायत धर्म विवाद की सियासी चिंगारी, जानें CM सिद्दारमैया ने क्या कहा?

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की मांग तेज हो गई है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म बताया है, जबकि भाजपा इसे समुदाय को विभाजित करने की कोशिश कह रही है। जाति आधारित सर्वेक्षण में लिंगायतों को अपनी पहचान दर्ज करने को लेकर असमंजस है।

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Photo-IANS)

कर्नाटक में जाति आधारित सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षिक सर्वेक्षण (जातिवार जनगणना) के साथ ही अलग लिंगायत धर्म की मांग एक बार फिर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गई है।

कई मठ प्रमुखों ने सर्वेक्षण में लिंगायत को अलग धर्म दर्ज करने की मांग की है, जबकि कुछ संत इसे समुदाय को विभाजित करने की साजिश बता रहे हैं।

मामला उस समय तूल पकड़ गया, जब बेंगलूरु के पैलेस मैदान में बसव सांस्कृतिक अभियान के समापन समारोह में मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की मौजूदगी में इस विषय पर चर्चा हुई।

समारोह में पारित प्रस्तावों में कहा गया कि लिंगायत धर्म कन्नड़ का धर्म है, जो समानता, भाईचारे और मानवीय मूल्यों पर आधारित है।

प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि लिंगायतों को बौद्ध, जैन और सिखों की तरह धार्मिक मान्यता और सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए।

जनता का रुख ही मेरा रुख : सिद्दारमैया

समारोह के बाद जब मुख्यमंत्री सिद्दारमैया से इस मुद्दे पर पूछा गया तो उन्होंने केवल इतना कहा कि जनता का रुख ही मेरा रुख है।

उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में उत्तरदाता अपनी स्वेच्छा से धर्म का उल्लेख करते हैं। गौरतलब है कि 2017 में कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने की सिफारिश केंद्र से की थी, जिसे समुदाय को विभाजित करने का प्रयास माना गया।

इसका राजनीतिक परिणाम 2018 के चुनाव में दिखा, जब कांग्रेस को लिंगायत बहुल क्षेत्रों में भारी नुकसान हुआ। बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार को इस निर्णय के लिए माफी मांगनी पड़ी थी।

कहां से शुरू हुआ विवाद

विवाद तब शुरू हुआ जब अखिल भारत वीरशैव महासभा के नेतृत्व वाले एक वर्ग ने अलग धर्म का दर्जा देने की मांग की। उनका कहना था कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं, जबकि दूसरा वर्ग केवल लिंगायतों को स्वतंत्र धर्म का दर्जा देने की वकालत कर रहा है।

राजनीतिक रूप से माना जा रहा है कि यदि लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता मिलती है तो कांग्रेस, भाजपा के मजबूत वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।

सत्तारूढ़ मंत्रियों की भिन्न राय

सत्तारुढ़ कांग्रेस के लिंगायत समुदाय से आने वाले नेताओं और मंत्रियों की राय भी इस मसले पर अलग-अलग है। वृहद एवं मध्यम उद्योग मंत्री एम.बी. पाटिल ने कहा कि लिंगायत धर्म, हिंदू धर्म की चतुर्वर्ण व्यवस्था से बाहर है और जैन, बौद्ध, सिखों की तरह इसे स्वतंत्र धर्म के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।

वहीं, वन मंत्री ईश्वर खंड्रे ने स्पष्ट किया कि वीरशैव और लिंगायत को कोई ताकत अलग नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास समुदाय को एकजुट रखना है, विभाजित करना नहीं।

भाजपा ने साधा निशाना

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र ने कहा कि मुख्यमंत्री का कर्तव्य सभी समुदायों की रक्षा करना है। उन्होंने आरोप लगाया कि सिद्दारमैया इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं।

विजयेंद्र ने कहा कि समाज को एकजुट करने के बजाय धार्मिक विभाजन के प्रयास हो रहे हैं और जनता को इस सियासी मंशा को समझना चाहिए।