
Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने एकतरफा तलाक पर महत्त्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि यदि मुस्लिम शौहर तलाक देता है और बीवी उसे मानने से इनकार करती है, तो अदालत के जरिए ही तलाक स्वीकार्य होगा। जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने कहा, तलाक पर विवाद हो, तो पति का दायित्व है कि वो कोर्ट को संतुष्ट करे कि उसने पत्नी को जो तलाक दिया है, वह कानून के मुताबिक है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मुस्लिम पति अगर दूसरी शादी करता है तो पहली पत्नी को साथ में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में पुरुषों को एक से अधिक शादी करने की इजाजत है। कोर्ट ने कहा, इसके बावजूद पहली पत्नी को मानसिक रूप से पीड़ा हो सकती है। अगर पहली पत्नी, पति की दूसरी शादी से असहमत है, तो वह पति से भरण-पोषण का खर्च पाने की हकदार है।
कोर्ट पत्नी को मुआवजा दिए जाने के सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ पति की दीवानी समीक्षा याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पत्नी ने 2018 में पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवाया था जिस पर मजिस्ट्रेट ने पति को पत्नी को मुआवजे के रूप में 5 लाख और उनके बच्चे के भरण-पोषण के लिए 2500 रुपए प्रति माह देने का निर्देश दिया था। पति का कहना था कि वह पत्नी को तीन बार बोलकर तलाक दे चुका है, लेकिन सत्र अदालत ने इसे नहीं माना। कोर्ट ने आदेश में कहा कि पत्नी के असहमत होने पर तलाक की पुष्टि कोर्ट ही कर सकता है, खुद पति नहीं।
अदालत शरीयत परिषद की ओर से जारी प्रमाण पत्र पर चौंक गई जिसमें तलाक में सहयोग न करने के लिए पत्नी को दोषी ठहराया गया था। अदालत ने कहा कि शरीयत परिषद द्वारा जारी प्रमाण पत्र कानूनी रूप से वैध नहीं है क्योंकि केवल अदालत ही निर्णय दे सकती है।
Updated on:
29 Oct 2024 11:04 am
Published on:
29 Oct 2024 08:57 am
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