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क्या चुनाव टाला या रद्द किया जा सकता है? जानिए कब–कब देशभर में टाले गए चुनाव और क्या कहता है नियम

locationनई दिल्लीPublished: Dec 24, 2021 02:42:11 pm

Submitted by:

Arsh Verma

देश में कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट का संक्रमण तेज हो गया है। ऐसे में यूपी समेत 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को टालने की मांग उठने लगी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार चुनाव टालने पर विचार करने की बात कही है। लेकिन क्या आपको पता है देश में कब कब चुनावों को टाला या रद्द किया गया है? जानिए क्या कहता है चुनावों से जुड़ा नियम

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Election Commission of India

कोरोना वायरस का नया वैरिएंट अब देश में धीरे– धीरे पैर पसारने लगा है, एक्सपर्ट्स ने नए साल के साथ तीसरी लहर आने की आशंका भी जताई है। लेकिन इन सब के बावजूद देश में राजनैतिक दलों की रैलियां जारी हैं जिसमे सैकड़ों लोगो की भीड़ जुटाई जा रही है। ऐसे में संक्रमण फैलने का डर और भी बढ़ गया है। 2022 में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने है जिसको लेकर सभी राजनैतिक दल मेहनत में जुटे हुए हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से यूपी चुनाव को टालने की अपील की है जिसपर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि वह अलगने हफ्ते यूपी दौरे पर हालात की समीक्षा करेंगे। आपको बता दें की इन सब के बीच सुप्रीम कोर्ट में चुनावी रैलियों में जमावड़े को लेकर एक याचिका भी दाखिल कर दी गई है।
हम आपको बताएंगे के क्या सच में चुनावों को टाला जा सकता है और अगर टाला जा सकता है तो आज से पहले कितने चुनावों को टाला गया है और इनको टालने या रद्द करने के क्या हैं नियम।

क्या चुनावों को टाला या रद्द किया जा सकता है:
चुनावों को टाला और रद्द भी किया जा सकता है, पिछले साल 2020 में पंचायत चुनाव और कई लोक सभा और विधान सभा के उपचुनावों को टाला गया था। संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग अपने हिसाब से चुनावों को करवाने के लिए स्वतंत्र है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52, 57 और 153 में चुनावों को रद्द करने या टालने की बात कही गई है।
किस स्तिथि में चुनावों को रद्द या टाला जा सकता है:

1. कैंडिडेट की मौत पर:
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52 में एक खास प्रावधान किया गया है। इसके तहत यदि चुनाव का नामांकन भरने के आखिरी दिन सुबह 11 बजे के बाद किसी भी समय किसी उम्मीदवार की मौत हो जाती है, तो उस सीट पर चुनाव टाला जा सकता है,
1.बशर्ते उसका पर्चा सही भरा गया हो।
2.उसने चुनाव से नाम वापस न लिया हो।
3.मरने की खबर वोटिंग शुरू होने से पहले मिल गई हो।
4.मरने वाला उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त दल से हो।
5.मान्यता प्राप्त दल का मतलब है ऐसे दल, जिन्हें पिछले विधानसभा या लोकसभा चुनाव में कम से कम छह फीसदी वोट हासिल हुए हों।

उदाहरण के तौर पर, 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान की 200 में से 199 सीटों पर ही चुनाव हुए थे। रामगढ़ सीट पर बीएसपी उम्मीदवार की मौत वोटिंग से पहले हो गई थी तो चुनाव बाद में कराए गए।
2. दंगा-फसाद, प्राकृतिक आपदा जैसी स्तिथि में:
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 57 में इस बारे में ये प्रावधान है। यदि चुनाव वाली जगह पर हिंसा, दंगा या प्राकृतिक आपदा हो, तो चुनाव टाला जा सकता है। इस बारे में फैसला मतदान केंद्र का पीठासीन अधिकारी ले सकता है। हिंसा और प्राकृतिक आपदा अगर बड़े स्तर पर हो यानी पूरे राज्य में हो, तो फैसला चुनाव आयोग ले सकता है। अभी के हालात आपदा वाले ही हैं। कोरोना वायरस के चलते भीड़ इकट्ठी नहीं हो सकती। ऐसे में कई चुनाव आगे बढ़ाए जा चुके हैं।

उदाहरण के तौर पर, 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों को लेकर एक आदेश भी दिया था। यह मामला किशन सिंह तोमर बनाम अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का था। इसमें कोर्ट ने कहा था कि प्राकृतिक आपदा या मानव निर्मित त्रासदी जैसे दंगा-फसाद में हालात सामान्य होने तक चुनाव टाले जा सकते हैं।
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3. चुनाव में गड़बड़ी:
किसी मतदान केंद्र पर मत पेटियों या वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ किए जाने पर भी वोटिंग रोकी जा सकती है। हालांकि आजकल ज्यादातर चुनावों में ईवीएम ही काम में ले जाती है। अगर चुनाव आयोग को लगे कि चुनाव वाली जगह पर हालात ठीक नहीं है या पर्याप्त सुरक्षा नहीं है तो भी चुनाव आगे बढ़ाए जा सकते हैं या फिर चुनाव रद्द किया जा सकता है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 में यह प्रावधान है।

4. ऐसा मामला जहां पैसों के दुरुपयोग या मतदाताओं को घूस दी गई हो:
किसी जगह पर मतदाताओं को गलत तरीके से प्रभावित करने की शिकायत मिलने पर भी चुनाव रद्द या टाला जा सकता है। इसके अलावा किसी सीट पर पैसों के दुरुपयोग के मामले सामने आने पर भी चुनाव रोका जा सकता है। इस तरह की कार्यवाही चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत कर सकता है।

उदहारण के तौर पर, जैसे साल 2019 में तमिलनाडु की वेल्लौर लोकसभा सीट पर चुनाव रद्द करना। या साल 2017 में भारी मात्रा में कैश बरामद होने पर तमिलनाडु की राधाकृष्णानगर विधानसभा सीट के उपचुनाव को रद्द करना।
5. बूथ कैप्चरिंग होने पर:
बूथ कैप्चरिंग, यानी जिस जगह पर वोट डाले जा रहे हों, उस पर कब्जा कर लेना। ऐसे हालात में भी चुनाव की नई तारीख का ऐलान किया जा सकता है। इसके लिए रिटर्निंग अधिकारी फैसला लेता है। वह ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर नई तारीख पर मतदान के लिए कह सकता है। यह आदेश भी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 58 के तहत दिया जाता है। 1991 में पटना लोकसभा का चुनाव इसी के चलते कैंसिल कर दिया गया था। तब जनता दल के टिकट पर इंद्र कुमार गुजराल को लालू यादव चुनाव लड़ा रहे थे।

इस तरह के मामले में 1995 का बिहार विधानसभा भी एक उदाहरण है। राज्य उस समय बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम था। ऐसे में उस समय के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने अर्ध सैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव कराने का आदेश दिया। साथ ही चार बार चुनाव की तारीखें भी आगे बढ़ाई। टीएन शेषन के बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं।

6. सुरक्षा कारणों से जुड़े मामलों में:
चुनाव आयोग को अगर लगे कि किसी सीट पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं है, तो वह चुनाव रद्द या टाल सकता है। इस तरह का मामला साल 2017 में आया था। महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग की लोकसभा सीट छोड़ दी थी। वह मुख्यमंत्री बन गई थीं। ऐसे में उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने सुरक्षाबलों की 750 कंपनियां मांगी. यानी 75,000 जवान। लेकिन सरकार ने 300 कंपनियां ही दीं। लेकिन चुनाव आयोग ने बाद में अनंतनाग के हालात खराब बताते हुए चुनाव रद्द कर दिए थे।

उदहारण के तौर पर, 1990 में चुनाव आयोग ने हिंसा की आशंका के चलते पंजाब में चुनाव टाल दिए थे। इसी तरह का वाकया 1991 के लोकसभा चुनावों में भी हुआ। पहले फेज की वोटिंग के बाद राजीव गांधी की हत्या हो गई. इसके बाद अगले दो फेज के चुनाव करीब एक महीने टाले गए थे।
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