
what is Uniform Civil Code
uniform civil code (UCC)?
समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून। अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है। हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं। मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों का अपना पर्सनल लॉ है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यानी हर धर्म, जाति, जेंडर के लिए एक जैसा कानून।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होने के लिए एक देश एक नियम का आह्वान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।
केंद्र सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को संसद के मानसून सत्र में पेश कर सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़ा बिल मानसून सत्र में सरकार की ओर से संसदीय स्थायी समिति को भेजा जा सकता है। तीन जुलाई को संसदीय समिति की बैठक बुलाई गई है।
[typography_font:14pt]UCC में शामिल विषय
विवाह,
तलाक
गोद लेना
व्यक्तिगत स्तर
विरासत
संपत्ति का अधिकार और संचालन
[typography_font:14pt]इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता
Uniform civil code is applicable in these countries
अमरीका
पाकिस्तान
बांग्लादेश
तुर्की
इंडोनेशिया
सूडान
आयरलैंड
इजिप्ट
मलेशिया
इजरायल
जापान
फ्रांस
रूस
[typography_font:18pt]क्या भारत में समान नागरिक संहिता लागू है?
[typography_font:14pt]Is there a Uniform Civil Code in India?
नहीं। लेकिन संविधान में प्रावधान है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, 'राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।' यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनसे संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। यानी सभी धर्म अपने-अपने नियम/कानून पर चल रहे हैं। जिन्हें एक कानून के तहत लाने की बात की जा रही है।
[typography_font:14pt]गोवा एकमात्र राज्य जहां समान नागरिक संहिता
गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां समान नागरिक संहिता है । गोवा परिवार कानून, नागरिक कानूनों का समूह है, मूल रूप से पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1961 में इसके विलय के बाद लागू किया जाना जारी रहा।
[typography_font:14pt]क्या गोवा में हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है[typography_font:14pt]
गोवा अब तक भारत का एकमात्र राज्य है जहां विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि के मामले में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सहित सभी समुदाय एक ही कानून द्वारा शासित होते हैं।
[typography_font:14pt]गोवा में समान नागरिक संहिता क्यों है?
1869 ई. में पुर्तगाली गोवा और दमाओन को केवल पुर्तगाली उपनिवेशों से बढ़ाकर प्रोविंसिया अल्ट्रामरीना (विदेशी कब्ज़ा) का दर्जा दिए जाने के बाद गोवा नागरिक संहिता लागू की गई थी।
[typography_font:18pt]यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र पहली बार कब हुआ
[typography_font:14pt;" >When was the mention of Uniform Civil Code for the first time?
1985 में शाह बानो केस के बाद UCC मुख्य रूप से चुनावी मुद्दा बन गया। बहस इस बात पर थी कि क्या कुछ कानूनों को बिना किसी का धर्म देखे सभी पर लागू किया जा सकता है? शाह बानो केस में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर सवाल उठाए गए थे। MPLB (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ) जो कि मुख्यत: शरिया कानून पर आधारित है, जो एकतरफा तलाक, बहुविवाह आदि को भी बढ़ावा देता है।
इस केस का सारांश यह है कि मुस्लिम महिला शाह बानो की शादी इंदौर निवासी मोहम्मद अहमद खान से हुई थी। अहमद खान इंदौर के बड़े रईस और मशहूर वकील थे। दोनों के 5 बच्चे थे। पहली शादी के 14 साल बाद खान ने दूसरी शादी कर ली। खान ने कुछ वक्त तक तो दोनों पत्नियों को साथ रखा लेकिन बाद में 62 वर्षीया शाह बानो को तलाक दे दिया। तलाक के समय खान ने शाह बानो को हर महीने 200 रुपए देने का वादा किया था, पर 1978 में 200 रुपए देना बंद कर दिया।
तब शाह बानो ने खान के खिलाफ केस किया और अपने बच्चों के गुजरा भत्ते के लिए 500 रुपए प्रति महीना देने की मांग की। खान ने अपने बचाव में यह दलील दी कि पैसे देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि अब वे पति-पत्नी नहीं हैं। उन्होंने इस्लामिक कानून का हवाला देकर दूसरी शादी को जायज बताया।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां फैसला खान के खिलाफ आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें सेक्शन 125 के तहत तलाकशुदा पत्नी को पैसा यानी गुजारा भत्ता देना होगा। उल्लेखनीय है कि यहां सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक कॉमन सिविल कोड होना चाहिए।
न्यायिक रक्षा
सामान नागरिक संहिता न्यायिक रक्षा के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करती है। इसे उपयोगकर्ताओं को न्यायिक संरक्षण, बिना अन्याय या हस्तक्षेप के, प्रदान करने के लिए गठित कि जा रहा है। इससे व्यापारिक, नागरिक, और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ न्यायपूर्ण कार्रवाई करने की सुविधा प्राप्त होती है।
ये कुछ तर्क हैं जो सामान नागरिक संहिता का समर्थन करते हैं। यह नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों के साथ समृद्ध और मुक्तिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रदान करती है।
न्याय का कुशल प्रशासन
विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के संहिताकरण और एकीकरण से अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण होगा। इससे मौजूदा भ्रम कम होगा और न्यायपालिका द्वारा कानूनों का आसान और अधिक कुशल प्रशासन संभव हो सकेगा।
यूसीसी लागू नहीं किया जाना चाहिए
समान नागरिक संहिता के खिलाफ तर्क देने वालों का मानना है कि विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार आदि जैसे मामले धार्मिक मामले हैं और संविधान ऐसी गतिविधियों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और इसलिए समान नागरिक संहिता इसका उल्लंघन होगा।
सामान नागरिक संहिता के विरोध में कुछ और भी तर्क हैं, जैसे -
संवैधानिक प्रमुखता: कुछ लोगों का तर्क है कि सामान नागरिक संहिता के उद्देश्य और महत्व को संवैधानिक प्रमुखता के समक्ष कम माना जाता है। उनका कहना है कि संविधान संशोधन के द्वारा संवैधानिक मूल्यों को बदलना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए अधिक संरक्षण की जरूरत है। वे इस दृष्टिकोण से विचार करते हैं कि संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के लिए विशेष अधिकारों और कानूनों की आवश्यकता है, जो समान नागरिक संहिता के प्रावधानों से अलग हो सकती है।
विषेश अवस्थाएं: कुछ लोग सामान नागरिक संहिता के विरोध में यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि ऐसी अवस्थाएं हो सकती हैं जब अपने अधिकारों की प्रशासनिक पाबंदियों से सुरक्षित करना जरूरी होता है। उदाहरण के लिए, अपराध और आतंकवाद के मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कुछ प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता हो सकती है, जो सामान नागरिक संहिता के अधिकारों को सीमित कर सकता है।
सामान्य दण्ड: विरोधी तर्क का एक अन्य पहलू है सामान नागरिक संहिता के अंतर्गत न्यायिक दण्ड से संबंधित। कुछ लोग समझते हैं कि संहिता में न्यायिक दण्ड के प्रतिबंध या सीमित करने के बजाय, उचित सजा प्रदान करने के लिए और अपराधियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। वे इसके बारे में विचार करते हैं कि ऐसे मामलों में अधिकाधिक अपराधियों को सजा देने से समानता और न्याय का प्रभाव प्राप्त होगा।
जबकि सच यह है -
- इसमें महिला और पुरुषों को समान अधिकार की बात है। इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
- यहां समझना यह है कि दुनिया के 125 देशों में एक समान नागरिक कानून लागू है।
- इस्लाम में मान्यता है कि उनका लॉ किसी का बनाया नहीं है, अल्लाह के आदेश के अनुसार चल रहे हैं। लेकिन कुछ चीजें लोगों को खटक रही हैं जैसे 9 साल शादी की उम्र क्या आज के समय में यह ठीक है?
- महिलाओं को शरीयत में उचित संरक्षण मिला हुआ है तो उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार क्यों नहीं हैं।
- इसका किसी एक धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह एक समानता की बात करता है।
Why UCC is the need of the society
देखा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड से कोई नुकसान नहीं है। इससे किसी धर्म को मानने या नहीं मानने पर रोक-टोक नहीं लगाई जा रही। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरीके से शादी करे, चाहें तो हिंदू धर्म के तरीके से या मुस्लिम तरीके से। यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) आपको वह अधिकार दिलाएगा तो भारत का नागरिक होते हुए आपके पास होने चाहिए।
इस कानून को राजनीतिक चश्मे के बजाए समाज के नजरिए से देखा जाए तो यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता, सशक्तिकरण, जागरुकता, कानून का सम्मान, और प्रगतिवाद लेकर आएगा।
Updated on:
30 Jun 2023 10:36 am
Published on:
29 Jun 2023 03:21 pm
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